सजगता
सजगता
अम्मा की स्मरण शक्ति बहुत तेज़ थी। उन्हें पढ़ने का शौक़ था ।लिखने का भी शौक़ था। उनकी भजनों की कई कॉपियाँ थीं ,जिसमें उन्होंने अपनी पसंद के भजन उतारे हुए थे। उन्हें बहुत से भजन स्तुति प्रार्थना याद थीं। वे जब अशक्त होकर बीमार होकर बिस्तर पर लेटी रहती थीं तब अपनी पसंद के भजन और प्रार्थनाएँ मन ही मन दोहराती रहती थीं। कोई आ जाता था तो उससे भी सुन लेती थीं ।तब कोई ग़लती होने पर उसे सुधार भी देती थीं ।
एक बार मैं उनके पास गयी हुई थी। कुछ बात करने के बाद मैंने उनसे पूछा क्या कुछ सुनोगी ।उन्होंने कहा , हॉं , सुना दो।
मैंने पहले हनुमान चालीसा सुनाया, फिर हनुमान जी की आरती सुनाई।वे ध्यान से सुनती रहीं। फिर बोलीं कि तुमने तो यह पढ़ा ही नहीं,'दाहिने भुजा संत जन तारे'।
मैंने कहा कि यह अभी अभी पढ़ा है ,लगता है आपका ध्यान कहीं और चला गया था। मैंने फिर दोबारा से पढ़ दिया। सुन कर वे ख़ुश हुईं ,अपने से पूरी लाईन दोहराई-
'बायें भुजा असुर दल मारे,दाहिने भुजा संतजन तारे। '
उन्होंने साथ ही साथ समझाया कि हनुमानजी में इतनी शक्ति है कि वे बाएँ हाथ से ही असुरों को मार देते हैं ,दाहिने हाथ से संत जनों की रक्षा करते हैं।
फिर मैनें उन्हें 'मेरी भावना ' सुनाई, यह मुझे कंठस्थ थी , ऐसे ही ज़बानी सुनाई। बीच में एक दो लाइन मैं छोड़ गयी थी जो उन्होंने सुधार दी। उन्होंने कहा , तुमने यह लाइन क्यों छोड़ दी-
'होकर सुख में मग्न न फूले,दुख में कभी न घबरावे'।
मैं उनकी याददाश्त पर चकित थी। मैं सोचती थी कि मुझे बहुत अच्छी तरह से याद है, पर मैं ग़लत थी। उन्होंने जबकि बहुत दिनों से पढ़ा भी नहीं था तो भी सही तरीक़े से उन्हें याद था।
भैया आकर उन्हें' विष्णु सहस्रनाम' सुनाते थे तो वे मन लगाकर सुनती थीं। उन्होंने हम सभी में अच्छे संस्कार डाले ,हमेशा हमारी हिम्मत बढ़ाई ,हर काम को आगे बढ़कर करने की आदत डाली। बिस्तरे पर लेटी हुई भी वे हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत थीं।
