सिमटता बचपन

सिमटता बचपन

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एक मुस्काई सुबह, खुशनुमा मौसम, वसन्त ऋतु, और विद्यालय जाने की तैयारी।

ये भैया भी हमेशा स्कूल के लिए देर कर देता है।

सोमू बड़बड़ाया।।

अरे सोमू, तू स्कूल जाकर प्रार्थना करेगा क्या ?

भीखू हंस कर बोला।

सोमू: लेकिन मास्टर जी देख लेंगे देर से आते तो बड़ी पिटाई होगी।

भीखू अपने झोले को तैयार करते हुए बोला, आज तक हुई है क्या ?

मतलब हम पीछे की दीवार कूदकर अंदर जाएंगे।

तुम तो कद में लंबे हो आराम से चढ़ जाते हो, मैं नहीं आऊंगा वहां से। सोमू बोला

भीखू: अरे पगले पहले तुम चढ़ जाना , मैं तुम्हारी मदद कर दूंगा, तुम मेरे कंधे पर बैठ कर चढ़ जाना, पीछे से मैं चढ़ जाऊंगा।

सोमू: अच्छा ठीक है, चलो निकलते हैं वरना कक्षाएं शुरू हो जाएंगी।

दोनों भाई निकलते हैं, पैदल चलते हुए, गांव के बगीचे को पार करते हुए, विद्यालय के पीछे वाली दीवार पास पहुचते हैं।

वहाँ पहुच कर दोनों भाई स्थिति का जायजा लेते हैं।

सोमू: भैया लगता है प्रार्थना खत्म हो चुकी है, तुम चढ़ कर देखो की बच्चे अपने कक्षाओं में जा चुके हैं या नहीं।

भीखू पास पड़े ईंटों की मुंडेर बना कर दीवार से उस पार देखता है, सामने घोर सन्नाटा।

कोई भी नहीं, परिदों का भी नामोनिशान नहीं।

लगता था मानो सूखा पड़ गया हो, और सारा विद्यालय उजाड़ वाटिका बन चुकी हो।

भीखू नीचे उतर कर सोमू से कहता है

छोटे लगता है कक्षाएं शुरू हो चुकी हैं और हम कुछ ज्यादा ही देर कर चुके हैं।

सोमू का चेहरा उतर जाता है, उसके चेहरे की मासूमियत कहीं अंधेरे में घुप हो जाती है, डर के कम्पन उसके चेहरे से महसूस किए जा सकते थे।

भीखू धर्मसंकट में फस गया।

घर गया तो घर पे पिटाई, और ऐसी परिस्थिति में विद्यालय गया तो वहाँ भी पिटाई।

एक तरफ कुआँ तो दूसरे तरफ खाई जैसी परिस्थिति

जैसे तैसे मन को मनाया और विद्यालय में जाने का निश्चय किया।

सोमू देख ऐसा है, हम विद्यालय में जा रहे हैं।

तुम पहले दीवार पर चढ़ जाओ, फिर मैं आ पीछे से आ जाऊंगा।

नीचे उतर कर मेरा इंतज़ार मत करना, मैं आ जाऊंगा तुम दौड़कर अपनी कक्षा में चले जाना। भीखू बोला

उसने सोमू को अपने कंधे पर बिठाया और नीचे बनी ईंटों के मुंडेर पर खड़े होकर सोमू को दीवार पर चढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने लगा।

चढ़ जा सोमू, शाबाश

भारी डील डौल वाला सोमू तमाम कोशिशों के बाद भी चढ़ने में असफल हो रहा था।

कभी उसके नन्हे हाथ दीवार की छोर तक नहीं पहुचते कभी उसके पैर सन्तुलन न बना पाते

इतने में भीखू की नजर दीवार के सीध में पड़ी तो उसने देखा , हेडमास्टर साहब हाथ मे छड़ी लिए उसकी तरफ दौड़े आ रहे।।

सोमू जल्दी करो, हेडमास्टर ने हम लोगों को देख लिया है वो इधर ही आ रहे।

सोमू डर गया, डर के मारे उसने आखिरी कोशिश की जिसमे उसने अपनी सारी ऊर्जा लगा दी, और एक ही पल में उसके पैर ने दीवार पे अपनी पकड़ बना ली और वह दीवार पर चढ़ गया।

कूद जाओ: भीखू चिल्लाया।

सोमू ने न आव देखा न ताव, वो विद्यालय में कूद गया।

हेसमास्टर जी नजदीक आ चुके थे, भीखू ने भी कोशिश की पर उसे भी चढ़ने में परेशानी हुई और वो नहीं चढ़ पाया।

वह वहां से भागा, और तब तक भागता रहा जब तक वह स्कूल की सीमा से इतना दूर न आ सके कि वहां से विद्यालय न दिखता हो।

एक भरसाय(पुराने जमाने मे अनाज को भुनाने के लिए प्रयोग की जाने वाली जगह जहां एक बड़ा चूल्हा होता है) के पास आकर भीखू रुक गया।

वह हांफ रहा था, उसके फेफड़े उसे ऐसे महसूस हो रहे थे मानो उसमे किसी ने जलमग्न कर दिया हो।

वह तक कर फूस के नीचे बैठ गया।

उसके मन मे उसके भाई की चिंता खाये जा रही थी

हाय राम

क्या पता सोमू पहुंच पाया होगा??? या हेडमास्टर ने उसे पकड़ लिया होगा। पकड़ लिया होगा तो वो उसे लेकर घर आएंगे, पिताजी को जब हमारी बात का पता चलेगा तो वो बहुत नाराज होंगे।

पिटाई भी हो सकती है।

अगर अब फिर से विद्यालय गया तो पकड़ा जाऊंगा, घर जाऊंगा तो सोमू कहाँ है??

भीखू का मन अंतर्द्वंद्व कर रहा था, कभी वो अपने को कोसता की उसने पूरी कोशिश क्यों हक की कभी वह अपनी किस्मत को बुरा भला कहता।

उसने विद्यालय खत्म होने तक वहीं इंतज़ार करने का निश्चय किया।

दोपहर ढलने को आई, भीखू ने सूरज की ओर निगाह की तो सूरज बिल्कुल कपाल के ऊपर था।

जरूर विद्यालय खत्म हो गया होगा।

कुछ देर बाद पगडंडी से बच्चों का हुजूम आता दिखा, विद्यालय की छुट्टी हो जाने की खुशी सबके चेहरे पर झलक रही थी, उन्ही में उसका भाई सोमू भी था।

भीखू ने उन बच्चों की ओर दौड़ लगाई और उनके समूह में सम्मिलित होकर अपने भाई का हाथ पकड़ कर उनसे अलग हो गया।

भीखू बोला मेरे पीछे आओ।

वह भागते हुए भरसाय की ओर गया।

पीछे पीछे उसका छोटा भाई सोमू भी पहुच गया।

लेकिन सुबह का घबराया सोमू के चेहरे पर हावभाव में हुए परिवर्तन से भीखू हतप्रभ हुआ।

सुबह जिस सोमू के चेहरे पर उदासी थी, वो सोमू मुस्कुरा रहा था।

अरे सोमू, तुम्हे मास्टर जी ने पकड़ा क्या??

सोमू: अरे भैया मैं विद्यालय जाता तो पकड़ते न

भीखू: पर तुम तो विद्यालय में कूद गए थे न।

सोमू: मैं नीचे कूद कर तुम्हारा इंतज़ार किया, तुम नहीं आये तो मुझे लगा मास्साब ने तुम्हे पकड़ लिया है, और तुम्हे पीटने के बाद मुझे पीटते।

मैंने देखा कि विद्यालय का द्वार खुला था और द्वारपाल वहां नहीं था तो मैं विद्यालय से निकलकर सामने बगीचे में चला गया।

पर तुम क्यों नहीं आये? मास्टर जी ने पकड़ लिया था क्या???

भीखू मन ही मन प्रसन्न होकर बोला, मैं भी भाग गया था और यहीं दिन भर तुम्हारा इंतजार कर रहा था।

सोमू: मतलब तुम भी

भीखू सोमू की पीठ पर ठोकता है और कहता है चलो विद्यालय खत्म हो चुका है, माँ इंतज़ार कर रही होगी।


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