शुरुआत अपने घर से

शुरुआत अपने घर से

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भारती अपने परिवार के साथ अभी अपनी भतीजी की सगाई में सम्मिलित हो कर अपने घर वापिस आयी थी। उसके पति तो बहुत थक गए थे इसलिए जल्दी सो गए पर उसके दोनों बच्चे धैर्य और धारवी सगाई की बातें कर रहे थे। 

भारती भी छोटे-मोटे काम करते-करते उनके साथ बातों में व्यस्त थी। तीनों मिलकर लड़के-लड़की, खाने-पीने और सजावट की तारीफें कर रहे थे। कुछ देर बाद धारवी (कॉलेज के फर्स्ट ईयर में थी) ने उत्सुक्तापूर्व भारती से पूछा "मम्मी मामा का तो बहुत पैसा लग गया होगा। आप तो कह रही थी आजकल उनका हाथ टाइट चल रहा है क्यूंकि उनके बिज़नेस पार्टनर ने उनको धोखा दे दिया था" "हाँ बेटा मामा को इस समय बहुत परेशानी हो रही है पर क्या करें बेटी की शादी की उम्र हो रही हो तो भी तो दुनिया चैन नहीं लेने देती। अब अच्छे घर से रिश्ता आया लड़का भी पढ़ा-लिखा स्मार्ट है तो तेरे मामा ने सोचा जैसे-तैसे पैसे का इंतज़ाम कर के शादी कर देता हूँ। एक तो हमारे समाज में शादियों में इतना देना- लेना चलता है...ऊपर से आजकल महंगाई इतनी है और दिखावा इतना बड़ गया है की शादी के खर्च से अच्छे से अच्छा आदमी हिल जाता है। आजकल लड़के वाले कह तो देते हैं...हमारी कोई डिमांड नहीं है पर लड़की वालों को तो सब कुछ करना पड़ता है" मिलनियाँ, मिठाईयाँ, खास-खास रिश्तेदारों के लिए गिफ्ट्स तो ऐसे खर्चे हैं...जिन्हें टाला नहीं जा सकता। लाखों रुपया तो आजकल बैंक्वेट की बुकिंग में और खाने-पीने में लग जाता है" "हाँ मम्मी और खाने में इतनी ज़्यादा वैरायटी होती है की आधा खाना तो वैस्ट जाता है" धैर्य ने कहा....तभी धारवी ने कहा "चलो छोड़ो, अब इस टॉपिक को...अब आज के फोटोज़ और वीडियोज़ देखते हैं..जो मैंने इतनी मेहनत से लिए हैं" 

उसके बाद बच्चे फोटो (जो वो ढ़ेर सारी खींच कर लाये थे देखने में लग गये) और भारती भी जल्दी-जल्दी काम ख़त्म कर के सोने की तैयारी करने लगी। अभी वो आकर ही बैठी थी तभी 15 साल का धैर्य अपनी मम्मी की गोदी में सर रख कर लेटता हुआ बोला "मम्मी कितना गलत सिस्टम है...हमारी सोसाइटी का एक तो लड़की भी दो ऊपर से पैसा भी दो। धारवी ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा हाँ पैसा नहीं हो...तो लोन ले कर शादी करो और उसके बाद पूरी ज़िन्दगी लोन उतारने में ही बिता दो।"

धारवी ने कंधे उचकाते हुए कहा "मैं तो अपनी शादी बिना दहेज़ के करुँगी और आप धैर्य की शादी में भी कोई दहेज़ मत लभारती ने मुंह बनाते हुए कहा "अगर मुझे तेरी शादी में दहेज़ देना पड़ा, तो मैं धैर्य की शादी में भी दहेज़ लूंगी" धैर्य ने बैठते हुए कहा "मम्मी कैसी बातें करती हो आप ! एक तो सामने वाला अपनी बेटी देगा...ऊपर से आप उनका सारा पैसा भी खर्च करवा देना। उन बेचारों के पास क्या बचेगा" भारती ने कहा "सिर्फ हमारे ऐसा सोचने से क्या होगा हम भी तो धारवी को देंगे और पैसा भी लगायेंगे" दोनों बच्चे एक सुर में ही बोल पड़े "नहीं मम्मी...ना आप दहेज़ लोगी ना दोगी। हमारी मैम कहती है "किसी भी चीज़ की शुरुआत हमारे घर से ही शुरू होती है" भारती जिसने अपने बच्चों से मज़ा लेने के लिए वो सब बोला था मुस्कुराते हुए बोली "मुझे तुम दोनों पर गर्व है...अगर सब ऐसे ही सोचने लगें तो लड़कियां बोझ लगनी बंद हो जायेंगी" भारती को मन ही मन अपने बच्चों की बातों पर हंसी भी आ रही थी पर वह सोच रही थी हमारे समाज की सोच तो पता नहीं कब बदलेगी पर अगर हमारी आने वाली पीढ़ी की सोच इतनी अच्छी होगी तो वो दिन दूर नहीं जब बेटे-बेटी में कोई भेदभाव नहीं होगा।


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