सोलमेट

सोलमेट

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नंदनी इधर आओ समीर की इस आवाज़ से चौंककर नंदनी खड़ी हो गई, कुर्सी से स्टेज तक जाते हुए पिछले कुछ सालों का सफ़र मस्तिष्क में किसी फिल्म की तरह चलने लगा,

बाबा ने खुशीयों से लिपटी आवाज़ लगायी नंदनी देख तो बेटी तेरे लिये कितने अच्छे घर से रिश्ता आया है,

कल वो लोग तुझे देखने आ रहे है, बस एक तेरी जिम्मेदारी से निपट लूँ उसके बाद उपर वाले का बुलावा भी आ जाए तो कोई गम नहीं, नंदनी बोली पर बाबा मुझे शादी नहीं करनी मैं चली जाऊँगी तो आपका खयाल कौन रखेगा।

अरे नहीं बेटी तू मेरी चिंता मत कर तुम्हारी माँ की यादों के सहारे ज़िन्दगी कट ही जाएगी , ससुराल में तू राज करेगी बाप बेटा दो ही है, हाँ माँ के सुख से तू वहाँ भी वंचित रहेगी लड़के की माँ भी नहीं है, इतना अच्छा रिश्ता आया है हाँ कर देना।

समय के चलते सब तय हो गया और शादी भी हो गई, नंदनी समीर की दुल्हन बनकर आ गई,

पता नहीं रिश्ता करवाने वाले ने झूठ क्यूँ बोला की लड़का पढ़ा लिखा है और अच्छी तनख्वाह की नौकरी भी है,

ससुराल आते ही पहाड़ टूट पड़ा रात को समीर दारु के नशे में चूर लड़खड़ाता रुम में दाखिल हुआ और बोला, सुनों क्या नाम है तुम्हारा मुझे तुमसे शादी करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी पापा ने ज़िद करके करवाई है, तुम रहना चाहती हो रहो, जाना चाहती हो चली जाओ मेरे पास तुम्हें देनेके लिये कुछ भी नहीं है, ना प्यार, ना पैसा, ना इज्जत, ना शोहरत मुझे मेरी ज़िन्दगी के साथ अकेला छोड़ दो, और नंदनी के सपनों की चिता जलाकर सो गया। नंदनी पुरी रात बिलखती रही और सुबह क्या करूँ क्या ना करूँ की असमंजस में थी की उसको सात फेरे लेते वक्त जो जो वचन लिये थे वो एक-एक कर याद आने लगे और एक ठोस निर्णय के साथ उठी , जा कर ससुर जी के पाँव छूएँ ओर पास बैठकर बोली, पिताजी मुझे कोई दोष नहीं देना आपको जो मेरी लकीरों में लिखा था हो गया, पर आप मुझे सारी सच्चाई बताईये ऐसी क्या मजबूरी थी जो आपने झूठ का सहारा लेकर मेरी ज़िंदगी बरबाद की।

हिम्मतलाल की हिम्मत टूट गई नंदनी से हाथ जोड़कर माफ़ी मांगकर बोले क्या बताऊँ बेटी समीर हमारी इकलौती संतान है, तो बड़े लाड़ प्यार में पाला उसकी माँ का बहुत लाड़ला था तो हर बात मनवा लेता था, और हम उसकी हर ज़िद्द पुरी करते थे।

अचानक सारी मुसीबतें एेक साथ आयी समीर १२ वी कक्षा में था तब उसकी माँ को कैंसर हुआ, उसकी देखभाल में मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी जो जमा मूड़ी थी वो सारवार में चली गयी फ़िर भी उसकी माँ तो ना बची, समीर पढने में बहुत तेज था फिर भी फ़ैल हुआ, अपनी माँ के चले जाने के सदमें में और कुछ गलत संगत की असर में वो खुद को बर्बाद करता चला गया,

ओर मुझे किसीने बताया की लड़के की शादी करवा दो सुधर जाएगा बस एेक बाप के दिल में बेटे के लिए जो प्यार है उसके आगे मजबूर होकर ये रास्ता अपनाया मुझे माफ़ कर दे बेटी।

नंदनी ने ससुर जी के आँसू पौंछे और बोली पापा आप चिंता मत किजिए आपका बेटा अब पढ़ेगा भी और कमाएगा भी।

पर बेटा मैं कैसे पढ़ाऊँगा इतनी मूड़ी भी नहीं बची और समीर को कैसे समझायेंगे, नंदनी बोली बाबा वो आप मुझ पर छोड़ दीजिए आपको बस मेरा साथ देना होगा, हिम्मतलाल जी ने नंदनी को आशीर्वाद देते हुए कहा तुम्हारे हर फैसले में मेरा सहकार बेटी, नंदनी ने कहा पापा मैं भी ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं पर कुछ काम जानती हूँ घर बैठे करूँगी और कमाऊँगी कुछ आपके पेंशन में से बचायेंगे उसमें से समीर को पढ़ायेंगे।

समीर की देखभाल, उसे प्यार से समझाना, मनाना नंदनी की ज़िंदगी का मकसद बन गया, समीर बेइज्ज़ती करता गया नंदनी का हौसला बढ़ता गया, सबसे पहले एेसे दोस्तों को दूर किया जो शराबी, जुआरी थे, फिर पढ़ने में दिलचस्पी बढ़ाने के लिए सारी किताबें घर में ले आई, आमदनी बढ़ाने के लिए जो भी आता था किया सिलाई, कढाई कुछ घरों में जा कर खाना तक बनाया,

धीरे-धीरे समीर को नंदनी की बातें समझमें आती गयी तो खुद में भी आत्मविश्वास जगाया, दिमाग तो तेज था ही मेहनत ओर लगन से एक-एक इम्तहान पास करता गया, यूँ कुछ सालों में नंदनी की मेहनत रंग लाई समीर I A S ओफ़िसर बन गया, आज उसकी नियुक्ति होने जा रही थी तो एक छोटा सा समारोह रखा था, कुछ प्रेस वालों ने सवाल किया आपकी success का राज़ बताईये सर?

तभी समीर ने आवाज़ लगाई नंदनी इधर आओ, नंदनी भारी कदमों से कुछ सकुचाती स्टेज पर पहूँची की समीर ने उसको उठा लिया ओर कहने लगा ये है मेरी success का राज़, मेरी बीवी, जिसकी बदौलत आज में इस मकाँ पर पहूँचा हूँ इसे मैं अपनी माँ कहूँ, बीवी कहूँ, दोस्त कहूँ, या राहबर कहूँ बस मैं आज जो कुछ भी हूँ नंदनी की वजह से हूँ।

अगर ये मेरे जीवन में नहीं आती तो मैं पड़ा होता किसी गंदी नाली के कीड़े की तरहा किसी शराबखाने की चौखट पर, नंदनी ने अर्धांगिनी शब्द को सही मायने में जी कर दिखाया है, मैं ज़िन्दगी भर के लिये इसका कर्जदार हूँ, आज से मेरी सारी खुशीयाँ नंदनी के नाम करता हूँ, मैंने नंदनी के रुप में एक बहुत ही प्यारा सोलमेट पाया है नंदनी इतना ही बोल पायी मेरी तपस्या आज सफ़ल हुई मेरे आराध्य, और समीर के चरणों में झुक गई।


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