सफर वो अनजान था

सफर वो अनजान था

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बेटा तुमने किसी से बात की है नौकरी के बारे में या अनजाने सफर पर निकल रहे हो।

रवि समान पैक करते हुए कहता है माँ घर बैठे नौकरी तो नही मिलने वाली उसके लिए तो घर से तो निकलना पड़ेगा। अपने शहर में तो बहुत ढूँढ़ा पर नहीं मिला। अब जा रहा हूँ। मुंबई वहा तो कोई ना कोई काम तो जरुर मिल जायेगा।

पर बेटा तू चला गया तो घर कितना सूना हो जायेगा और तेरी कमला भी तो कैसे रहेगी तेरे बिना। ऐसा कर तू उसे भी अपने साथ ले जा।

नही माँ अभी मैं किसी को नहीं ले जा रहा साथ में, पर एक बार नौकरी लग जाऐ वहा पर तो मैं आप दोनों को अपने साथ ले जाऊंगा।

कमला भी कोने में उदास खड़ी थी चाहती तो वो भी थी कि पति ना जाऐ पर पापी पेट का सवाल था। व्यवस्था तो करनी ही थी ।

रवि निकल गया नौकरी की तलाश में एक अनजान सफर तय करने ना मंजिल का पता था ना रास्ता का।

रवि पहुँच गया मुम्बई दस दिनों तक इधर उधर नौकरी के लिये भटकता रहा। कभी स्टेशन तो कभी मंदिर में रात काटता पर नौकरी नहीं मिली। जेब में पैसे भी खर्च हो गए एक दिन वह सिरडी साई बाबा के दर्शन के लिए पहुंचा और साई बाबा के आगे माथा टेक प्रार्थना करने लगा बाबा आप सबकी झोली भरते हो कब हमारी झोली में खुशिया डालेगे।

बाबा का चमत्कार ही था कि एक आये साड़ी के व्यपारी दर्शन के लिए उसे अपने दुकान पर रख लिया था।


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