शतरंज
शतरंज
डिवोर्स के कागज़ पर सिग्नेचर करते हुए सिद्धार्थ को याद आया, साक्षी से शादी से पहले उसने कितने सपने देखे थे। उसे अच्छी तरह याद है, जब उसके ऑफ़िस में वह पहली बार आयी थी, लंच ब्रेक में वह मेस के किनारे की सीट में बैठा खा रहा था, अचानक किसी की आवाज़ आई "क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ " मुँह उठाकर देखा तो एक औसत कद की लड़की हाथ में प्लेट पकड़े खड़ी थी,”हाँ हाँ व्हाई नॉट “ सिद्धार्थ ने उसको सामने की सीट पर बैठने का इशारा किया l उसके गले में लटके आइडेंटिटी कार्ड को देखकर वह समझ गया था, वह भी उसकी कंपनी में काम करती हैं l
उसके बाद तो रोज़ एक साथ लंच करते, शाम को दोनों एक साथ ही घर के लिए निकलते, साक्षी उससे सीनियर पोस्ट में दूसरे डिपार्टमेंट में थी l सिद्धार्थ शुरू से ही उसे पसंद करने लगा था, मगर साक्षी अपने करियर को ज्यादा महत्व देती थी और शायद इसी कारण वह शादी के लिए भी तैयार न थीl
समय बीतता चला गया। सिद्धार्थ को कई बार ट्रान्सफर व सीनियर पोस्ट के लिए भी ऑफर आये, तो भी परिवार के आगे उसने ऑफर को ठुकरा दिया, शतरंज के राजा की तरह वह अपनी रानी को बचाने में लगा रहा, साक्षी को लन्दन मे सीईओ की पोस्ट में ऑफर आया। छः महीने की नौकरी के बाद उसने वहीं सेटल हो जाने का प्रस्ताव भेजा। और फिर जिंदगी एक खेल बन कर रह गयी थी ···शतरंज का खेल