सोच
सोच
"शादी के बाद भी अगर आप जॉब करना चाहेंगी , तो हम आपके लिए अपने घर के नियमों को बदलने के लिए भी तैयार हैं।" गौतम ने रमा को भरोसा दिलाया था।
रमा बस धीरे से मुस्कुरा दी थी। गौतम के साथ ये उसकी तीसरी मुलाकात थी। रिश्ता लगभग तय ही होने वाला था। आज गौतम के घरवाले रमा के घरवालों से बात करने आए थे।
रमा के पिता ने रमा की मर्ज़ी पर सब कुछ छोड़ दिया था। इस समय वे दोनों कमरे में अलग बैठे कुछ बातें कर रहे थे।
गौतम को रमा इतनी भा गई थी कि वह अपने घर के नियम तक बदलने को तैयार था। वरना उनके यहाँ लड़कियों का नौकरी करना बहुत बुरा समझा जाता रहा था।
तभी रमा के फोन पर एक नम्बर फ़्लैश हुआ और रिंग बजी। रमा ने जल्दी से फोन उठा लिया मगर गौतम तब तक सुमित नाम पढ़ चुका था।
रमा ने बस "हां हां" कह कर फ़ोन काट दिया।
"देखो रमा आपको नौकरी की इजाज़त तो दी जाएगी मगर किसी भी सहकर्मी से दोस्ती की इजाज़त नही, आपको पिछली सब दोस्तियाँ भुलानी होंगी" गौतम का लहज़ा कुछ बदला बदला सा था।
रमा ने पहले की भांति ही मुस्कुराते हुए गर्दन हिला दी।
"तो जान सकता हूं कि कौन था ये सुमित, मेरे सामने ठीक से बात क्यो नही कर पाई आप" "मेरी बात करवा सकती हो उससे? गौतम ने रमा की आंखों में झांकते हुए पूछा।
रमा को जैसे अपने कानों पर विश्वास नही हो रहा था।
तभी उसका छोटा भाई सैम चाय लेकर कमरे में आ गया।
रमा ने सुमित नम्बर पर कॉल किया तो सैम की पॉकेट में रखा फोन रिंग करने लगा ।
गौतम कुछ सकपका गया था।
"ये है मेरा भाई सुमित जिसे हम प्यार से सैम कहते हैं। चाय ले आऊँ क्या पूछ रहा था । अगर मैं अपनी अग्निपरीक्षा में सफल हो गईं हूँ तो प्लीज मेरी एक बात याद रखना , फ्यूचर में जिससे भी तुम्हारी शादी हो ना ,उसके लिए अपनी सोच बदलना सिर्फ नियम बदलने से कुछ नही होगा।"
कहकर रमा कमरे से बाहर आ गई।