सपनों की उड़ान
सपनों की उड़ान
दिनेश ने स्कूल शिक्षा सरकारी स्कूल से की थी। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न हो कि वजह से घर से ही कॉलेज की पढ़ाई की थी, पर वह कॉलेज भी हिन्दी माध्यम था। दिनेश का कॉलेज खत्म हो चुका था अब घर की आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए नौकरी की तलाश करनी थी। दिनेश को ज्यादा अंग्रेजी नहीं आती थी लेकिन हिन्दी में उसकी काफी रुचि थी। इधर -उधर भटकने के बाद उसे नौकरी नहीं मिली लेकिन दिनेश को लेख और कविताएँ लिखने का काफी शौक था।
एक दिन उसके शहर में कवि सम्मेलन का आयोजन हो रहा था, जिसमें बड़े -बड़े कवि एवं लेखक आ रहे थे, जिसमें से शहर में से लोगो को चुना जा रहा था। दिनेश ने कुछ सोचा समझा नहीं और झट से अपना नाम दर्ज करा दिया। सब बारी -बारी से आते गए और दिनेश का नम्बर आया और ऐसी कविता सुनाई कि लोगो की आँखें झलक गई और उसको सलेक्ट कर लिया। वह काफी खुश हो गया कि उसने अपने सपनों को पँख दिया। कुछ सालों बाद दिनेश की क़िस्मत काफी चमक गई, वह काफी अमीर होने लगा उसकी किताबें छपने लगी। दिनेश की तरह कितने लोग हैं जो अपने सपनों को पंख नहीं दे पाते।