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VIPIN KUMAR TYAGI

Inspirational

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VIPIN KUMAR TYAGI

Inspirational

समाज सेवा को भी प्राथमिकता दे

समाज सेवा को भी प्राथमिकता दे

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आज मैं आपको एक ऐसे गरीब व्यक्ति की कहानी सुना रहा हूं जो प्रतिदिन लोगों की सहायता करता था। और उसी से लोगों कि दुआ लेता था। । मैं अक्सर मंदिर जाता हूं.. मैंने एक दिन ध्यान दिया कि एक व्यक्ति वहां पर लाइन लगाने व अक्षम लोगों को मंदिर दर्शन में मदद कर रहा था। मैंने सोचा कि वह कोई मंदिर कर्मचारी रहा होगा लेकिन मैंने उसे देखा कि वहां जो प्रसाद वितरण भक्त कर रहे है वह उसमें भी सहायता कर रहा था। तथा लोगों द्वारा जो प्रयोग के बाद पॉलीथीन या अन्य सामान इधर उधर फेंका गया था वह व्यक्ति उसे भी उठाकर डस्टबिन में डाल रहा था। मैंने उस दिन तो उस पर ध्यान नहीं दिया लेकिन अगली बार मैंने पुन उसे वहीं सेवा करते पाया मैं जब भी मंदिर जाता ऐसा ही करते हुए उसे पाता

एक दिन मेरी बेटी ने भी जिद की कि उसे भी प्रसाद वितरण करना है हमने प्रसाद तैयार करवाया तथा पहुंचे प्रसाद वितरण को। फिर हमने उस व्यक्ति को वहां पर सबकी सहायता करते पाया उस व्यक्ति ने हमारे प्रसाद वितरण में भी सहायता की उसने सभी लोगों को प्रसाद वितरित कराया लोगों की सहायता की अक्षम लोगों को सहारा देकर मंदिर तक लेकर गया खैर उस दिन मुझे उससे बात करने का समय मिला मैंने उससे पूछा कि क्या आप मंदिर कर्मचारी है उसने कहा नहीं तो मैंने पूछा फिर आप प्रतिदिन मंदिर के कार्यों में हाथ क्यों बटाते हो तथा यहां लोगों की इस प्रकार लगकर सहायता क्यों करते हो ? उसने जवाब दिया साहब यहां पर अनेक लोग आते है गरीबों को दान देते है उन्हें प्रसाद बांटते है तथा अनेक लोग मंदिर में भी दान देते है मेरे पास देने के लिए कुछ भी नहीं है मैं एक फैक्टरी में नौकरी करता हूं उसी से अपना घर चलाता हूं मेरे पास शाम का समय बचता है मैं प्रतिदिन श्याम को मंदिर आता हूं बेसहारा लोगों को सहारा देकर मंदिर दर्शन कराता हूं... लोगों की सहायता करता हूं लोगों की सहायता प्रसाद वितरण में करता हूं जो लोग मंदिर को गन्दा कर देते है तथा पॉलीथीन या अन्य सामान इधर उधर फेंक देते है उसे मैं उठाकर डस्टबिन में डाल देता हूं इससे मुझे लगता है कि मैं पैसे से तो सेवा नहीं कर पा रहा हूं लेकिन मैं इस प्रकार से जो भी कार्य करता हूं उससे मुझे संतोष मिलता है मुझे लोगों की तथा बेसहारा लोगों की सेवा का मौका मिलता है जिससे मुझे संतोष मिलता है तथा मैं स्वयं को सौभाग्यशाली समझता हूं कि मुझे ईश्वर ने यह मौका दिया... कुछ लोगों को ईश्वर पैसे से सेवा का मौका देता है कुछ को अन्य तरीकों से सेवा का मौका मिलता है मुझे इसी प्रकार से सेवा का मौका मिला इसके लिए मैं प्रतिदिन ईश्वर को धन्यवाद देता हूं मैंने उसकी बात ध्यान से सुनी तथा मैंने सोचा कि जिस गंदगी को अमीर लोग इधर उधर फेंक देते हैं तथा जिस पैसे को दान देकर वह गरीबो पर उपकार समझते है तथा जिस पैसे को देकर वह ईश्वर को दान देना समझते है वह कार्य उपकार नहीं है बल्कि उपकार तो वह गरीब व्यक्ति सेवा करके कर रहा था। जिसके पास देने के लिए पैसा तो नहीं था। लेकिन वह सेवा करता था। उन बेसहारा लोगों कि जिन्हें जरूरत होती थी उसके सहारे की तथा सफाई करके गंदगी दूर कर वह उन सभी व्यक्तियों की सहायता करता जिनको उस गंदगी से परेशानी होती तथा। मंदिर की सफाई कर वह भक्तो की सहायता भी करता था। ताकि लोगों को साफ सुथरा मंदिर मिले उसे अपने कार्यों पर संतोष था। वह ही सच्चा भक्त था। इस कहानी को सुनाने का मेरा मकसद यह है कि हमारे पास समाज को या किसी को देने के लिए भले ही पैसे हो या न हो लेकिन हम समाज को व बेसहारों को अपनी सेवा से भी बहुत कुछ दे सकते हैं बशर्ते की हमारी इच्छा शक्ति प्रबल हो और हम मानसिक रूप से तैयार हो।



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