संपूर्ण

संपूर्ण

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नन्ही उंगलियां उसकी घास में रेंग रही थी जैसे कुछ प्रिय सा जिसे छूने की कोशिश। जूते निकाल धीरे धीरे धूप का पीछा करते हुए जैसे ही आगे बढ़ा उसकी मां ने हाथ बढ़ा कर पीछे लिया। बेंच पर उसे बिठा कर वो फोन पर बातों में मशगूल हो गई।


"समझता क्या था वो अपने आप को? ना उसकी सैलरी मेरे बराबर ना उसका ओहदा। हमेशा से मेरी ही मेहनत और कमाई से घर चला। अब अच्छा सबक सिखाया.. बच्चे की कस्टडी तो मुझे मिलनी ही थी.. अरे हाँ प्रेमांश का ध्यान मुझसे बेटर कौन रखेगा.. अभी हम दुनिया के सबसे खूबसूरत और महंगे पार्क में है.. चलो मैं बाद में बात करती हूं।"


"अच्छा बेटा, टेल मी! इतने बड़े पार्क में आपको सबसे प्यारी कौन सी चीज़ लगी?"


नन्ही उँगलियों ने फिर वहीं इशारा किया, ध्यान से देखा तो पता चला वो कुछ परछाइयां थी, किसी परिवार की, खुशियों की, संपूर्ण परिवार की.. जहां उसकी असली खुशियां थी। वो पार्क नहीं उसे तो माँ पापा दोनों के हाथ पकड़ खेलना पसंद था वहाँ, उसका घर उसकी पसंदीदा जगह। 


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