Virender Veer Mehta

Inspirational

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Virender Veer Mehta

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साक्षरता की गूंज

साक्षरता की गूंज

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समय से पहुंचना था, इसलिए मैंने ये बस पकड़ ली थी। बैठने के लिए स्थान नहीं मिला, लेकिन एक ओर खड़े होने की जगह मिल गई। बस पूरी तरह भरी हुई थी। साथ चढ़ने वाले यात्रियों में पचास के आसपास की वह ग्रामीण स्त्री भी थी, जो बस की स्थिति देखकर अन्य सभी की तरह एक सीट के साथ टेक लगाकर खड़ी हो गई। उसी सीट पर बैठी दो युवा उच्च शिक्षित लड़कियाँ, उसको पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए अपनी बातों में लगी हुई थी। दूसरों की परेशानी समझ पाना शायद उनके वश में नहीं था। बहरहाल दो सीट पीछे बैठे एक वृद्ध ने अवश्य अपनी सीट से उठने का उपक्रम किया। "बहन तुम इधर बैठ जाओ, थक जाओगी।"


"नहीं आप बैठिए। सफर लंबा है, आप को इसकी अधिक जरूरत है।" स्त्री के कहे शब्दों से सहज ही वृद्ध की आँखों में आभार का भाव उभर आया।


"आंटी बैठ जाइए, वह सीट लेडीज के लिए ही है।" उन दोनों लड़कियों में से एक ने अपनी प्रतिक्रिया दर्ज की।


"येस, इट्स क्लियरली रिटन ओवर देयर।" (हाँ, ये उपर साफ-साफ लिखा भी हुआ है) दूसरी ने भी उसकी बात को पक्का कर दिया।


मैं कुछ बोलना चाहता था लेकिन मुझसे पहले ही उस ग्रामीण स्त्री ने शांत स्वर में एक सटीक जवाब दे दिया। "बेटी उन्हें (वृद्ध को) सीट की जरूरत मुझसे अधिक है और यह बात महसूस करने की है नियमों में तोलने की नहीं।"


"लेकिन आंटी. . .!" उसने कुछ कहना चाहा, तब तक दूसरी लड़की ने तीखे शब्दों से उसकी बात काट दी। "लीव हर, शी इज टोटली अनटॉट!" (छोड़ो उसे, वह पूरी तरह अनपढ़ है)


"सॉरी बेटी!" इस बार उस स्त्री का स्वर अपेक्षाकृत तेज था। "मैं तुम लोगों की तरह किसी कॉन्वेंट में तो नहीं पढ़ी लेकिन इतना अवश्य जानती हूँ कि 'रूल्स आर क्रिएटेड टू गिव कंम्फर्ट टू अस; नॉट टू पनिश अदर्स' (नियम हमें आराम देने के लिए बनाए जाते हैं, किसी दूसरे को सजा देने के लिए नहीं); समझी!"


अनायास ही उसकी साक्षरता की गूंज मेरे साथ अन्य कई लोगों के चेहरे पर भी सम्मान के साथ झलकने लगी थी, अलबत्ता वह दोनों जरूर खिड़की से बाहर, शाम के अंधेरे में कुछ ढूंढने लगी थी।



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