Blogger Akanksha Saxena

Inspirational Comedy

4.6  

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मृत्युभोज (एक हास्य कथा)

मृत्युभोज (एक हास्य कथा)

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दिल्ली से पढ़ी - लिखी लड़की "ऊर्जा"अपने गाँव उझैनी लौट रही होती है, वह पैदल रास्ते में है कि उसे रमेश अंकल का फोन आता है जो उसके माता- पिता के साथ गये थे। वह बोले," बेटा, हरिद्वार जाने वाली ट्रेन के दस डिब्बे पटरी से उतर गये हैं जबकि इस जगह पटरी जोड़ने का काम चल रहा था फिर भी ट्रेन को वहाँ से गुज़ार दिया गया और एक बड़ा हादसा हो गया जिसमें 2500 लोग मर गये और 1200 लोग घायल हैं, जिसमें उसके माता- पिता और भाई नहीं रहे। यह सुनते ही उसके हाथ से उसका बैग ज़मीन पर गिर जाता है। वह वही बैठ कर फूट-फूट कर रोने लगती है। तभी सामने से मोटर साइकिल से उसके मामा आते दिखते हैं। वह कहते हैं," अरे! बिटिया ऐसे रो क्यूँ रही हो। फिर मामा उसे मोटर साइकिल पर बैठा कर घर ले आते हैं। पूरी बात जानकर सब दुखी होते हैं तो ऊर्जा घटना स्थल पर जाने की कोशिश करती है, पर उसके मामा-मामी उसे वहाँ नहीं जाने देते। गाँव के कुछ लोग जाकर बड़ी मुश्किल से तीनों डेड बॉडी गाँव ला पाते हैं, ऊर्जा सभी से लिपटकर बहुत रोती है। 


 कुछ दिन बाद उसके अंध विश्वासी मामा-मामी कहते है," बिटिया ये तेरा ही घर है आराम से रहो। बात ऐसी है कि तुम अपने बैंक खाते से दो लाख रूपया तेरहीं यानि मृत्युभोज के लिये निकाल कर हमें दे दो कुछ अंतिम कर्मकाण्ड बाकी है वो भी कर लें वरना तेरे माँ-पिताजी और भाई की मुक्ति नहीं होगी। ऊर्जा रोते हुये कहती है मेरा जवान 21 साल का भाई चला गया यहाँ तक की पूरा परिवार गुज़र गया। मेरा तो पानी पीने तक का मन नहीं होता और आपको और आपके समाज को मृत्युभोज यानि आँसुओं से भीगी दावत खाने की पड़ी है। कैसे खाओगे मामा जी अपनी ही बहन के उजड़े परिवार की दावत। मामा ने कहा," तेरी बात ठीक है बिटिया पर यह भी संस्कार है। पूर्वजों के समय से चली आ रही प्रथा है। ऊर्जा," पूर्वजों का नाम बदनाम ना करो वैसे हमारे पूर्वज ही तो थे जो कपड़े नहीं पहनते थे फिर आप क्यों कपड़े पहने हो मामाजी। कितना कुछ बदल गया पर समाज की सोच नहीं। ऊर्जा यहीं नहीं रुकी बोल पड़ी" अपने हिन्दू धर्म में 16 संस्कार हैं जिसमें पहला गर्भाधान संस्कार अंतिम सोलहवां अंत्येष्टि संस्कार तो फिर बताईये ये सत्रहवां संस्कार कहां से प्रकट हुआ। आपको पता है मामा जी कि देश में मृत्युभोज पर कम से कम 25-30 हज़ार का खर्च आता है और अगर यही आंकड़ा लेके चलें तो 33 लाख मृतकों के मृत्युभोज में लगभग 50 अरब 60 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष खर्च होते हैं। यह धनराशि इतनी बड़ी है जितना कि कुछ छोटे राज्यों का सालाना बजट होता है। बताओ देश का ग़रीब कैसे अपनी प्रगति करेगा जब यह कुप्रथायें उसे जोंक की तरह उसका धन चूस रही हैं। यह सब कुछ पाखण्ड़ियों का फैलाया हुआ आडम्बर है। किस हिन्दू धर्म ग्रंथ में मृत्युभोज को अनिवार्य बताया गया है बताइये? रामायण में वर्णन है कि भगवान श्री राम वन में थे जब उन्हें अपने पिता जी के स्वर्गवास की सूचना मिली और वह इतने दुखी थे कि बहुत दिनों तक जल तक ग्रहण नहीं किया था और अयोध्या में महीनों किसी के घर कढ़ाई नहीं चढ़ाई गयी। आपने श्री मद्भागवत् गीता तो सुनी होगी जिसमें भगवान श्री कृष्ण जी ने कहा है कि "जब भोजन खिलाने वाला दुखी हो तो उस घर भोजन नहीं करना चाहिये।" सच कहूँ तो आप लोग ना ही भगवान राम को मानते और ना ही भगवान श्री कृष्ण को आप तो बस अपने लालच की पूर्ति को ही अपना सब कुछ मानते हो। अरे! जानवर का भी अपना साथी गुज़र जाये तो वह भी उस दिन कुछ नहीं खाते पर हम इंसान कहाँ तक गिर गये। अरे! यह प्रथा नहीं कुप्रथा है कुरीति है। सोचो! कोई ग़रीब कैसे इस कुप्रथा का सामना करता होगा। मैं तो कहती हूँ "समाज से बहिष्कृत हो मृत्युभोज नामक कुरीति।" ऊर्जा ने कहा," मामा मैं कतई मृत्युभोज नहीं होने दूंगी।" क्योंकि वह पैसे पिताजी ने बहुत मेहनत से मेरी पढ़ाई के लिये जमा किये थे और मैं इस मृत्युभोज नामक कुरीति के लिये एक भी रूपये नहीं दूंगी। मामा जी आपके बच्चें हैं उनकी पढ़ाई में इस पैसे से पूरी मदद करूंगी। 


 मामा-मामी ने बहुत समझाया पर ऊर्जा नहीं मानी तो उसे कमरे में बन्द कर दिया गया और उसके गले में पड़ी सोने की चैन और उसके कान के कुण्डल उतार लिये गये और उसे धमकाया गया कि मरने वाले की तेरहीं ना की गयी तो भूत बनकर हम पर ही चिपटेगें समझी। ऊर्जा से ज़बरदस्ती बैंक चैक बुक पर साइन करवाकर दो लाख रूपये निकाल लिये गये और देशी घी के एक कुण्टल माल पुआ की मृत्युभोज दावत के चटकारे लेकर सभी रिश्तेदार अपने-अपने घरों को लौटने लगे और उन्हीं में से एक महिला बोलीं," अरे! जिज्जी जवान लड़की है भाग गयी तो। तुम्हारे खानदान की गाँव में नाक कट जायेगी। नाक बचाओ और शादी करवाओ जिज्जी। मामी बोली," जिज्जी रास्ता बताये हो तो आगे चलो। अब, तुम्हीं कोई लड़का बताओ जो अपनी सोच का हो पर शहरी सोच का नहीं। वह बोली," मेरे गाँव के ज़मींदार का तीसरे नम्बर का लड़का है गिरिजेश, थोड़ा सा पाँव मुरकता है पर स्वभाव बहुत अच्छा है, थोड़ा पीता भी है पर स्वभाव बहुत अच्छा , थोड़ा अनपढ़ है पर स्वभाव जिज्जी बहुत ही अच्छा। तोता-मैना सी जोड़ी लगेगी जिज्जी। मामी बोली ये तो बहुत ही अच्छा है। पूरा अनपढ़ तो नहीं है कुछ तो पढ़ लेता होगा। वह बोली," कक्षा आठ फेल है पर स्वभाव बहुत अच्छा है जिज्जी। मामी बोली अब, ऊर्जा बिटिया को न बता देना उसका ये बहुत ही अच्छा स्वभाव कुछ समझीं।

रोज-रोज की बहस से तंग आकर आखिरकार ऊर्जा ने शादी की हामी क्या भरी कि ज़बरदस्ती तीन लाख रूपये ऊर्जा के खाते से बतौर शादी खर्च कहकर निकाल लिये गये और एक लाख की मोटरसाइकिल दहेज़ में देकर शादी सम्पन्न हुई। पढ़ी-लिखी ऊर्जा ब्याह के बाद अपनी ससुराल गाँव सुरैंदा के ज़मींदार जंग बहादुर सिंह के घर पहुँचती है तो वहाँ सबकी बातों को सुन और रीति-रिवाज़ देख अपना माथा पीट लेती है कि बाप रे! यह तो मामा लोग से भी ज़्यादा अंधविश्वासी परिवार है। पूरे गाँव के सभी छोटे-बड़े मंदिर , पूर्वजों के थान पर तेज धूप में सूप जिसमें गेहूं फटके जाते हैं लेकर घुमाया गया और सात कुओं में रिवाज़ के नाम पर ज़बरदस्ती झंकवाया गया जिसमें ऊर्जा गिरते-गिरते बची। 


यह सब अंधविश्वासी रिवाज़ों को झेलते हुये पैदल चलते-चलते न सिर्फ उसके पाँव जले बल्कि गर्मी और लू से वह बीमार भी पड़ गयी। कुछ दिन बाद उसके ससुर ज़मींदार जंग बहादुर के पेट में भयंकर दर्द उठा और वह बीमार पड़ गये तो गाँव के ओझा ने प्रेत बाधा बताकर जमके पैसे घसीटे। बाद में पता चला दूर गाँव का भगत ऐसा पानी देता है कि पथरी घुल के अपने आप निकल जाती है। उस ढ़ोंगी ने भी उस पानी के बहाने ऊर्जा के ससुराल वालों से हज़ारों रूपये ठग लिये।लगभग सभी ने फ़ालतू बातें बनाकर खूब पैसे खीचें फिर रही बची कसर गाँव में घूम रहे झोलाझाप डाक्टर ने रात के अंधेरे में बोतल लगाकर पूरी कर दी बाद में कहता है कि जमींदार जी की नश से बहुत खून बह गया है। ऊर्जा की सही बात कोई सुनने तक को तैयार नहीं था। ऊर्जा ने देखा कि

उस झेलाछाप डाक्टर ने जमींदार के नस से बहते खून को साफ न करके वहीं दूसरा इंजेक्शन लगा दिया और हद तो तब हो गयी जब उसने सब्जी वाले चाकू से ससुर जी को ज़मीन पर लिटाकर उनके पेट का ऑप्रेशन कर दिया। ऊर्जा ने मन ही मन सोचा कि बस अब बहुत हुआ ? मुझे ही कोई रास्ता निकालना होगा। 

वह बहुत दुखी थी कि इन सब ढ़ोंगियों यानि लुटेरों ने घर की ज़मीन तक गिरवी रखवा डाली थी। घर में सभी के खाते में जोड़ कर मात्र एक लाख रूपया ही शेष बचा था। ऊर्जा ने एक दिन आधी रात में ससुर को कार में लिटाया और चुपचाप दिल्ली भाग गयी। गाँव में यह बात वाईरल बुखार की तरह फैल गयी। सब औरतें कहने लगीं बहन कलयुग है बहू बीमार, पेट चिरे ससुर के संग भाग गयी। हाये दैया! जू रूपया बैरी जो ना कराये वो कम है। 

जब यह बात ऊर्जा की सास को पता चली तो वह छाती पीट कर रोने लगी और कहने लगी भगवान जा कलमुँही कुलक्षणी बहू इसी घर में आने को थी। खानदान की पूरी नाक ही कटवा दी। हाये ! पैसे की भूखी डायन पेट फटिल्ले बूढ़े ससुर को भगा ले गयी । अरे! ओ गिरजेशवा अब का करें तेरी मेहरिया का ? ऊर्जा के पति गिरजेश ने कहा," हे! भगवान मेरी बाबू, मेरे बाबूजी के साथ भाग गयी! यह सुन वह बोलीं 'तेरी बाबू' मतलब। वह कहता है 'मेरी बीवी' अम्मा। यह सुन उन्होंने उसे गुस्से से देखा तो वह डरकर वह वहीं गिर के बेहोश हो गया। 


इधर ऊर्जा अपनी डाक्टर दोस्त सैंकी जो दिल्ली एम्स में डाक्टर थे उससे बात करके तुरन्त ऐडमिट करा देती है। ऊर्जा के पास जो भी पैसा था वह अस्पताल में ऑप्रेशन के लिये जमा कर देती है। फिर दस दिन बाद वह गाँव वापस आती है और सासू माँ को आकर बताती है कि वह ससुर जी को बचाने के लिये दिल्ली गई थी। सास उसकी बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए कहती है," अरे ! बाबा भगत के कहनेनुसार तेरी वापसी अशुभ है। तू क्यों लौटी? 

हमारा तो गंडा ताबीज सब किया कराया बेकार हो जायेगा। अब, बेटा गिरजेश तेरहीं के लिये पैसा निकाल ले। कल्लू हलवाई से बात कर लो। ज़मींदार था तेरा बाबू जी तेरहीं तीन गाँव ऊपर बड़ी होनी चाहिये। पांच कुण्टल के देशी घी के मालपुये बनवायेगें। समाज में नाक थोड़े ही कटवानी है। 


यह सब सुनकर ऊर्जा तपाक से कहती है," अरे! पिताजी ज़िन्दा हैं ठीक हैं कुछ दिन में पूरी तरह ठीक होकर आ जायेगें वापस। वो एक लाख जो घर में बचे हैं मुझे दे दो ताकि बाबू जी का निर्धारित समय में सही इलाज हो सके। सासू माँ कहती हैं,"पैसे तुझे दे दूंगी तो तेरे ससुर की तेरहीं कैसे होगी? ज़मींदार हैं हमलोग किससे उधार मागेगें बोलो? ऊर्जा कहती है,"आप कैसे लोग है ? ज़िन्दा इंसान की चिन्ता नहीं बल्कि उसकी तेरहीं की चिन्ता पड़ी है। ये तो हद है। तभी ऊर्जा ने सोचा कहीं ये लोग भी उसे मामा-मामी की तरह कमरे में बंद न कर दें।

यह सोचकर वह चुप हो जाती है और कहती है,"मैं बाबू जी को हास्पिटल से वापस लेने जा रही हूं। "वह दिल्ली जाकर ससुर जी को पूरा वीडियो दिखा देती है , कहती हैं देखिये! आपको बचाने का नहीं और मारने का भी नहीं बल्कि उसके भी आगें की प्लानिंग चल रही है यानि आपके जीते जी आपका मृत्युभोज का प्लान बन रहा है देखिये ध्यान से ये वीडियो। देखा आपने पिताजी तेरहीं की ज़्यादा चिन्ता है आपको ठीक करने की नहीं। ससुर को सच्चाई समझ आ जाती है वह कहते हैं बेटी तुम्हारे कारण में बच गया। तुमने ही मुझे खून दिया कहते - कहते वह रोने लगे। वह बोली आप मेरे पिताजी हो प्लीज़ ये आँसू पोंछ लीजिये। सही इलाज ने आपको बचाया है। 


ससुर जी ने बहु के सिर पर हाथ रखते हुये कहा "सदा सुखी रहो मेरी बच्चे। "ऊर्जा ने कहा," पिताजी मेरा भी एक प्लॉन है सुनिये" फिर एक दिन ऊर्जा रात के अंधेरे में ससुर जी को क़फ़न में लपेट कर घर में प्रवेश करती है। ससुर की लाश देखकर सास व दोनों बहुयें दहाड़ मार कर रोने लगतीं हैं कि तभी ऊर्जा कहती है। "चुप रहिये आप लोग और मेरी बात ध्यान से सुनिये। मरते वक्त ससुर जी ने कहा था कि वो दस दिन बाद ज़िन्दा हो जायेगें और घर में जो माया गड़ी है चार सोने के कलशे दबे हैं वो उठ कर खुद निकालेगें। यह राज़ किसी को न बतायें वरना माया रेंग जायेगी। वह मरे नहीं है। वह समाधी में है।" ऊर्जा कहती है तो सासू माँ इनको पूजा वाले कमरे में आराम से लिटा देती हूँ यह ससुर जी की इच्छा है। केवल मैं ही देख रेख करूंगी पिताजी की। 


यह बात सुनकर सास भूत के डर से कहती है," ठीक है !ठीक है ! तू ही देख रेख कर। सास छाती पीट कर कहती हैं," हे! देवता ''मेरा घर लाश घर''? यह सुनकर और देखकर उनकी दो बहुयें डर कर मायके चली जाती हैं। इधर गिरजेश बैंक से एक लाख रुपया निकाल कर लाता है और उसे बैंक से पैसे निकालते देख गाँव के एक चोर की नज़र पड़ जाती है। वो चोर भेष बदलकर उसकी बाइक पर लिफ्ट मांगता है। बाद में जब गिरजेश घर में पहुँचता है तो यह देख वह दंग रह जाता कि मोटर साइकिल से उसका पूरा एक लाख रुपया चोरी हो चुका होता है। दूसरी तरफ वह चोर जिसे सब तांत्रिक भगत और बाबा भगत के नाम से जानते थे वह पूरी प्लानिंग करके ज़मींदार के घर पहुंच कर कहता है,"कैसे हो मेरे प्यारे भक्तों ?।" सासू माँ कहती हैं,"अरे! बाबा कृपा करो" कोई उपाय बताओ। हम तो बर्बाद हो गये। तेरहीं न हुई तो तीन गाँव में हमारे खानदान की नाक कट जायेगी।  बाबा बीमारी में घर में एक पैसा नहीं बचा। हम तो महंगे इलाज़ में बर्बाद हो चुके हैं। सरकारी अस्पताल में वही गोली पेट दर्द वही, मलेरिया में बांट देते हैं। इसलिये सरकारी अस्पतालों से डर लगता है। इसलिये हर तरह के उपाय झाड़ फूंक भी की बाद में ओझा को दिखाया पर कोई आराम नहीं मिला और घर का सब पैसा भी बर्बाद हो गया बाकी जो बचा था वह नासपीटे चोर ले गये। बाबा हम तुम्हारी शरण में हैं बचा लो। 


बाबा ने कहा, ये लो एक लाख रूपये मेरे एक भक्त ने दिये है पर ये उधार दे रहा हूँ अगर एक महीने के अंदर न लौटाये तो दुगने लूंगा समझ लो। चलो मैं इस धन को तुम्हारे घर के मंदिर में रख दूँ चलो । सासू माँ को याद आया मंदिर में ज़मींदार यानि उसके पति की लाश रखी है। यह सोच! वह चिल्लाई, नहीं बाबा मैं रख दूंगी मंदिर में बस आप अंदर न जाओ। बाबा भगत यानि मुझ पर शक ? सासू माँ ," नहीं बाबा, मेरा मतलब है कि मेरी बहू और मेरी बहस हो गयी तो वह गुस्से में पगला गयी है और वह मंदिर में ही नहा रही है। बाबा भगत यह सुनकर भौचक्का रह गया और बोला, '' ये पागलपन तो कहीं नहीं सुना ! भला करें राम, तुम लोगों का तो भगवान ही मालिक है सभी पर प्रेत बाधायें मंडरा रहीं हैं।'' ये लो एक लाख मैं तो यहां से चलता हूँ अब।  

 सासू माँ ने बाबा भगत वाले रूपये झट से लपक लिये। रात में यही भगत! यही चोर! चुपचाप घर में घुसा और मंदिर वाले कमरे में पहुँचकर ज्यों ही रूपये निकाल कर भागता है तभी उसकी नज़र नीचे ज़मीन पर कफ़न ओढ़े लेटे ज़मींदार पर पड़ती है। वह चेहरे से जैसे ही कफ़न हटाता है तो चौक जाता है अरे ! ज़मीदार की लाश यानि ये मर चुके हैं पर ये लोग इनकी मौत को आखिर! छुपा क्यों रहे हैं? लगता है कोई बड़ी तांत्रिक क्रिया के लिये रख रखा है यह मृत शरीर। यह सोच बाबा भगत चिड़चिड़ाकर कहता है, '' सालों भगत से भूत छुपाते हो।" वह बाहर जाकर चिल्लाने लगा ज़मीदार नहीं रहे। ज़मींदार नहीं रहे।


 यह सब सुनते ही गिरजेश दौड़ कर आया और अम्मा को जगाते हुए कहा,''अम्मा-अम्मा ।'' अम्मा अचानत चौक कर उठीं और बोलीं, ''अब कौन सी नयी आफ़त आ गई'' ? देख! जब से तेरी बहू आयी है भगवान कसम मरे जात हैं हर तरह से लूटे पड़े हैं बर्बाद हो गये हैं अब क्या हुआ बोलो? गिरजेश ने कहा ''अम्मा गाँव में शोर है ज़मींदार खामोश हैं'' मतलब पूरा गाँव जान गया कि बाबूजी मर गये। पता नहीं किस दुष्ट ने ये बात लीक कर दी मिल जाये तो टैटुंआ मसक दूँ। अम्मा बोली, चुप कर फालतू बात पहले अपनी अम्मा का टैटुंआ तो बचा ले। सब के सब ध्यान से सुनो !गिरजेश,सुरेश, निकेत तुम तीनों भाई मिलकर कोई दूसरी लावारिस लाश का इंतज़ाम करो और जल्दी अब जाओ तुरन्त। उस लावारिस लाश को ज़मींदार की लाश बताकर जला दो जल्दी जाकर। फिर तेरहीं करके निपट जायें। इनकी समाधी दस दिन में टूटे या एक महीने में हम सोने के कलशे लेकर दूर निकल जायेगें, बड़े शहर में समझ! गिरजेश और दोनों भाई रात में पूरे गाँव में लावारिस लाश ढूंढ रहे होते हैं कि एक भिखारी शराब के नशे में धुत पड़ा दिखता है। गिरजेश कहता "भैया मिल गई लाश।' फिर उसे कम्बल में बांध कर चुपचाप घर ले आते हैं। तो पूरा घर लोगों से भरा होता है । पूरा गाँव उस कफ़न में लिपटी लाश को देख कर दहाड़ मार कर रोने लगता है।  

 गाँव के लोग कहते कि चलो! आखरी दर्शन कर लूं ज़मींदार जी का चेहरा खोल दो। तभी गिरजेश बोला, मरते वक्त बाबू जी बोले" मेरा चेहरा मत खोलना" यही अंतिम इच्छा थी उनकी। कुछ देर बाद लाईट चली जाती है और अंधेरे में सभी अपने घरों को लौट जाते हैं। उस शराबी का नशा उतरता है और वह धीरे से उस कफ़न से निकल कर भागता है। लाइट आने के बाद गिरजेश चिल्ला उठता है," अम्मा वह लाश भाग गई। अम्मा उसे एक चांटा मार कर कहती हैं, जिंदगी में एक भी काम ठीक से नहीं किया तूने ?


अब जाओ पुरानी साड़ियाँ और फटे-पुराने कुछ लकड़ियां ले आओ जल्दी । इसी से ज़मींदार की ठठरी तैयारी करो। अरे! कफ़न में यह सब लगा कर जाओ रात में ही फूँक आओ वरना सुबह पोल खुली तो हम सब की ठठरी बंध जायेगी। उस सामान की गठरी यानि नकली ठठरी को तीनों रात में जला रहे होते हैं कि तभी बाबा भगत वहां पहुँचते हैं और कहता है ," ज़मींदार जी को चुपचाप जला रहे हो आखिर ! क्या राज़ है जो छिपा रहे हो। देखो! मुझे भी सिद्धी चाहिये पैसा भी। मैं गाँव वालों को समझा दूंगा तुम मुझे भी शक्तियाँ और धन दोगे बोलो? गिरजेश ने कहा "लगता है बाबा भगत भी प्रेत बाधा का शिकार हो गये हैं।' वह बोला, "हाँ भगत जी आप सब सम्भांल लो। आप जो कहोगे मैं दूंगा।" बस, फिर क्या था उस बाबा भगत ने पूरे गाँव में जाकर कहा कि "ज़मींदार के ग्रह बहुत भारी थे। मुझे भगवान का आदेश हुआ तो रात में ही मिट्टी लगा दी।" 


 यह सुनकर गाँव के लोग बोले आपने करवाया है अंतिम संस्कार तो ठीक ही होगा। बस दुख यह कि ज़मींदार जी के अंतिम दर्शन ना मिल सके। वह बहुत भले इंसान थे भगवान ने उन्हें बहुत जल्दी बुला लिया। वैसे भगत जी तेरहीं कब की है और कितने कुन्तल के माल पुआ बनेगें कुछ पता चल पाया ? भगत ने कहा," आखिर! गाँव के ज़मींदार थे वह छोड़ो मालपुआ पूरी बड़ी दावत होगी बफर सिस्टम होगा जो मर्ज़ी सो खाओ मतलब सब्जी पूड़ी रसगुल्ला पनीर सब बनेगा। दूसरे दिन ज़मींदार जी का पूरा घर रिश्तेदारों से भर जाता है और ऊर्जा ने ज़मींदार जी को तलघर में शिफ्ट कर दिया। शाम तक सभी रिश्तेदार अपने घरों को लौट गये। इधर दवा और अच्छी देख-रेख से ज़मींदार को पूरी तरह आराम मिल चुका था। 


आज तेरहीं का दिन नज़दीक आ गया। सासू माँ ने मंदिर में जाकर रूपये देखे तो उनको नहीं मिले। वह छाती पीट के रोने लगी हाय दैया गिरिजेशवा जल्दी आओ! देखो! फिर चोरी हो गई कल तेरे बाबू जी की तेरहीं है और घर में एक भी रुपया नहीं। ऊपर से बाबा भगत को दुगना रुपया देना होगा। हाय ये अपशगुनी बहू जब से आयी हमारे किस्मत में भूकम्प आ चुका है। घर में चोरी पर चोरी हो रही है। हे! भगवान का करूँ अब। ओ! गिरजेशा जा बहू को बालाजी ले जा ज़रूर इसके अंदर कोई चुडैल घुसी है जो हम सब से पता नहीं कौन जनम को गिन - गिन के बदला ले रही है। गिरजेश बोला "अम्मा तू चिन्ता ना कर बाबू जी के दुश्मन उमेदपुर के विधायक सोवरनसिंह का लड़का मोनू सिंह मेरा दोस्त बन गया है वह हम लोग की मदद को तैयार है।" उसने कहा है," तुम अपना घर मुझे दो लाख में गिरवी रख दो और अपनी मोटर साइकिल मुझे पचास हज़ार में बेच दो। अम्मा बोलीं," इतने में बड़ी दावत कैसे होगी बेटा? बीस हज़ार तो ब्राह्मण को दान हो जायेगा। अब, और पैसा कहाँ से आयेगा? गिरिजेश ने कहा," अम्मा तेरा पुराना ज़ेवर किस दिन काम आयेगा।अम्मा बोली," गाँव में नाक की बात ना होती तो अपना ज़ेवर तो मैं भगवान को भी ना दूँ। बस फिर क्या था घर गिरवी रख कर ज़ेवर बेच कर भव्य मृत्युभोज का आयोजन शुरू होता है। तभी उस गाँव का हलवाई रसोई में जानबूझ कर आग लेता लगा देता है,और चिल्लाता है देखो! सब चासनी जल गई है। सब सामान भी जल गया जल्दी बीस हज़ार दो तो मैं कुछ इंतज़ाम करूं। 


 वो हलवाई भी गिरजेश को बेवकूफ़ बनाकर बीस हज़ार रूपये खींच लेता है।  इधर तेरहीं में आये हुये पाखण्डी पंडित कहते हैं," ज़मींदार जी की तेरहीं है और आज तेरहीं के दिन मृतक की याद में दिया गया दान बहुत फलदायी होता है। और फिर, धर्म की आड़ में दान के रूप में पंडितों ने भी खूब लूटाई की। अब जैसे ही पंडित ने मुँह में पहला निवाला रखा ही था कि तभी ज़मींदार वहाँ चिल्लाते हुये दाखिल हुये कि रूको! अभी करवाता हूँ अपनी तेरहीं। ज़मींदार को ज़िन्दा देख! वहाँ बैठे पंडित सहित उपस्थित सभी गाँव के लोग दूर भाग खडे़ होते हैं। ज़मींदार कहते हैं "अरे! भाग क्यों रहे हो? मैं जिंदा हूँ। मैं मरने का नाटक कर रहा था देख रहा था कि मेरे अपने कितने 'कितने अपने हैं' पर अफ़सोस! सब मुझे मारने पर तुले थे। देखो! ये मेरे कलयुगी लड़के और मेरी पत्नी कोई मेरा नहीं।" और तभी गुस्से में आकर वह सामने बैठी अपनी पत्नी का गला दबाने लगते हैं तो गिरजेश बीच में आ जाता है। गिरजेश को देखकर ज़मींदार गुस्से में गिरजेश का ही गला दबाने लगते हैं। और एक ज़ोरदार थप्पड गिरजेश के गाल पर जड़ देते हैं और कहते हैं कि "अरे! कलयुगी औलाद तुमने मेरी दवा न करवाकर मेरी तेरहीं करवा डाली। घर भी गिरवी रख दिया तूने और माँ के ज़ेवर भी गिरवी रख आया और इतने से भी दिल ना भरा तेरा कि तूने मेरे दुश्मन से दोस्ती भी कर ली और शादी की मोटरसाइकिल भी उसे बेच दी। अरे! कलयुगी औलाद आज मैं तुझे जान से मार दूंगा।" तभी ऊर्जा वहां आ जाती है और कहती है छोड़ दीजिये पिताजी इन्हें। शांत हो जाइये। 


 ज़मींदार ने कहा," नहीं बेटी आज बोलना बहुत ज़रूरी है तो सुनो! गाँव वालों अगर आज मेरी छोटी बहू ऊर्जा ना होती तो मैं कब का मर चुका होता और आप सब अब तक मेरी तेरहीं भी चाट चुके होते। इसने सही वक्त में मेरा सही इलाज करवाया। मुझे अपना रक्त दान देकर नयी जिंदगी दी है। यह बहू नहीं मेरी बेटी है जिसकी पढ़ाई- लिखाई और नयी सोच पर गर्व है मुझे। अब मैं इसे और पढ़ाऊंगा और किसी पढ़े- लिखे लड़के से दूसरी शादी करवा दूंगा।" यह सुनते ही गिरजेश ने पिताजी के पाँव पकड़ लिये और बोला "बाबू जी मैं सुधर जाऊंगा बस एक मौका दे दो।" वह गुस्से से बोले," पहले मेरे पाँव छोड़ समझे तभी ऊर्जा ने कहा,"अभी एक खुलासा बाकी है।'' पिताजी कहते कौन सा खुलासा बेटा ? वह कहती है "वो कि इस गाँव का चोर कौन? यह कहते हुयी फौरन सामने खड़े ढ़ोंगी बाबा भगत के नज़दीक पहुँचकर कहती है आपका काला चिट्ठा इस मोबाइल में कैद है। अब आप खुद बोलेगें या मैं सभी को दिखाऊं।" यह सुनकर भगत कांपते हुये बोला," हाँ, इस गाँव का चोर मैं ही हूँ जिसके घर तेरहीं कार्यक्रम होता है उसके घर से एक-दो दिन पहले पैसे चोरी करता हूँ फिर मैं खुद उसी को उधार देता हूँ और जगह भी बताता हूँ और कहता हूँ जल्दी ना चुकाये तो दूने लूंगा और दूने धन के लालच में मैं खुद ही उस घर में जाकर पैसे चोरी करता हूँ।" 


इतना सुनते ही गाँव के लोग उस भगत बाबा को पकड़ कर पेड़ पर उल्टा टांग देते हैं और कहते हैं "आराम से पीटेगें उसको रोज़ -रोज़।" ऊर्जा कहती है "किस -किस को टांगेगें ? इस भगत को या उस झोलाझाप डाक्टर को या उस पानी देने वाले ओझा को किस- किस को। हम सब को सुधरना होगा तभी कुछ बदल पायेगें। इसे पेड़ से उतार दो। ये पुलिस का काम है इसे जाकर पुलिस को सौंप दो।" गाँव वाले कहते हैं "बिटिया तुमने ज़मींदार जी को बचाकर बहुत पुण्य कार्य किया है। "

  यह सुनकर ऊर्जा सभी से हाथ जोड़कर कहती है कि "आप सब लोग मुझे अपनी बेटी मानते हों तो इस मृत्युभोज नामक कुरीति को दिल-ओ- दिमाग़ से और इस गाँव से बहिष्कृत कर दीजिये। जिस कुरीति के चलते किसी ग़रीब का घर तक बिकने की नौबत आ जाये उसके ऊपर बड़ा कर्जा हो जाये ऐसी कुप्रथा को बन्द कर देना चाहिये। हम सब इस कुप्रथा के बदले 'अपनों की याद' पेड़ लगायें जो बेहद ग़रीब परिवार हैं उनके बच्चों को पढ़ाने में वो पैसा लगायें तथा अपने किसी ग़रीब पड़ोसी की यथासम्भव मदद कर दें और अगर खाना ही खिलाना है तो रेलेवे स्टेशनों पर मंदिरों के बाहर निराश्रित ग़रीब बुजुर्ग दिव्यांग लोग बैठे होते हैं तो यह भोजन उन्हें करवा दीजिए इस सुन्दर कार्यों से आपके अपनों की आत्मा संतुष्ट हो ये तो नहीं कह सकती परन्तु आपकी आत्मा ज़रूर सुकून पायेगी।" यह सुनकर गाँव के लोग बोले "बेटी बिल्कुल सही कहा आज से तुम इस गाँव की प्रधान हो। आज से इस गाँव में ही नहीं आस-पास के किसी गाँव में तेरहीं नहीं होगी।" ज़मींदार ने कहा," गाँव की प्रधान बनने पर तुमको बहुत -बहुत बधाई अगर तुम शहर जाकर आगे पढ़ना चाहो तो हमारी हाँ हैं बेटी।" यह सब सुनकर दूर खड़ी ऊर्जा की सासू माँ उसके नज़दीक आकर बोली," यह सब तो ठीक है पर यह जो ज़िन्दा तेरहीं का खाना बना है इसका क्या होगा? ज़मींदार हँस पड़े और बोले,"यह हमारा ज़िन्दाभोज है तो हम सब मिलकर खायेगें ? यह सुनकर सब हँस पड़ते फिर वही खाना ग़रीबों को बांटा जाता है और गाँव से इस कुरीति के मिटने की याद में ढ़ेर सारे पौधे लगाये जातें हैं। 


दो महीने बाद- गिरजेश ऊर्जा को कॉफी देते हुये कहता है मैंड़मजी बुक पूरी हो गयी आपकी? अब तो आराम कर लीजिये मैंड़म जी! वैसे आपने इस बुक का नाम क्या रखा है? तो ऊर्जा मुस्कुराते हुये कहती है इस बुक का नाम है 'मृत्युभोज' एक हास्य कथा। यह सुनकर दोनों गले लग कर हँस पड़ते हैं। 



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