सोच के देखियेगा
सोच के देखियेगा
कुछ करनी,कुछ कर्म गति
कुछ पूर्व जन्म के भाग
जम्बू बोले या गत भई
तू क्यों बोले रे काग।
मेरी माँ ने ऐसी कोई कहानी सुनाई थी मुझे बहुत पहले।अभी भी ढूंढती ही रहती हूँ कि ये कहानी जिसका ये छंद याद रह गया है वह कहीं से मिल जाये पढ़ने को।
जाने क्यों लगता है कि की इस कहानी में कुछ तो ऐसा होगा जो मेरे लिए जरूरी है जानना।बहरहाल, इस छंद से मेरी एक सोच को बहुत बल भी मिलता है।वो सोच जो एक दिन अनायास ही मेरे मन मे कौंधी थी जिसका कारण भी अब याद नहीं है।
आप सब पाठक कहेंगे ये क्या बात हुई।लगातार अपनी दो बातों को शुरू करने के बाद यही कह रही हूँ कि कारण याद नहीं। लेकिन यही सच है और शायद यह नेमत है ईश्वर की।मेरी बातें अटपटी सी लगती होंगी। लेकिन सच यही है कि मेरी बातों को याद न रख पाने की कमी मेरे लिए वरदान सी है। मेरा व्यक्तित्व बहुत सोचता है,और इस सोचने की आदत ने, मेरी इस करनी ने मुझे कई बार अवसाद के रसातल में भी पहुंचाया है। लेकिन क्योंकि याद नहीं रहता तो किसी जन्म के भाग से में खुद ब खुद उबर आती हूँ। कोई भी घटना अधिक समय तक मुझे अपने प्रभाव में नहीं रख पाती।
पहले किसी ने कोई बात कह दी, मर्म पर लग गयी तो बिखर जाती थी,सोचती थी आखिर ऐसा क्यों कहा होगा भला, मैंने तो अमुक के साथ कुछ गलत ध्येय से कभी न सोचा न किया। लेकिन फिर इधर उधर अपने इन्ही सवालों के जवाब ढूंढते कइयों के सही गलत विचार मेरे मन को और छलनी कर जाते थे। ये कर्म गति ही थी मेरी की खुद ही बटोरती थी शोर लोगों का।
तो अब मुझे समझ आता है कि क्यों वह छंद ही याद है। अब लगता है कि इसका कारण वो सोच है जिसे इस छंद को बल मिला। मेरी वो सोच ये कहती है कि ईश्वर ने सिर्फ हमारी आत्मा को, ये शरीर और इससे जुड़े अन्य सम्बन्ध दिए और एक फ्रेम दिया जीवन का जो एक बड़ी सी पटकथा का हिस्सा है।जिससे हमें अपनी आत्मा को परिष्कृत कर उनमे(परम सत्ता-ईश्वर) विलीन होना है। वही अंतिम लक्ष्य है।सो इस जीवन में धरती पर चल रही पटकथा में हमारे संचित कर्म, हमारी प्रतिक्रिया से उपजे अनुभव और हमारे आत्मा के पूर्व अनुबंध ये सब अन्य शरीरधारियों से जुड़े हुए हैं।
यहां अगर आप सब समझ पाएं तो, इस पटकथा में जो कुछ भी घटित होता है उसके लिए न ईश्वर हमे शाबाशी देते हैं न दंड, ये हमारे अनवरत चले आ रहे कर्मो का बहीखाता है।वरना अबोध बच्चों का क्या दोष है कि वे जन्मते ही कूड़े में फेंक दिए जाते है और जानवर उनकी दुर्गति करते हैं।या फिर वे बच्चे जो रईसों के घर जन्मते है और दुष्कर्म के बाद भी पूरी आयु सुखों में बिताते हैं।
मेरी सोच के विरोध में कई मत होते है लेकिन मुझे उनसे कोई द्वेष नहीं रहता।क्योंकि मेरी सोच यही कहती है कि यहां की प्रतिक्रिया आगे जानी है। यहां क्रिया प्रतिक्रिया से ऋणानुबन्ध बनेंगे। जो फिर अगले जन्म की भूमिका बनेंगे। और फिर वही बात की कुछ करनी कुछ कर्म गति कुछ पूर्व जन्म के भाग,तो अगर ये कर्मो का चक्र स्वयम नहीं तोड़ा तो ईश्वर नहीं तोड़ेंगे बंधु न वे कुछ घटित होने से रोकेंगे क्योंकि वे आपकी बहुत बड़ी सहायता पहले ही कर चुके हैं।
तो ईश्वर की ओर बस शीश नवाईये, धन्यवाद दीजिये की यह जीवन दिया,जैसा भी दिया। अन्यथा एक ज्ञान धारा यह भी कहती है कि मनुष्य शरीर के इतर जो भी शरीर जीव युक्त हैं वे अत्यधिक दुष्कर हैं।
सोच के देखियेगा।