समर्थन
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किसी राजनैतिक पार्टी के २ नेताओं के बीच की बातचीत:
नेता क्रमांक १: भाई। बहुत दिनों से मन में हूक़ उठ रही है, ग्लानि से भरा हुआ हूँ मैं कि ये किस पार्टी में मैं शामिल हो गया हूँ।
नेता क्रमांक २: क्यों क्या हुआ भाई। ऐसा क्या हो गया, जो मृत ईमान से भी पश्चाताप की चीखें निकलने लगीं।
नेता १: भाई। पार्टी में बहुत भाई-भतीजावाद फैला हुआ है।
नेता २: भाई। भाभी को भी तो पार्षद का चुनाव लड़वाया था पार्टी ने, फिर भाई-भतीजावाद कहाँ है पार्टी में।
नेता १ (थोड़ा तुनककर): तुम समझ नहीं रहे हो। पार्टी कुछ चुनिंदा लोगों को छोड़कर बाकी अन्य को ज़िम्मेदारी नहीं दे रही है।
नेता २: क्या बात कर रहे हो। तुम्हारे भांजे को तुम्हारे कहने पे, जिला स्तर पर युवा कार्यकर्ताओं का अध्यक्ष बनाया गया है, इसका अर्थ क्या वो उन चुनिंदा लोगों में से है।
नेता १: (गुस्से से): अमा यार। बड़े अहमक़ हो तुम। समझ ही नहीं रहे हो। पार्टी में बहुत भ्रष्टाचार व्याप्त है चंदे का हिसाब-किताब नहीं बताया जाता है।
नेता २ कुछ बोलता उससे पहले पहले नेता का मुँह-लगा चमचा आ गया और नेता जी के कान में कुछ फुसफुसाया जिससे उनके तनावपूर्ण चेहरे पे मुस्कराहट प्रकट हो गयी।
नेता २: क्या हुआ बंधू। ऐसा क्या हुआ जिसके कारण तुम तनावरहित हो गए।
नेता १: वो मेरे साले का ६ कि मी के रोड के एक भाग का टेंडर अटका हुआ था, मंत्री जी ने आज वो फ़ाइल पास करवा दी। अब मेरा संपूर्ण समर्थन पार्टी को है।
नेता २: भाई। मेरी भी फ़ाइल अटकी हुई और मेरा ईमान भी ग्लानि से भरता जा रहा है।