Jeet Kumar

Abstract

4.5  

Jeet Kumar

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संघर्ष!

संघर्ष!

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अजीब कशमकश है यह जिंदगी में जीना दुश्वार हो जाती है जब हालात बद से बदतर हो जाते हैं, इसी तरह जिंदगी को संभाला था मैंने और समेट के एक अटैची में बांध के रख कभी-कभी मैं जरूर था अक्सर मछली पकड़ते हुए जब मछुआरे मुझसे पूछते हैं की मैं जब जाल तो किस प्रकार की मेरी शैली होती है, लोग जानना चाहते थे। 

एक कहानी है मंगल सिंह की उड़ीसा का रहने वाला एक निवासी था, मलखान गिरी से कुछ दूर उसका घर था जेंडर से चारों तरफ घिरा सा मंजर था। मंगल अपनी पत्नी नीलू और दो बेटे राकेश और मुकेश और एक बेटी शांति आज की फैमिली थी। इनकी मंगल अपने दोनों बेटे को मछुआरे की ट्रेनिंग दे रहा। अब मछुआरा का बेटा मछुआरा ही तो बनेगा जो हमारे पूर्वज करते आ रहे थे वह हमारे आने वाले भविष्य के लोग भी करेंगे।

1 दिन सुबह मंगल नाव में मछली पकड़ रहा था । अचानक हवा चलने लगी बादल छाने लगे बिजली कड़कने लगी और नदी की लहर हिल रही थी। मानव में इस आगोश में समा ना जाऊ। इसी तरह में नदी के किनारे पहुंचा और कुछ बचे कुचे मछली को अपने थैली में रख कर जाल को वही छोड़कर मैं घर की ओर निकल पड़ा बारिश बढ़ गई थी। मैं किसी तरह अपने घर पहुंचा मेरे बेटे राकेश ने दरवाजा खोला वह लोग बहुत चिंतित मुझे देख कर हैरान हो गए क्योंकि मैं भी गा भागा आ रहा था। मेरी पत्नी नीलू ने सबसे पहले मुझसे एक सवाल पूछा बच्चे भूखे हैं कब से।

मेरे मन में एक ख्याल बार-बार खाया जा रहा था कि बच्चे भूखे हैं। और मुझे कुछ मछली मिल पाया जिससे किसी एक का एक पेट भर पाना संभव हो सकता था। सपने थोड़ा-थोड़ा खाया और पानी पी के सो गया कुछ करने को था नहीं अब कुछ सोच ही रहा था। कि अचानक छत से एक बूंद मेरे चेहरे पर आ टपकी। जिंदगी इम्तिहान ले रही थी इस कदर कि मैं हार जाऊं उससे पहले मुझसे मेरा अस्तित्व मांग रहे थे। 

अगले दिन मैंने सुबह जल्दी उठकर नदी जाने की सूची कि आज मैं कुछ पैसे कमा लूंगा सुबह की शुरुआत तो अच्छी हुई पर कुछ खास नहीं हो पाया था कुछ ₹200 इकट्ठे हुए थे। मगर इतने काफी नहीं थे। जिससे मैं अपना घर चला सकूं। जिंदगी इतने दुख देती है गरीब के झूले में क्यों अमीर अपनी झोली बंद किए बैठे हैं। 

अब समझ में आ रहा था अगर जिंदगी में कुछ बदलाव लाने हैं ।तो कुछ रास्ते हमें भी छोड़ने पड़ेंगे हम समझ चुके थे। मुझे अपनी फैमिली का दर्द देखा नहीं चाह रहा था। कब तक देखता मेरी बेटी की उन खौफ को मैं पूरा ना कर पा रहा था। इधर सरकार ने ऐलान किया था कि सभी गरीबों को पक्के घर और राशन कार्ड दिया जाएगा अब तक 20 साल हो चुके थे मेरी शादी को मेरे पास कुछ भी नहीं था। सिवाय इसके कि मैं एक मछुआरा जिसकी जिंदगी मछली पकड़ने के जाल के सहारे चलेगी। 

1 दिन कुछ फिश कंपनी मलकानगिरी में उन्होंने वहां के सारे मछुआरों से बातचीत की और कहा उनके सारे मछली हुए एक्सपोर्ट करेंगे विदेशों में इनसे उनको बहुत फायदा होने वाला था। अब खुशी की लहर चेहरे पर आ रही थी। मछुआरे भाई बहुत ही खुश थे। क्योंकि कोई भी गरीब कभी पैसा नहीं बनाता सिर्फ अपनी जरूरतों को पूरी करते हैं। यही उसकी जरूरत थी।

देखते देखते मंगल अब पहले से थोड़ा बेहतर हो गया था। उसने जंगल छोड़कर शहर में अपना ठिकाना बसा लिया था। मछलियों का लेन-देन करता था। देखते-देखते कुछ साल बीत गए, उसके दोनों बेटे अब बड़े हो चुके थे बेटी और कॉलेज जाने लगी थी सब अच्छा चल रहा था। एक बेटा राकेश जिसकी खुद की प्रिंटिंग की दुकान खोल ली थी अच्छी खासी कमाई हो जाती थी। और मुकेश अपने पापा के साथ मछली के बिजनेस में लग गया बचपन में उसने पापा से यही सुना था कि हमारे पूर्वज यही तो करते हुए आ रहे हैं और हमें भी यही करना है।

सब जैसे ही चल रहा था बेटी की पढ़ाई कंप्लीट हो गई, शादी की उम्र हो गई थी दोनों बेटे ने शादी ना करने का फैसला किया था। बेटी की शादी होगी फिर बेटे का देखा जाएगा। रिश्ते आने लगे थे बेटी के लिए पर कुछ रिश्ते समझ नहीं आ रहे थे। फैसला जो करना था भविष्य अच्छा हो मेरी बेटी का यही तो चाहता था। वह घड़ी आ गई बेटी की शादी तय हो गई थी लड़का डॉक्टर था

लड़का राज्य की राजधानी भुवनेश्वर में नौकरी करता था और वही कई सालों से रह रहा था अब शादी के बाद बेटी की जुदाई हमसे देखी तो नहीं जाएगी पर उसका असली घर तो उसका ससुराल होता है यहां सोच कर मैं अपने आप को शांत कर लिया। 

डोली सज धज के घर से विदा ले ली घर में अब आंसुओं की धार बह रही थी। मैं अपनी बेटी को दूर जाते देख रहा था और कुछ ही देर में मेरी आंखों से ओझल हो गई, ऐसा तो होना था मगर इतनी जल्दी कभी सोचा ना था। अब सारे थक हार कर सो गए। बस इतनी सी थी यह कहानी।


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