समाज में स्त्री की स्थिति
समाज में स्त्री की स्थिति
वर्तमान हम मानव किस ओर बढ़ रहे है ? मानवता की ओर या पशुता की ओर...,उन्नति की ओर या अवनती की ओर...., पुण्य की ओर या पाप को ओर...,धर्म की ओर या अधर्म की ओर..., उत्थान की ओर या पतन की ओर ...। विकास की ओर या विनाश की ओर ....,इसी कड़ी में महिला सशक्तीकरण और हमारे समाज में उनकी उत्थान कैसे हो यह बार-बार मन में चलते रहता है और मन उस वक्त व्याकुल हो जाता है,जब समाचार पत्र या अन्य सोशल मिडिया के माध्यम से किसी महिला,बेटी ,या बहन के साथ अप्रिय घटना का संदेश प्राप्त होता है । मैं सोच में पड़ जाता हूं कि जिस महिला को हमारे समाज में इतनी सम्मान और पूज्यनीय माना जाता है,फिर उनके दामन को क्यों कुचला जाता है ? इतनी भयावह घटना को क्यों अंजाम दिया जाता है ? और ना जाने उनके खिलाफ कितनी साजिश रचते रहते है ?
महिलाओं के साथ इतनी घटना आज के समय में बढ़ रही है,की सड़क पर अकेले निकालना भी सुराक्षित नहीं माना जा रहा है जरा सोचिए,कुछ समय पहले दिल्ली की एक मासूम सी बच्ची जिनकी उम्र मात्र 8 वर्ष उनके साथ जो घटना घटित हुई थी ! अपने जान बचाने हेतु उस समय चीख रही होगी,अपनी जान की भीख मांग रही होगी,और ना जाने कितनी प्रकार से अपने आप को बचने के उपाय तथा किसी बचाने वाले को पुकार रही होगी,जरा उनकी उस आवाज को कभी अपनों के साथ महसूस कीजिए,एक अजीव सी चीख, उस समय की वो ध्वनि की गुनगुनाहट आसपास गूंज रही होगी,शायद वो आवाज लगा रही होगी कि कोई तो भाई या फरिश्ता बन इन दरिद्रो और हवस के शिकार से हमें बचा ले, हमें इन चंगुल से मुक्त कराने में मदद करे,आखिर उस बहन बेटी का क्या दोष ? जो इतनी यातना झेलनी पड़ी।
उनके साथ जो भी इस प्रकार इतनी घिनौनी अपराध करते है, उसके लिए अपराधियों को सजा का स्वरूप क्या होनी चाहिए ? सजा कब मिलनी चाहिए ? कैसी मिलनी चाहिए? कितने दिनों में मिलनी चाहिए ? और कोर्ट के द्वारा तारीख पर तारीख कब तक मिलती रहेगी ? कब तक समाज इन पीड़ा को सहेगा ? कब तक हमारे समाज में चीर हरण होता रहेगा ? कब तक हमारी लाडली बिटीया अपनी जान गवाती रहेगी ? कब तक वह असुरक्षित महसूस करते रहेगी ? कब तक कुछ धार्मिक लोग सवाल उठाते रहेंगे ? लड़की को छोटे कपड़े नही पहनना चाहिए!....जींस नही पहनना चाहिए !... और ना जाने कितनी तरह की सुझाव देते रहेंगे ? कब तक पुरुष प्रधान समाज अपनी मानसिकता की इस सोच में उलझे रहेंगे ? और अगर मामला कोर्ट के दहलीज पहुंचता है तो कोर्ट द्वारा तारीख पर तारीख के अतिरिक्त सजा कब तक जल्द मिलेगी ? हर बार दोष लड़की को दिया जाता है । लेकिन जो घर से ही पूरा शरीर ढक कर निकलती है ,एक भारतीय नारी की तरह और अपनी संस्कृति का भी पूरा ख्याल रखते हुए। फिर क्यों इतनी यातना स
हनी पड़ती है ?... हमारे देश में इतनी भयंकर दर्दनाक घटना कब तक रुकेगी ? और लोगो की सोच कब बदलेगी ? और ना जाने हमारे मन में कितनी प्रश्न घूमते है,लेकिन जब मैं इनका उत्तर ढूंढ़ता हूं,तो निरुत्तर हो जाता हूं। हमारे समाज के बुद्धिजीवी वर्ग तो नारी की पूज्यनीय होने की बात करते है,तो दूसरी तरफ उनपर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाते है। कोई चोर,हत्यारा या क़तील, मंदिर - मस्ज़िद जा सकता है,लेकिन महिला महमारी के वक्त नहीं जा सकता है। अगर एक क़तील शुद्ध है, तो फिर महिला अशुद्ध कैसे हो जाता है ? जो प्रकृति की एक उपहार है। और कुछ मंदिर-मस्जिद या धार्मिक स्थान में तो पूर्णतः जाने से वर्जित किया गया है। आखिर यह कहां का न्याय है ? कब उन्हें इससे मुक्ति मिलेगी ?
यहां मैं कुछ दिन पहले घटी एक घटना का जिक्र करना चाहता हूं,कुछ दिन पहले जब मैं अररिया से घर की ओर लौट रहा था। इसी संदर्भ मैं चॉदनी चौक पर एक विशाल केंडल मार्च एक बेटी के सम्मान और उसे न्याय दिलाने हेतु निकाली जा रही थी। उसे देख भावुक हो उठा,और मेरे मन बार-बार शासन कर रहे राजनीतिक पार्टी और तस्वीर ले रहे मीडिया तथा वह तमाम लोग जो भीड़ में फोटो खींचकर अन्य सोशल साइड पर डालते रहते हैं, उन सभी व्यक्तियों से मैं पूछना चाहता हूं, आखिर यह सब कब तक चलेगा ? कब तक हम न्याय दिलाने हेतु जुलूस निकलते रहे और यूं ही हम याद कर कुछ दिन बाद भूल जाएंगे। इसका स्थाई समाधान कब तक निकलेगा ? जिस समाज में स्त्री और पुरुष के लिए अर्धनारीश्वर जैसे शब्द का प्रयोग किया गया है यानी समाज में स्त्री और पुरुष पूर्णतः बराबर है। किसी प्रकार का कोई भेद नहीं है। साधारण शब्दों में हम कह सकते है कि कोई भी समाज नारी के बिना अधूरा है बिना नारी की हम समाज की कल्पना तक नहीं कर सकते है।
इसी कड़ी में मेरा मन हमारे के इन दोषियों को सजा की ओर जाता है,और समाज से जानना चाहता हूं कि इस प्रकार के हेवान उन दोषियों को कैसी सजा मिलनी चाहिये ? किस रूप में मिलना चाहिए ? अगर आप मुझसे यह जानना चाहते है,तो मेरे विचार से तुरंत या फिर उन सारे दोषियो को अविल्मब फाँसी दे दिया जाना चाहिए, या उन्हें भी "तरपा-तरपा" कर उसी तरह सजा दिया जाना चाहिए जैसे उस लाडली को वह तरपाया होगा । तथा इनकी यह सजा संपूर्ण देश को दिखाना चाहिए,मिडिया के माध्यम से ताकी और कोई इस तरह का हरकत करने की सोच ना सके और कठोरता के साथ कड़ी-से-कड़ी कदम उठाना चाहिए।
कोर्ट को एक बदले हुए अंदाज में सुनवाई करनी चाहिए, केस को आगे टालने और तारीख से ऊपर उठकर जल्द फैसले पर काम करना चाहिए, जिससे दरिद्रों को उसी के भाषा में जवाब मिल सके और खुद को एक बदलता हुआ भारत हो और जिससे हम सबको गर्भ होु