संयम
संयम
‘उफ़्फ़, हमारे टकराने से चिंगारियाँ निकल रहीं।’
‘किन्तु हम दोनों तो सहेलियाँ हैं न, आग क्यों पैदा कर रहे हम। हम से जुड़े पल्लव भी नाहक हम से अलग हो रहे
टूट टूटकर।’
‘कुसूर हमारा नहीं, इन आँधियों का है।’
‘खुद को संयत रखो बहन’
‘कोशिश तो कर रहे पर उनका सामना कैसे करें?’
‘वक्त का इंतज़ार करों’
धीरे धीरे आँधियाँ थम गईं और विशाल पीपल की दोनों डालियाँ मंद हवा के झोंकों में कोरस गाने लगीं।
न जाने किस आस में शाख से झरे पत्ते इधर उधर दौड़ते रहे ।