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Virender Veer Mehta

Crime Thriller

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Virender Veer Mehta

Crime Thriller

समायरा

समायरा

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सर्द जनवरी की उस शाम धारासार बरसात शुरू हो गई थी। वह नखशिख भींगा हुआ था और जंगल में पेड़ के नीचे खड़ा कांप रहा था, तभी जोर की बिजली कड़की और उसने देखा, उस पेड़ के ठीक पीछे एक मकान था।

पहली नज़र में उसे मकान में कोई खास बात नहीं दिखाई दी, लेकिन कुछ क्षण के बाद दोबारा चमकी बिजली की चमक में उसकी नज़र; उस मकान की खुली खिड़की के उस तरफ़ खड़े साए पर जा टिकी।

"समायरा ! उसके मुंह से निकला। और क्षण भर के लिए उसका सर्वांग कांप गया। "नहीं, ये समायरा कैसे हो सकती है? उसे गुज़रे तो दो साल हो गए। बैंक डकैती के केस में पुलिस जिप्सी से भागने की कोशिश करने में मारी गई समायरा का तो मैंने अपने हाथों से उसका दाह संस्कार करवाया था।" सोचते हुए वह अपने आप से उलझ गया।

कोई और होता तो भय से उसका हार्ट फेल हो गया होता, लेकिन वह एक कठोर दिल का आदमी था। उसकी सारी जिंदगी अपराधियों के बीच ही गुजरी थी। उसने एक बारगी मोबाईल टॉर्च से खिड़की की ओर लाइट मारने के लिए सोचा, लेकिन किसी अज़नबी के घर पर ऐसा करना उसे सही नहीं लगा। बिजली एक बार फिर चमकी लेकिन इस बार वह खिड़की पर नहीं थी। एकबारगी उसे लगा कि यह उसका वहम होगा, लेकिन उसे ख़ुद की नज़र पर पूरा भरोसा था। उसने फ़ैसला किया कि वह उस मकान में जाकर सच्चाई जानने का प्रयास करेगा। और उस ढलती रात के अंधकार में ही कुछ पल के बाद वह उस मकान के दरवाज़े पर खड़ा डोर बेल बजा रहा था।

"जी कहिए।" सामने वही औरत खड़ी थी।


"जी, वो कुछ समय के लिए आश्रय मिल सकता है। बाहर बारिश बहुत तेज हो रही है।"


"जी क्यों नहीं, आइए अंदर आइए न।" कहते हुए उस औरत ने अंदर की ओर इशारा किया।


असमंजस की हालत में वह उस औरत के पीछे-पीछे अंदर चल पड़ा। "यह समायरा नहीं हो सकती तो फिर उसकी हमशक़्ल ! लेकिन कौन. . .?"


"थानेदार साहब, क्या सोच रहे हैं आप? लीजिए ये टॉवल लीजिए। शायद आप पहचाने नहीं मुझे।" उसे टॉवल देते हुए सहज ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई थी।


अब कहीं कोई शंका नहीं थी, लेकिन समायरा जीवित कैसे? ये एक बड़ा प्रश्न अभी भी था उसके सामने। सोचते हुए उसने अंदर प्रवेश किया। कीमती फर्नीचर से सजे कमरे में एक सोफे पर वह बैठ गया और अंदर का जायज़ा लेने लगा। मकान पूरी तरह से सुसज्जित व्यवस्थित था। उसने एक नज़र समायरा की ओर देखा और उसके दूसरा प्रश्न करने से पहले ही उसकी ओर अपना प्रश्न उछाल दिया। "समायरा, ये रहस्य क्या है। तुम्हें तो मार दिया गया था। तुम उस हमले से बची कैसे और वह कौन थी जिसे उस दिन शमशान में जलाया गया था।"


"थानेदार साहब, कोई बहुत बड़ा रहस्य नहीं है लेकिन इसके पीछे की कहानी जानने के लिए आपको थोड़ा और पीछे जाकर वह भी जानना पड़ेगा जो आप नहीं जानते।" कहते ह

ुए समायरा मुस्कराने लगी।


"जरूर जानना चाहूंगा समायरा, शायद मेरा भाग्य ही मुझे इस अधूरी कथा जानने के लिए यहां लेकर आया है।" कहते हुए वह सतर्क हो कर बैठ गया, जैसे उस कहानी के किसी भी अंश को मिस नहीं करना चाहता वह।


" थानेदार साहब, इस कहानी की शुरुआत उस रात के हादसे से करीब सात महीने पहले शुरू होती है, जब आप के थाने में एक नए सिपाही का ट्रान्सफ़र किया गया था।" समायरा ने अपनी बात विस्तार से कहनी शुरू की। "उस सिपाही ने बहुत जल्दी ही अपने व्यवहार से आप को खुश किया और आप का लेफ्ट हैंड बन बैठा। वह इतना शातिर और समझदार था कि उसने अपनी पकड़ आप के थाने में लगभग हर जगह बना ली।"

"कहीं तुम मेरे अंडर काम करने वाले सिपाही विक्टर की बात तो नहीं कर रही समायरा।" वह एकाएक चौंक गया।

"जी हां, वह विक्टर ही था। और आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि वह थाने की ड्यूटी निभाने के साथ-साथ हमारे ग्रुप को भी कई जरूरी इंफोर्मेशन शेयर करता था। उसी के इन्फॉर्मेशन बेस पर हमने उस बैंक डकैती की योजना तैयार की थी, और ठीक समय पर हमने उस काम को अंजाम भी दिया लेकिन ये मेरा दुर्भाग्य था कि सभी लोगों के साथ भागने के बीच मैं सफल नहीं हो पाई और पकड़ी गई। लेकिन मुझे खुशी थी कि डकैती की रक़म ले जाने में मेरे साथी कामयाब रहे।"

और उसके तीन दिन बाद तुम्हें कोर्ट ने पुलिस रिमांड पर दिया और उसी शाम जब तुम्हें जिप्सी से जेल में शिफ़्ट किया जा रहा था तो व्हाईट चर्च के मोड़ पर तुमने मेरा सर्विस रिवॉल्वर लेकर भागने की कोशिश की और ठीक चर्च के सामने तुम्हें मैंने विक्टर की गन से गोली मारी। ये तो मुझे मालूम है समायरा, लेकिन प्रश्न ये है कि तुम बची कैसे और मरने वाली लड़की कौन थी?" वह अभी भी असमंजस में था। 

"थानेदार साहब प्रश्न का उत्तर तो आपकी बात में ही है। हाँ चर्च के पास स्थित सरकारी अस्पताल में जाने वाली लड़की तो मैं ही थी, लेकिन उस अस्पताल से बाहर आने वाली डेड बॉडी मेरी न हो कर एक लावारिस लड़की की थी और इसका पूरा अरेंजमेंट भी विक्टर ने ही किया था।" कहते हुए समायरा मुस्कराने लगी।


"लेकिन वह गोली. . .! कहते-कहते वह रुक गया। "ओह तो विक्टर की गन में भरे हुए कारतूस भी नकली थे और यह सब उसी का प्लान था।"


'जी हां थानेदार साहब।"


"लेकिन उसने तुम लोगों के लिए इतना सब कुछ क्यों किया, क्या सिर्फ पैसों के लिए?" उसे ताज्जुब था।


"नहीं थानेदार साहब, अपनी पत्नी के लिए. . .!


वह समायरा की इस बात पर कोई प्रतिक्रिया करता; इससे पहले ही उसकी नज़र कमरे में सामने की दीवार पर जा टिकी, जहां लगी एक बड़ी तस्वीर में समायरा और विक्टर वैवाहिक ड्रेस में खड़े मुस्करा रहे थे।



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