समाज
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“देखिए वर्मा जी अब आप यह गलत बात कर रहे है। जब सब कुछ सही जा रहा था तो इसके बीच हमारे परिवार को लाना ठीक बात नहीं”
“देखिए हम किसी के परिवार को बीच में नहीं ला रहे है लेकिन किसी और इंसान पर इस तरह चीखना-चिल्लाना ठीक बात नहीं। आखिर दूसरों की भी कोई इज्जत है।”
“जी हमने कब मना किया है कि आपकी कोई इज्जत नही। हमारे शास्त्रों में सँसार के प्रत्येक जीव का सम्मान करना बताया गया है,फिर आप तो एक.………।”
तभी अंदर से एक आवाज आई-“एक मिनट जरा इधर तो आइये। जरा इस डिब्बे का ढक्कन तो खोल देते। मेरे हाथ दुख गए खोलते-खोलते।”
वर्मा जी अंदर आये और रसोई में जाकर खड़े हो गए और वर्माइन से ढक्कन खोलने के लिए डिब्बा मांगा-हाँ कौन सा डिब्बा है ? अबकी बार बाजार जाऊँगा तो ढक्कन ठीक करवा लाऊँगा,बड़ी समस्या रहती है।
वर्माइन ने वर्मा जी को घूर कर देखा। वर्मा जी सकपकाते हुए चुप हो गए। सहमते हुए बोले-कौन सा डिब्बा है? लाओ मैं खोल दूँ।
“तुम्हारी अक्ल का डिब्बा जो कभी खोलने पर भी नहीं खुलता।” वर्माइन घूरते हुए बोली।
“क्या हुआ ? अब तो मैने कुछ किया भी नहीं।” वर्मा जी खिसियाते हुए बोले।
वर्माइन बोली- अभी आप बाहर खड़े होकर क्या ज्ञान झाड़ रहे थे ? आप हमेशा कड़वी बाते ही क्यों करते है ? आज किस बात पर आपके अंदर का देशभक्त जागा है जो त्रिपाठीजी लपेटे में आ गए।
“अरे हमारे घर के सामने कूड़ा करकट डाल रहे थे यह कोई तरीका थोड़े ही है।” सफाईकर्मी किसलिए रखें है नगर निगम ने ?
“तो क्या आप चिल्लाने लगेंगें? वे तो शांत रह कर मीठे बन जाते है और आप पूरी दुनिया को सुनाते है। जाइये त्रिपाठी जी से माफी माँगिये।”
हम सभी इसी समाज का हिस्सा है और चाहकर भी मुँह नही मोड़ सकते इसलिए नीयत से ज्यादा लोकव्यवहार सन्तुलित होना चाहिये।