सिमटता बचपन

सिमटता बचपन

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सुबह के छह बजे थे। "बंटी जल्दी उठो, बस निकल जायेगी।" मीता ने हर रोज़ की तरह दस साल के बंटी को आवाज़ दी। जल्दी पराँठे सेंक कर उसका टिफ़िन लगाया और इस्त्री की हुई यूनिफ़ॉर्म कमरे में रख दी।

"बंटी तैयार हो गए? जल्दी करो नाश्ता ठंडा हो रहा है।" कुछ देर बाद बंटी तैयार होकर निकला। अभी नाश्ता खत्म नहीं हो पाया कि बस का हॉर्न सुनाई पड़ा।

"अरे भागो बंटी!"

"रुको भैया" मीता ने बालकनी से ड्राइवर की आवाज़ दी।

"बंटी ये बादाम लेते जाओ, बस में खा लेना।"

दोपहर साढ़े तीन बजे: 

"बंटी जल्दी खाना खाओ, कराटे क्लास जाना है।" बंटी जल्दी रोटी चबाते हुए नीचे पार्क में क्लास के लिए दौड़ गया।

शाम पांच बजे:

"बंटी फटाफट पढ़ने बैठो, सोमवार गणित का टेस्ट है ना? किताब में सवालों पर निशान लगाकर रखे हैं, हल करके दिखाओ, मैं चाय चढ़ा कर आती हूँ।"

"मम्मी इसके बाद नीचे खेल आऊँ? आरव बुला रहा था।"

"नीचे? अभी तो पार्क में कराटे क्लास के लिए गए थे?"

"पर मम्मी खेला तो नहीं"

"नहीं आज नहीं, अब बातें बनाना बन्द करो और सवाल हल करना शुरू करो।"

शाम सात बजे: "बंटी कविता याद कर लो, अगले हफ्ते कविता पाठ प्रतियोगिता है, टीचर का मेल आया है। तुम अच्छा बोलते हो, ढंग से तैयार करोगे तो अवश्य जीत जाओगे।" "बंटी नौ बजे गया, अभी तक यहां वहां घूम रहे हो। चलो सो जाओ, सुबह उठना है।"

बेचारे बंटी की ज़िंदगी घड़ी की सुइयों की तरह लगातार एक छोर से दूसरे छोर दौड़ती थी। बंटी यूँ तो पढ़ाई और खेल कूद हर काम को उत्साह से करने वाला बच्चा था मगर चाहे कितना भी कर ले, मम्मी का मन न भरता। बंटी मीता और रवि का इकलौता बेटा था और मीता को बंटी से बहुत अपेक्षाएँ थीं। पढ़ाई, खेलकूद, चित्रकारी, वाद विवाद और भी कई कार्यों में भाग लेने के लिए उसे प्रेरित किया करती। जब भी किसी नई एक्टिविटी क्लास जे बारे में सुनती, फौरन जानकारी लेकर बंटी जो वहां ज़रूर भेजती।

रवि को अक्सर अपने आफिस के काम से टूर पर बाहर जाना पड़ता था। मीता अधिकतर समय बंटी की पढ़ाई दिनचर्या की निगरानी में लगाती। बंटी माँ के कहे अनुसार सब कुछ समय पर करता और हर काम में अव्वल रहकर माँ को खुश करने की कोशिश करता। फिर एक दिन हिंदी कक्षा में टीचर ने सभी बच्चों से अपने मन से 'मेरा सपना' विषय पर निबंध लिखने के लिए कहा। निबंध में बंटी ने लिखा "मेरा सपना है कि मैं पढ़ाई, स्कूल, क्लास सब छोड़ दूं। बस घर पर रहूँ बिना कुछ किए। बड़े होकर मैं बस घर पर रहना और अपने दोस्तों के साथ खेलना चाहता हूँ।"

शाम को मीता ने बंटी के बैग से हिंदी की कॉपी निकाली तो निबंध पढ़ा और उसे बरबस ये बोध हुआ कि शायद बंटी की दिनचर्या कुछ अधिक व्यस्त हो चुकी थी। सुबह से शाम और छुट्टियों में भी उसके पास कोई समय खाली नहीं होता। फ़ोन पर रवि को उसने ये बात बताई। "मीता शुक्र है तुम्हें ये बात आज समझ में आ गयी। कब से तुमसे कहता था उसे इतनी क्लासेज़ में मत भेजो, बच्चा है। मगर तुमने नहीं सुना। कठिन प्रतियोगिता के युग के लिए बच्चों को तैयार करने का मतलब ये नहीं कि उन्हें अभी से मशीन बना दिया जाए। और ग़लती मेरी भी है, उसको समय न देने की।"

दो दिन बाद रवि रात को टूर से वापिस आया। सुबह बंटी उठ कर पापा के गले लग गया।

"बंटी क्यों न आज हम सब कहीं बाहर चलें?"

"मगर पापा आज स्कूल की छुट्टी नहीं है।"

"कोई बात नहीं, आज ऐसे ही छुट्टी ले लेते हैँ, क्यों? मैं भी आफिस से छुट्टी लेता हूँ, दिन भर मौज मस्ती करेंगे।"

स्कूल आफिस सबसे छुट्टी ले बंटी और मम्मी पापा झील किनारे पिकनिक मनाने चल दिए। समझ चुके थे, जीवन में मन की शांति भी ज़रूरी है।



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