संकल्प
संकल्प
"अरे छोटी सुना है सुग्गु कलक्टर हो गई है बधाई हो तुझे।"
"हाँ जीजी एकदम सच्ची खबर है ये," मनीषा उत्साहित होते हुए बोली।
"चलो अच्छा है ...तेरे भी भाग जागेI वैसे कमाल हो गया, तू तो कोई खास नहीं थी पढ़ाई में और विश्वास, उसने भी एक-एक क्लास में दो-दो साल लगाये।" सुलोचना ने कटाक्षपूर्ण लहजे में कहा।
दूसरे कमरे से आती सुग्गु ने माँ के रंग बदलते चेहरे को देख लिया, उसका दबा गुस्सा फूट पड़ा।
"अच्छा मौसी आप किस बात से परेशान हैं? मैंने अपनी जीतोड़ मेहनत से कुछ पा लिया या फिर आपके बच्चे कुछ नहीं पा सकेI असल में आप अपने आगे किसी को ऊपर उठता नहीं देख सकतीI पहले मेरी माँ को आपने नालायक कहकर उनका मनोबल तोड़ दिया और वो चाह कर भी सफल नहीं हो पाई और नाना जी का एक दामाद सरकारी अफसर था और दूसरा एक किसान। मैंने दसवीं की...बाहरवीं की, आपने हर बार अपने बच्चों के मुकाबले मुझे कमतर ठहराया, कभी मेरे सरकारी स्कूल को लेकर तो कभी भाषा का माध्यम लेकरI पर मैंने भी संकल्प लिया था अपने माता-पिता को गर्वित करने का, इसलिए कभी आपकी बात नहीं काटी। पर आपने आज फिर मेरी माँ का गर्व छीनने की कोशिश की और वो मैं सहन नहीं करूँगी।" सुग्गु ने थोड़ा तल्ख़ लहजे में कहा।
"क्या सुग्गु, तुम तो बुरा मान गईI अरे मैं तो प्यार में छेड़ रही थी छोटी को," सुलोचना खिसिया के बोली।
सुग्गु मुस्कुरा रही थी, उसकी माँ के चेहरे की दमक लौट रही थी।
