सिग्नल की भूख
सिग्नल की भूख
आज लाल चौक के चौराहे पर सन्नाटा पसरा हुआ था। गाड़ियों तो चल रही थी, पर ना मुनिया कंघी बेच रही थी, ना राजू गाड़ी साफ कर रहा था। "क्या चिल्लर पार्टी ये लाल बत्ती कब बनेगी ? कितने दिनों से भर पेट खाना नहीं मिला। सरकार ने तो पुलिस लगा दी गाड़ियों के लिए, पर हमारा क्या ?"
" पता नहीं राजू ! सारा मूड खराब हो गया। सोचा था आज बन जाएगा, तो पार्टी करेंगे। तेरा तो सूखा सामान है, चल जाएगा। पर मेरी सारे भूंजे के पैकेट खराब हो जाएँगें। नुकसान अलग से होगा। हम खाए तो खाए क्या ?"
"अरे सुना है पार्टी ! कल तक ये लाल सिग्नल ठीक हो जाएगा। शायद नेता जी आने वाले हैं इसलिए बनेगा।" रेखा ने दौड़कर सबको खुशखबरी दी।
" मजा आ गया कल पार्टी होगी। हमारा ख्याल किसी को नहीं पर एक लाल बत्ती की वजह से दूसरी लाल बत्ती सही हो जाएगी वरना हमें लेने के लिए एंबुलेंस की लाल बत्ती भी न आती। ऐसे ही कहीं सड़ गए होते।"
