समानता आज भी नहीं
समानता आज भी नहीं
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ये कहानी है उस लड़के की जो की लड़के से ही प्यार करता था
क्या ये उसका कोई गुनाह था ? इसमें वो निर्दोष की क्या गलती थी क्या उसका समलैंगिक बनकर ईस संसार मे जन्म लेकर आना क्या उसके हाथ में था ? फिर भी दुनिया मे आज भी समानता का भाव दिखाई नहीं देता। वो बिचारा डर के साथ अपनी जिंदगी मे आगे बढ़ रहा था।
उसकी बढ़ती उम्र मानो उसे अंदर ही अंदर खाए जारही थी। मानो उसे हर पल जैसे मौत के आने का और लोकनिंदा के करीब ला रही थी। उसका वो डर की सच्चाई सबके सामने आने पर उसके साथ क्या किया जाएंगा ये सोच कर ही वो हर एक पल मरता रहा। अंदर ही अंदर घुट घुट कर जीता रहा।
ना किसी से कह पाता था और ना ही किसी को अपनी व्यथा बता पाने लायक खुद को समझता था। कितना कठिन होता होंगा ना उसका ऐसे जीना ?
जहाँ एक् तरफ उसके ऊपर भी सामान्य बच्चों के तरह हर प्रकार का भार था लेकिन साथ ही साथ ये भार और बोझ को अपने दिल में लिये घूमना और सबको ये अहसास करना की जैसे वो बोहोत ख़ुश है। सबसे ये छुपाना की वो कैसे दौर और किस दर्द में है।
जो दोष उसका हो ही ना फिर भी वो सजा भुगता रहा। क्यों आज भी हम इतनी छोटी सोच में जीरहे है ? जब आप उसे कुछ कहते हो तो एक बार सोचे होते की अगर आप उसकी स्थितियों में होते तो स्वयं का भी वैसे ही मजाक बनाते जैसे आज उसके ऊपर बनाए जारहे है आपकी ओर से।
ध्यान रखीये हर कोई सर्वश्रेष्ठ, सर्वगुणसम्पन्न,सम्पुर्ण नहीं होता है। फिर जवाब केवल उस निर्दोष से ही क्यौ? विचार करने वाली बात है हम एक ऐसे देश और परिवार से जहा हमे सभी का सम्मान करना सिखाया जाता है। पर फिर भी कुछ लोगों की छोटी सोच उन्हे ऐसा करने पर मजबूर करती है। लेकिन अब और नहीं हम सभी भारत के आजाद नागरिक है और सम्मान हमारे संस्कार है। कितने मासूमों की ये कहानी होंगी जिनको समानता आज भी नहीं।