संवेदनहीन
संवेदनहीन
शाम गहरा रही थी और कुछ अंधेरा सा हो चला था।पर मौसम में घुली ठंडक के कारण निर्मला का मन आज बिस्तर छोड़ने को राजी न था।कि तभी उसकी काम वाली बाई ने उससे कहा मेमसाब आज ठंड कुछ ज्यादा है।
और मेरे साथ मेरी छोटी बेटी भी आज काम पर आई है।अतः आज अगर हमें बर्तन धोने के लिए गीजर का थोड़ा गर्म पानी मिल जाता।
वो आगे कुछ कह पाती उससे पहले ही अपने गर्म बिस्तर में धसी निर्मला उससे बोली, ये कोई कश्मीर नहीं है और ना ही बाहर कोई बर्फ गिर रही है,जो तुम्हे अभी से रोजमर्रा के काम के लिए गर्म पानी की जरूरत महसूस होने लगी।
अभी तो ठंड ठीक से आई भी नही है,और तुम गरीब लोग तो जैसे मक्कारी के बहाने ही ढूंढते रहते हो। फिर निर्मला की लताड़ सुन अब वो सर झुकाए किचन की ओर मुड़ गई।और निर्मला अपने नौकर को जोर से पुकारते हुए बोली,"ए रामदीन मुए अब क्या मेरे ठंड में कड़क हो जाने के बाद रूम हीटर चालू करेगा।"