श्रद्धांजलि
श्रद्धांजलि
"अरे वीनू! ये सब ऑडिटोरियम की तरफ़ क्यों भागे जा रहे हैं? कोई क्लास नहीं होगी क्या आज?"
"तू कहाँ रहती है यार?!” वीणा ने चलते-चलते जवाब दिया, “अमित ने कल रात अपने हॉस्टल रूम में सुइसाइड कर लिया... उसी की कोंडोलेंस मीटिंग है।"
वह उसके बाद भी कुछ बोलती रही थी, मगर मुझे जैसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था, एकाएक विश्वास ही नहीं हुआ कि वो अमित जो हमेशा एक मिसाल रहा करता था, सबके लिए - पढ़ाई में, खेल-कूद में, कल्चरल प्रोग्राम्स में-अपनी दिलकश आवाज़ और गायकी की वजह से, वह... नहीं, नहीं; यह ज़रूर कोई दूसरा अमित होगा।
उधर ऑडी में प्रिंसी की आवाज़ गूंजने लगी थी...
"हमें बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारे फाइनल इयर का एक होनहार, प्रतिभावान छात्र, अमित… अमित वर्मा, आज हमारे बीच नहीं रहा, काल के क्रूर हाथों ने..."
शक की कोई गुंजाईश नहीं बची थी!
दिलो-दिमाग़ को झंझोड़ देने वाली एक निस्तब्धता छा गई थी उस शोक-भरे वातावरण में।
मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि बाहर से इतना हंसमुख और ज़िंदादिल दिखने वाला वो शख़्स इस कदर भावुक रहा होगा… अन्दर से।
अब मुझे याद आ रहा था क्यों वह डैकलैम-कांटेस्ट में विषय से हट कर कुछ ऊल-जलूल बोलता रहा था, और फिर फ़र्स्ट प्राइज़ मुझे मिल गया था। वैसे मैंने बाद में सुना कि ऐसा पहली बार हुआ था जब अमित ने किसी भी प्रतियोगिता में भाग लिया हो और ईनाम न जीता हो।
अब मेरी समझ में यह भी आने लगा था कि क्यों उस की ग़ज़लों में, कविताओं में दर्द, और आवाज़ में एक कशिश होती थी। इस मुद्दे पर उसने कभी बात नहीं की थी मुझसे, हालाँकि मुझे कॉलेज ज्वाइन किए साल-भर होने को था। मैंने बस उसे अपनी ओर अपलक देखते हुए देखा था, कुछेक बार, अजीब सी नज़रों से... जिन्हें मैं शायद कभी समझ न सकी।
परसों न जाने कैसे सुधीर के नाम लिखा मेरा एक ख़त किसी रेफ़्रेन्स-बुक में रह गया था... और कुछ ही देर बाद जब मैं लगभग दौड़ती हुई लायब्रेरी वापस पहुंची तो अमित रेफ़्रेन्स-सेक्शन से निकल कर जा रहा था। कुछ पल रुक कर उसने बस मेरी तरफ़ देखा था। एक रहस्यमयी मुस्कान थिरक रही थी उसके भावहीन चेहरे...
"अब हम सब दो मिनट मौन खड़े रह कर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करेंगे…"
और मैं अपने आँसुओं के सैलाब को रोकने की कोशिश में बस गुमसुम खड़ी थी..!