सिसीफस
सिसीफस
"अच्छा तो कुछ आ नही रहा टीवी पर, चलो...कुछ अच्छा पढ़ ही लिया जाए।" उकताए से कैलाश बाबू ने कहा।
"आपका सही है...जब चाहा किताब ले कर बैठ गये...मैं बाहर का चक्कर लगा आती हूँ, थोड़ी गपशप ही मार ली जाए।" रमा जी उठने को हुई तो कैलाश बाबू ने हाथ पकड़कर पुनः बैठाते हुऐ कहा...
"सुनो...मैं सोच रहा था की, तिवारी जी का प्रस्ताव मान लूँ...हर्ज ही क्या है ? खाली बैठने से अच्छा है, वापिस आफिस जाने लगूँ...एक दिनचर्या तो बन जायेगी।"
"राहुल के असमय चले जाने से हमारी जिंदगी मे जो रिक्तता आयी है, उसे भरने का शायद यही सबसे अच्छा उपाय है। पर सोच लिजिए...लोग क्या कहेंगे ?" मायूसी से रमा जी ने पूछा।
"लोग क्या कहेंगे ..बड़ा खुराफाती आदमी है...रिटायरमेंट के बाद भी शांति से घर पर नहीं बैठ सकता,अब किसके लिए कमा रहा है ? कहने दो, लोगों का क्या है ? यूँ खाली बैठे बैठे तो ऐसा लगता है जैसे अंतिम समय का इंतजार कर रहे हो...." कैलाश बाबू विह्वल हो उठे।
"सही कह रहे हो आप .. दुःखों के भार से दब कर नही जी पायेंगे। हमारा समय काटे नही कटता, जो आपको अच्छा लगे वो ही किजिए। मै भी तो अपने आप को व्यस्त रख कर जी हल्का कर लेती हूँ।
कैलाश बाबू को अपनी अर्धांगिनी पर गर्व हो आया...कुछ दिन पहले पढ़ी ग्रीक कहानी "सिसीफस" दिमाग में घूम गयी...
सच मे...हम सभी को सिसीफस की तरह अपनी सजा पूरी करनी है, पहाड़ की चोटी तक जिंदगी खींचकर ले जानी है जो पुनः लुढ़क कर नीचे आ जाती है।
अबाध गति से चलने वाले इस क्रम को खुशी खुशी पूरा करने के सिवाय कोई विकल्प है ही नहीं !