Blogger Akanksha Saxena

Tragedy

5.0  

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Tragedy

समाज का चश्मा

समाज का चश्मा

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आप सब एक सत्य घटना सुनना और बताना कि हम सब को सिर्फ़ एक चश्मा लगाये रखना कितना सही है? या हम सब को अपने उसी एक ही चश्में की धूल समय - समय पर साफ भी करते रहना चाहिए.. या हर धान बाइस पसेरी तौलना हमारी आदत बन गई है ?

कुछ महीनों पहले की ही बात एक प्रतियोगी परीक्षा के लिए मुझे लखनऊ जाना पड़ा, साथ में मेरा छोटा भाई था जो मेरी नजर में कहूँ तो बहुत स्मार्ट बहुत प्यारा, साफ दिल इंसान है। मैं मेरे छोटे भाई के साथ बस में बैठी थी और मोबाईल पर फनी वीडियो देखकर हँस पड़ी। हम दोनों को मुस्कुराता देख सामने बैठे लोग कैसे हजम कर सकते है, बोलना बहुत जरूरी था ना और आदत से मजबूर बोल पड़े आजकल कि लड़कियों ने समाज बर्बाद कर रखा है, करतीं ये लोग है, झेलना हम सब के बच्चों को पड़ता है ! पता नहीं कहां से भागी होगी, बेशर्म, कैसे दांत निकाल रही ?

भाई ने यह सब सुना तो वह कुछ बोलना चाहा, "मैंने कहा चुप रहो, जाने दो..! "

पर उन लोगों का खुसर फुसर करना जब बंद नहीं हुआ तो, भाई ने अपना और मेरा आधार कार्ड निकाला और सामने बकवास कर रहे लोगों से कहा "देखो! आधार कार्ड माता-पिता का नाम पढ़ लो..दीदी है मेरी, मैं छोटा भाई हूँ, भाई-बहन कॉमेडी वीडियो देख कर हँस भी नहीं सकते क्या?"

जैसे ही उन लोगों ने आधार कार्ड देखे तो रूमाल से अपना मुंह पोछने लगे, तो हमने कहा

"अब मुंह मत ढ़को आप, जो हरकत आप लोग हमारे साथ कर रहे हो, वही हरकत आपके बच्चों के भी साथ कोई कर सकता है।" सामने से एक पुलिस वाला उठा और बोला "सालों की कम्पलेन कर दो, आईंदा लोगों को परेशान करना बंद कर देगें।"

"हमने कहा नहीं सर! वो तो मेरा टेस्ट था तो आधार कार्ड था, हम दोनों के पास, अगर आधार कार्ड ना होता, तो पूरे रास्ते मुझे इन सबको झेलना पड़ता।" वो पुलिसवाला बोला "आराम से बैठो अब कुछ बकें तो बताना बच्चों।"

उसके बाद ट्रेन से उतरे बड़ी दिक्कतों से सेंटर ढूंढा, परीक्षा दी और ढांई घंटे बाद, परीक्षा हॉल से बाहर निकली तो सड़क पर भीड़ ही भीड़ थी, पूरा जन सैलाब। 

शाम हो चुकी थी, सामने जो ऑटो निकलता देखते ही देखते तुरंत भर जाता बहुत देर बाद बड़ी मुश्किल से एक भरा ऑटो निकला किसी तरह उसमें ज़रा सी जगह मिली दोनों दब- दब कर बैठ गये। बस स्टैंड पर ऑटो रूका कि हमें हमारे गंतव्य की सामने से आती बस दिखी, वह बस यात्रियों से पूरी तरह भरी हुई थी। भाई और मैं जल्दी ऑटो से भागे और भागते-भागते वह बस पकड़ी, बस में दाखिल होते ही भाई ने कहा

"आप यहीं रहना बस दो मिनट में आया, मैं कुछ समझ पाती कि वह धीमे - धीमे चलती बस से स्पीड में उतरा और पीछे भागता चला गया, मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं बस से उतर जाऊँ या फिर यहीं खड़ी रहूँ, कि तभी आस-पास पीछे, सामने खड़े लोग हँसने लगे, उनमें से एक दो बोले कि लगता है इसका बॉयफ्रेंड भाग गया, पता नहीं क्या करेगी यह, भागने वालों का यही हाल होना चाहिए यार। 

बस तेज हुई कि मैंने कन्डेक्टर से कहा, ''एक मिनट रूकिये प्लीज, मुझे भी उतरना है, पीछे लोग हँसे, भाई उतार दो समझा करो, यार कोई पीछे छोड़कर भाग गया। 

तभी मेरा भाई तेजी से बस में चढ़ा, मैंने गुस्से से कहा, ''कहां? वह बोला दीदी हम लोग जल्दी से ऑटो से उतर कर भागते हुए बस में आ गये। जल्दी में ऑटो वाले के बीस रूपये देने भूल गये थे, वही दौड़ कर देने गया था, यह सुन कर मैंने दायें-बांये देखा तो वह ज्यादा बोलने वाले लोग अपनी बगले झांक रहे थे। मेरे भाई ने कहा, ''दीदी कुछ बात है क्या?'' चेहरा क्यों उतरा? हमने कहा "बेटा समाज है, चेहरे उतारना ही जानता है, खुशी तो दे नहीं सकता। क्योंकि इनके पास सिर्फ़ एक ही चश्मा होता है वह भी बहुत भद्दा जिसे ये कभी साफ नहीं करते फिर हम दोनों ने कानों में लीड लगा ली और मनपसंद संगीत सुनते हुए रास्ता कब कट गया पता ही ना चला। 



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