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Anshu Shri Saxena

Inspirational

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Anshu Shri Saxena

Inspirational

संबल

संबल

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आज जब मैं सुबह बस में चढ़ी तो बस लगभग पूरी ख़ाली थी। मेरी नज़र सबसे पीछे की सीट पर बैठी क़रीब चौदह पंद्रह वर्षीया लड़की पर पड़ी जो कोने में खिड़की के पास बैठी थी।

वह स्कूल यूनिफ़ॉर्म में थी इसलिये यह स्पष्ट था कि वह स्कूल जा रही थी। उस लड़की के बग़ल में एक नवयुवक बैठा था। लड़की के चेहरे पर डर साफ़ झलक रहा था, शायद दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया कांड को बीते ज़्यादा दिन नहीं हुए थे।

पहले मैं आगे की सीट पर बैठने चली, फिर न जाने क्यों उस डरी हुई लड़की का चेहरा याद आ गया। मैं पीछे की सीट की ओर बढ़ी और उस नवयुवक को दूसरी तरफ़ सरकने को बोल, लड़की और नवयुवक के बीच में बैठ गई।

मेरे इस कृत्य से लड़की की आँखों में चमक आ गई और डर छूमंतर हो गया। वह मुस्कुरा कर बोली, “थैंक यू आंटी।“ मैं सोचने लगी, माँ होने के नाते मेरा कर्तव्य केवल अपनी बेटी की रक्षा करना ही नहीं बल्कि सभी बेटियों को सुरक्षित महसूस कराना भी है। यदि हम अपनी बच्चियाों की सुरक्षा चाहते हैं तो हमें भी दूसरों के लिये आगे आना होगा।


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