' सीख '
' सीख '
आज ' अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस ' पर ' मेरी मात्रभाषा भोजपुरी ' में समर्पित मेरी लघुकथा ' सीख ' , गर्व है मुझे अपनी मातृभाषा पर
' सीख '
परात में बेटे का पैर धोते हुये माई ने पूछा का हुआ बचवा काहे ऐतना उदास हउआ ? माई आज हमके नकल करत उड़ाका दल पकड़ लेइन अब हम इम्तिहान नाही दे पाइब। अरे मुँँह - झउसा उनहन सबके हमरे बचवा मिलल रहन पकड़े खातिर...आग लगे उनहने के...कौनो बात नाही बचवा अगले साल इम्तिहान दे दिहा...लेकिन अबकी संभल के नकल करिहा ।
अनुवाद :-
परात में बेटे का पैर धोते हुये माँ ने पूछा क्या हुआ बच्चा क्यों इतने उदास हो ? माँ आज हमको नकल करते हुये उड़ाका दल ने पकड़ लिया आगे मैं इम्तहान नहीं दे सकता। अरे मुँस - झउसा ( मुँह जल जाये ) उन सबको हमारा बच्चा ही मिला था पकड़ने के लिए... आग लगे उन सबको...कोई बात नहीं बच्चा अगले साल इम्तिहान दे देना... लेकिन इस बार संभल कर नकल करना ।