संस्कार 2
संस्कार 2
" चल ऐ बेवकूफ़ सुबह पांच बजे का अलार्म लगा दे।" विश्वास ने लापरवाही से फोन हाथ में लेकर कहा।
"किस से इतनी बदतमीजी से बात कर रहे हो लल्ला।" पास लेटी दादी ने पूछा।
"किसी से नहीं दादी..... ये तो गूगल असिस्टेंट है, सुबह का अलार्म सैट करने को कह रहा था।" विश्वास ने जम्हाई लेते हुए कहा।
"गूगल असिस्टेंट ? अभी तो तुम कह रहे थे के किसी से नहीं। शगुन(दादी) ने कहा।
"अरे दादी..... वो तो एक मशीन है कुछ पूछें तो ... जवाब बता देती है, कोई काम जैसे अलार्म लगाना या कुछ ढूंढना हो..... सारे काम कर देती है। "विश्वास दादी को समझाते हुए बोला।
" अच्छा। " दादी ने हैरान होते हुए कहा। " तो फिर तुम उसे पागल, भोंदू, बुद्धु क्यों बोल रहे थे।
"अरे दादी बताया तो आपको कि वो तो एक मशीन है.... उसे कुछ भी कह दो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। विश्वास ने हंसते हुए कहा।
" फर्क पड़ता है बेटा.... तुम कहते हो कि वो तुम्हारे बताये सारे काम करती है तो वो तो तुम्हारी मददगार हुई "और जहाँ तक ना समझने की बात है तो किसी ने तो उसको बनाया ही होगा और वो समय समय पर उसे चैक भी करता होगा.... तब वो व्यक्ति तुम्हारे व्यवहार से ही तुम्हारे व्यक्तित्व का अनुमान लगायेगा।" दादी ने समझाते हुए कहा।
"पर दादी उसे तो हमारी भाषा........ ।" विश्वास ने दलील देने की कोशिश की।
"तुम्हीं तो कहते हो आज कल भाषा कोई अड़चन नहीं...... है ना? देखो बेटा हमारे यहाँ तो पेड़-पौधों, नदियों, पहाडों को भी आदर दिया जाता है और तुम अपने मददगार को...... मुझे तो तुम्हारी ये बात अच्छी नहीं लगी। दादी ने उदास लहजे से कहा।
"साॅरी दादी..... आज के बाद मै सबसे आदर से पेश आऊंँगा, फिर चाहे वो मशीन हो, इन्सान हो या फिर कोई भी हो..... क्योंकि मैं अपनी दादी का अच्छा पोता हूँ।" विश्वास ने दादी के गले में बांहें डालते हुए कहा।
"हाँ... मेरे बच्चे।" शगुन ने विश्वास को बांहों में भरते हुए कहा।
