सरप्राइज

सरप्राइज

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आज महेश और उसकी पत्नी बहुत खुश थे। क्योंकि उनका एक सपना पूरा होने जा रहा था। इस बात से भी उनको सुकून था की पिछले आठ महीने से हो रही भागा दौड़ी आज खत्म हो गई थी। आज महेश का मकान बनकर तैयार है। महेश के माता पिता की तो खुशी का ठिकाना नहीं है। उनको आज ही ये सरप्राइज मिला है क्योंकि महेश ने प्लाट लेने से लेकर मकान बनाने उनको भनक तक नहीं लगने दी। आज महेश के पिता रामकुमार जी को अपने बेटे पर फक्र हो रहा था। उन्होंने तो पूरी जिंदगी तंगी में ही बिता दी। लेकिन लड़के ने जो करके दिखाया है, वो उनके लिए शब्दों में बयां ना होने वाली ख़ुशी थी। आज उनको वो दिन याद आ गए जब उनके गाँव में कच्चे मकान थे। महेश तब दसवीं में पढ़ रहा था। उस दिन ज़ोरदार बारिश हुई थी। छप्पर से पानी चुने लगा था। महेश सहमा सा खड़ा था। उसकी माँ अवन्ति देवी ने अपने आँचल से उसके सिर को ढक रखा था। वो खुद इतना भीग गई थी की उनके दाँत कटकटाने लगे थे। जब वो बाहर से भीगते हुए अंदर आये और इस हालत में माँ बेटे को देखा तो उनका कलेजा फटा का फटा रह गया। वो किसी से नज़रे नहीं मिला पाए। छप्पर से बाहर निकले। पीछे से उनकी पत्नी उनको आवाज़ देती रही, लेकिन उनको कुछ सुनाई नहीं दिया। बाहर निकलते ही उनकी आँखो से आँसुओ की धार बहने लगी। उस दिन बारिश में रोते हुए उन्होंने एक संकल्प लिया की इस दीवाली से पहले चाहे ज़मीन आसमान एक करना पड़े वो महेश को एक बड़ा सा पक्का कमरा बनाकर देंगे ताकि वो आराम से पढ़ सके और सुकून से रह सके।

बरसात खत्म होने के बाद कुछ मित्रों से कर्ज लेकर और कुछ अपनी पत्नी के गहने रखकर उन्होंने एक कमरा, एक बैठक और एक रसोई बनवाई। वो भी दीवाली से सात दिन पहले। वो दीवाली उनकी यादगार दीवाली थी। उस दिन महेश बहुत खुश था। कुछ महीनों बाद महेश की परीक्षाये शुरू हो गई। जब परिणाम आया तो वो अपनी कक्षा में प्रथम आया था। गाँव में स्कूल दसवीं तक ही थी। उसके बाद उन्होंने अपने बच्चे को शहर भेज दिया उसके मामा के पास। इधर महेश ने अपनी पढ़ाई पर तो उधर महेश के पिता ने अपनी खेती पर दो साल जमकर मेहनत की। भगवान ने रामकुमार जी का खूब साथ दिया। इन दो सालों में अच्छी बरसात हुई और साल उनके खेतों में हरा सोना निपजा।

महेश के पिता ने ना केवल अपने दोस्तों का कर्ज चुकाया साथ ही अपनी पत्नी के गहने भी छुड़वा कर दिए। इन दो सालों में वो महेश के मामा को भी बराबर महेश का सारा ख़र्चा भेजते रहे। उधर महेश भी बारहवीं में फिर अपनी कक्षा में प्रथम आया और जब वो छुट्टियों में अपने घर आया तो उसे एक ज़बरदस्त सरप्राइज मिला जिसकी उसने सपने में भी उम्मीद नहीं की थी। उसके पिता ने घर में गाँव का पहला टॉयलेट बनवाया था। छुट्टियाँ खत्म होने के महेश के माता पिता महेश के उज्जवल भविष्य के लिए उसके साथ शहर में रहने का फैसला किया। महेश ने खूब मेहनत की और आज वो एक बड़ी कंपनी में मैनेजर है। कंपनी में ही साथ काम करने वाली अरुणा के साथ उसने शादी की। बड़ी धूमधाम से उसकी शादी हुई थी। आज उनकी शादी को तीन साल हो चुके है। वक्त कितनी तेजी से पंख लगाकर दौड़ता है।

"कहाँ खोये बैठे हो। चलो सब वो महेश बाहर कब से आप को आवाज़ लगा रहा है और आप छत पे बैठे हो।"पत्नी की आवाज़ ने उनको भूतकाल से वर्तमान में ला धकेला। खैर नीचे आकर वो सब गाड़ी में बैठे और करीब आधे घंटे बाद गाड़ी रुकी। सभी बाहर निकले। एक सुन्दर आलिशान सा बंगला खड़ा था। उसकी भव्यता बता रही थी की पैसा पानी की तरह बहाया गया है।

"कैसा लगा आप दोनों को।" महेश से पूछा

"बहुत सुन्दर बनाया है।" रामकुमार जी ने कहा।

"आइये आपको अंदर से दिखाता हूँ अंदर तो और भी शानदार है।" महेश ने आँखो से चश्मा उतारते हुआ कहा। सभी अंदर चले गए। लेकिन रामकुमारजी मेनगेट पर रुक गए। उन्होंने घर की नेमप्लेट पर नज़र डाली और उनको एकाएक अपनी आँखो पे विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने अपना चश्मा उतारा और कुर्ते के एक छोर से साफ किया। फिर से पढ़ा। नेमप्लेट पर उनका नाम कहीं नहीं था। उनको गहरा धक्का लगा। वो जाके गाड़ी में बैठ गए। महेश की शादी के बाद से ही सास बहू की आपस में नहीं बनती थी। लेकिन वो तो सोचते थे की आजकल ये छोटी मोटी नोक झोक तो हर एक घर में होती है लेकिन बात इतनी बढ़ जाएगी इसका उनको अंदाजा नहीं था। आजकल की मॉर्डन बहुओं को अगर ज़रा सा कुछ कह दो तो सीधा अपने आत्मसम्मान का प्रश्न बना देती है। ज़रा सी भी सहन शक्ति नहीं रही। जब खुद के बच्चे होंगे और वो इनके साथ ऐसा बर्ताव करेंगे तो पता चलेगा।

खैर बीस मिनट बाद महेश बाहर आया और बोला,"पिताजी आप गाड़ी में क्या कर रहे है। चलिए आप अंदर क्या हुआ सब ठीक है ना।"

"सब सही है बस तबियत कुछ ठीक नहीं है लग रही है। अपना ही घर है फिर कभी देख लेंगे। अभी घर चलो बस। थोड़ी गर्मी की वजह से बेचैनी सी हो रही है।'' रामकुमार जी ने कहा

"आपको डॉक्टर को दिखा देता हूँ। ऐसे कैसे अचानक तबियत ख़राब हो गई आपकी।" महेश ने परेशान होते हुआ कहा।

"परेशान मत हो बेटा घर जाते ही सब सही हो जायेगा। चल अभी घर चलते है।" रामकुमार जी ने ज़ोर देते हुआ कहा

लेकिन ऐसे कैसे महेश बड़बड़ाता हुआ अंदर गया और सब को ले आया। सब गाड़ी में बैठे महेश घर को ताला लगा कर आया। सब रास्ते में पहले पिताजी की तबियत पर बात करते हुए फिर महेश से नए घर की बातें सुनते सुनते कब घर आया पता ही नहीं चला। रास्ते में रामकुमार जी को अपनी पत्नी का लटका हुआ मुँह देखकर कुछ अजीब सा लगा। सुबह तो कितनी खुश थी अब देखो। उनका शक अब सच में तब्दील होता हुआ नजर आने लगा था।

सब गाड़ी से उतरे।" आप बैठे रहिये पिताजी आपको डॉक्टर के पास ले चलता हूँ।" महेश ने पिता का हाथ पकड़ते हुआ कहा


"मैं अब ठीक हूँ।" रामकुमार जी ने हाथ छुड़ाया और सीधे अपने कमरे ने चले गए। महेश को कुछ अजीब सा लगा पिता का व्यवहार। उनसे गाड़ी खड़ी की और अपने कमरे में जाकर सो गया।

"तो बोरिया बिस्तर समेट के गाँव कब चलना है।" कमरे में घुसते ही रामकुमार जी ने अपनी पत्नी से कहा।

"तो महेश ने आप से भी कह दिया है।" अवन्ति देवी ने रोते हुआ कहा।

"नहीं महेश ने तो कुछ नहीं कहा लेकिन उसके अपने नए घर की नेमप्लेट ने सब कुछ कह दिया। उसने तुमसे कुछ कहा।" रामकुमार जी ने भावुक होते हुआ कहा।

"मुझे पूरा घर दिखाया। उसने घर में सब कुछ बनाया। यहाँ तक की जो उसकी औलाद जो अभी पैदा ही नहीं हुई, उसके लिए भी आलिशान कमरा बनाया है। जब मैने पूछा हमारा कमरा कहाँ है तो बोलता है अब इस उम्र में शहर कहाँ आप को सूट करेगा। आप गाँव में रहेंगे तो ठीक रहेगा। हम दोनों ने डिसाइड की आप यहाँ आते जाते रहना। ये गेस्ट रूम है ना। अब गेस्ट तो रोज रोज कोई आएगा नहीं, आप जब भी आओ यहाँ मजे से रहना। गाँव में आपको किसी बात की तकलीफ़ नहीं होगी। एक कामवाली लगवा दूँगा और हर महीने पैसे भेजता रहूँगा।" अवन्ति देवी ने पल्लू से अपने आँसू पोंछते हुआ कहा

"सब ठीक हो जायेगा। तुम रोना बंद करो" रामकुमार जी ने पत्नी के सिर पर हाथ फेरते हुआ कहा।

"वो बात नहीं है जी, आप और मैं तो कुछ दिनों बाद गाँव जाने वाले ही थे। इसी के लिए तो यहाँ आये थे इस शहर में। जब से यहाँ आये है कहाँ इस भीड़भाड़ और शोर शराबे में मन लगता है। लेकिन इस शहर ने मेरा बच्चा मुझसे छीन लिया। देखो आज हम अपने ही घर में मेहमान बन गए। अब हम आएंगे तो गेस्ट रूम में रहेंगे जी। यही दिन देखने के लिए गाँव में आपने कर्ज लेकर मेरे गहने रखकर मकान बनाये थे। दो साल मेरा बच्चा शहर में क्या रहा आपने उसके लिए टॉयलेट बनवाया की कहीं उसे बाहर जाने में शर्म न आये और वो ये सब एक झटके में भूल गया। हम कल सुबह ही यहाँ से अपने गाँव अपने घर चलते है। मैं घर से गेस्ट बनकर नहीं रह सकती।" अवन्ति देवी ने बच्चों की तरह बिलखते हुए कहा

"हाँ हम सुबह ही निकल पड़ेंगे तुम शांत हो जाओ।" रामकुमार जी ने अपनी पत्नी की दिलासा देते हुआ कहा


अगली सुबह बस स्टैण्ड पर। "कुछ दिन और रुक जाते। इतनी भी क्या जल्दी थी।" महेश ने कहा

"तेरी माँ ने कल ही डिसाइड कर लिया था की हम आज सुबह ही जायेंगे। रामकुमार जी ने डिसाइड शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा।

"हाँ बेटा तुझे तो पता ही है। अब हमें गाँव ही सूट करेगा।" अवन्ति देवी सूट शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा। महेश को उन दोनों का व्यवहार कुछ अजीब सा लगा। वो समझ गया था ये दोनों उसको ताना मार रहे थे।

खैर तभी गाड़ी आ गई। बेटे ने दोनों के पैर छुए और पहुँचते ही फ़ोन करने को कहा। गाड़ी रवाना हो गई

"अब मुझे सरप्राइज का मतलब समझ में आया है। पहले मैं देखता था की ये शहर में हर कोई सरप्राइज देता है। जिसे देखो सरप्राइज।" रामकुमार जी ने हँसते हुए कहा।

"अच्छा मुझे भी तो बताओ क्या समझ में आया आपको " अवन्ति देवी ने उत्सुकता से पूछा

"देखो सरप्राइज देने वाला सामने वाले को ऐसी चीज देता है जिससे उसके स्वाभिमान को चोट पहुँचती है। इसीलिए तो ये सारा शहर दुःखी रहता है। ये सरप्राइज पर सरकार को बैन लगा देना चाहिए।" रामकुमार जी ने ज़ोर से ठहाका मारते हुए कहा।


"आप भी कुछ भी बोलते है मुझे एक बात समझ नहीं आई।"

"वो क्या ?"

जब आपने घर में टॉयलेट बनवाया था तब महेश ने कहा की "क्या सरप्राइज मिला है मुझे गाँव में आते ही। तो जो हमने जो दिया उसको सरप्राइज बोलते है या उसने जो हमें बिना बताये घर बनाकर दिखाया है। उसको सरप्राइज बोलते है।" अवन्ति देवी ने उत्सुकता से पूछा

"दोनों को ही नहीं बोलते।"

"अच्छा वो कैसे।"

कभी सोचा था ऐसे बोरिया बिस्तर बांध के हमेशा के लिए गाँव जाना पड़ेगा और एक दिन अपना ही खून पराया हो जायेगा।"

"नहीं।"

"बस इसी को सरप्राइज बोलते है।"

ये बात सुनकर कुछ पल दोनों खूब हँसे। फिर एकदम से भावुक हो गए। रामकुमार जी ने अपनी पत्नी का हाथ कसकर पकड़ा। दोनों ने एक दूसरे को देखा और फिर निकल पड़े अपने नए पड़ाव पर।



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