शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा
दोनो दो जिस्म एक जान थी, दोनो का सपना एक ही था बड़ा अफसर बनना। एक को बातें करना पसंद था तो दूजी को बातें बनाना। एक कि आवाज में माधुर्य था तो दूसरी की आवाज में ओज। एक संतोषी स्वभाव की दूजी असंतोषी।मगर फिर भी उनकी दोस्ती पूरे स्कूल में प्रसिद्ध थी।
स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद दोनों ने एक साथ एक कॉलेज में प्रवेश लिया।कॉलेज में भी दोनों साथ रहे और दोनों की जोड़ी को लोगों ने तोता-मैना की जोड़ी कहना शुरू कर दिया। राधिका को इस तरह नाम धरा जाना कतई पसंद नहीं था।" देख लेना किसी दिन में उसका मुंह तोड़ दूंगी" राधिका ने वंशिका को क्लास की तेजतर्रार लड़की हरप्रीत के बारे में कहा।वंशिका बोली "तू इतना दिल पर क्यूं लेती है ? कहने दे हरप्रीत को जो कहना है, क्या फर्क पड़ता है धीरे-धीरे चुप हो जाएगी।" मगर राधिका को कोई उनकी दोस्ती या वंशिका पर कुछ कहे बर्दाश्त नहीं होता था।उसकी हरप्रीत से बहुत बुरी तरह लड़ाई हो गई।
एक दिन दोनों सहेलियां घर से कॉलेज पैदल-पैदल आ रही थी। सामने से कुछ बदमाश से दिखने वाले लड़के आ रहे थे। उन्होंने आते ही दोनों को घेर लिया और पूछा" तुम दोनों में से राधिका कौन है ?" इससे पहले कि राधिका बोलती ,वंशिका बोल उठी "जी मैं हूं बताइए ?" ऐसा कहते ही उसने राधिका के हाथ को अपने हाथों से दबा दिया। जिस दबंग लड़के ने बड़े तेवर में बोला था वह वंशिका की धीमी और मधुर आवाज को सुनकर सामान्य हो गया। "आगे से मेरी बहन से बिना मतलब झगड़ने की जरूरत नहीं है समझीं, पढ़ने आयी हो ,पढ़ो।" यह सुनते ही राधिका बिगड़ गई बोली "मुझसे बात करो ,मैं राधिका हूं।तुम्हारी बहन बिना मतलब लोगों के नाम धरा फिरती है। उसे हम दोनों से क्या दिक्कत है ? उसको बोलो अपने काम से काम रखें नहीं तो किसी दिन पिटेगी मुझसे।" वंशिका ने तुरंत राधिका का हाथ पकड़ा और वहां से खींच कर ले गई" तू चुप रहा कर न " उसने राधिका को कहा।वे लड़के उन्हें जाता देखते रहे।
कॉलेज से अब दोनों यूनिवर्सिटी में थीं। स्कूल -कॉलेज अगर तालाब-झील सरीखा था तो यूनिवर्सिटी एक सागर जैसी थी।जहां आसपास के शहरों से भी लड़के-लड़कियां पढ़ने आते थे और कुछ यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में रहते थे। कॉलेज के अलग यहां संकाय भी बहुत सारे थे। दोनो के लिए यह एकदम नया खुला माहौल था। यहां पढ़ाई के अलावा रोज ही धरने-प्रदर्शन -हड़ताल हुआ करती थी।यूनिवर्सिटी में आने के कुछ दिन बाद वंशिका के माता-पिता को अपने किराए का मकान बदलना पड़ा।अब वंशिका यूनिवर्सिटी से शहर के बाहरी कोने में रहती थी और राधिका शहर में यूनिवर्सिटी के पास दूसरे कोने में। तो दोनों का एक साथ आना कम हो गया मगर वे दोनों आते ही एक दूसरे को ही ढूंढा करते और दिन भर साथ रहते थे।कॉलेज में चुनाव के दिन नजदीक आने लगे छात्र नेता अपने-अपने लिए प्रचार करने में व्यस्त थे। राधिका को यह सब शोर शराबा नेतागिरी बहुत भाती थी। उन्ही दिनों उसे पता चला की उसके संकाय से उसी के ननिहाल का कोई कला प्रतिनिधि के पद के लिए खड़ा है। उसे उत्साह हुआ और वो लेक्चर हाल में बैठी फिजूल की बातें बनाने लगी। शायद वो बेहद छुटपन में एक दो बार ही ननिहाल गयी थी,उसके नाना जी ही अक्सर उन सब से मिलने आते थे मगर...." सब शरद को ही वोट करना, वो मेरे ननिहाल से है।" वंशिका ने राधिका को देखा वो समझ गयी कि अब ये 'पगली' शुरू हो गयी। एक बैचमेट मोहित ने कहा
"तुम जानती हो शरद को ?,
"हां",
"अच्छा मैने तो सुना बड़ा बदमाश है"
वंशिका के कान खड़े हो गए मगर राधिका बोली"सब नाम बदनाम करते हैं ,बहुत अच्छा लड़का है।" तभी कुछ कॉन्वेसिंग करते लोग लेक्चर हाल में आये। मोहित बोला" जोशी ,यहां शरद की एक रिश्तेदार मौजूद है इसे साथ ले ले।"जिसे मोहित ने जोशी कह कर पुकारा वो आकर बोला "कौन?" वंशिका और राधिका ने एक दूसरे को देखा। वंशिका बोली
"अरे नही ये बस ऐसे ही "
"तो तुम रिश्तेदार हो शरद की?"
"वो नही मैं"राधिका बोल पड़ी।
"अच्छा जी??"
"बढ़िया लड़का है, तुम सब मन लगा कर जिताओ उसे।"
कॉन्वेसिंग करते सब जोर के हंस पड़े।
"जोशी ,शरद बढ़िया लड़का है"
"एक नंबर का आवारा है "
"खबरदार जो कुछ बोला।' राधिका ने अपने अंदाज में जोशी को डपटते हुए कहा। वंशिका ने राधिका को खींचते उसे कहा
"चल अब बहुत देर हो रही है, हमे क्या कौन कैसा है।"
जोशी ने वंशिका और राधिका को देखा।
"आपकी सहेली समझदार लगती हैं, लेकिन मैंने आपको पहचाना नहीं",
" में राधिका और ये वंशिका",
"नही,मेरा मतलब आप मेरी रिश्तेदार कैसे हुई?"
"आपकी?",
"जी, मैं शरद जोशी।"
राधिका का मुह देखने लायक था।सब ठठा कर हंस रहे थे। वंशिका राधिका के बड़बोले पन पर अपना सर धुन रही थी।
शरद जोशी चुनाव जीत गया साथ राधिका की दोस्ती भी।शरद की मंडली बहुत बड़ी थी।अच्छे बुरे हर तरह के लोग शामिल थे।ऐसे में शरद को समय कम मिलता मगर 1-2 के बीच वो तीनो साथ लन्च करते।राधिका और शरद की ननिहाल एक ही थी तो उनके पास गांव के बहुत बातें होती। वंशिका उन दोनों के बीच बैठी उनको सुनती रहती।शरद के पिता बहुत बड़े जमींदार थे तो भविष्य की कोई चिंता नही थी।मगर राधिका और वंशिका सामान्य घर से थीं।वंशिका को भविष्य की बहुत चिंता होने लगी थी।उसके और राधिका के पिता जी रिटायर होने वाले थे मगर राधिका अब ज्यादा समय शरद के साथ इधर उधर रहने में बिताने लगी थी। वंशिका ने समझाना चाहा मगर राधिका उसकी टोका-टाकी से नाराज होने लगी।शरद के साथ कुछ अराजक तत्व भी घूमा करते,इस से वंशिका राधिका को लेकर डरी रहती।
शरद और राधिका अब वंशिका से अक्सर छुप कर निकल जाते। राधिका के पिता वंशिका को लेकर आश्वस्त थे कि राधिका सही संगत में है। कई बार राधिका घर देर से पहुंचती तो कहती कि वो वंशिका के यहां थी।
"वंशिका ,शरद कह रहा कि वो अपना रिश्ता भेजेगा मेरे यहाँ"
आंखों में लाखों वाट की चमक लिए राधिका ,वंशिका को बोल रही थी। वंशिका हैरान थी।
"ये कब ,कैसे ?"
राधिका ने उसे बताया कि दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं। वंशिका ने समझाया
"राधिका ये उम्र करियर बनाने की है ,इन सब बातों की नही यार याद नही हम दोनो का ऐम क्या है? तुझे आइ ए एस नही बन न क्या ?"
"यार.......छि तू बड़ी बोरिंग है।"
" नही राधिका, समझ ये सब मोमेंटरी है, क्या जाने कैसा भविष्य हो वहां ? अभी बस अपने पर ध्यान दे ले।अपने भविष्य पर ध्यान दे,बाकी जिंदगी बन गई न तो ऐसे शरद क्या कई उस से अच्छे होंगे तेरे सामने।"
" निरी नीरस हो तुम, शरद का घर और जायदाद का तुमको अंदाज़ नही है ,मुझे भविष्य की चिंता करने की कोई जरूरत ही नही ,ये सरकारी चाकरी- वाकरी क्या करनी जब सरकार देहरी पर सलाम बजाएगी।"
राधिका को वंशिका का एक भी शब्द समझ नही आया। वंशिका और राधिका की दोस्ती के बीच अब शरद के सतरंगी सपने आ गए। धीरे धीरे राधिका वंशिका से दूर होती गयी।
वंशिका को रेड डालने आज राधिका के ननिहाल जाना था।इस इलाके में भारी मात्रा में अवैध शराब बनाने की गुप्त सूचना मिली थी।दल बल के साथ मुह अंधेरे उसने छापा मारा, सूचना सही थी। लौटते में उसे राधिका के नाना जी, जिनसे वो कई बार शहर में उसके घर मिली थी ,दिखे। सोचा कि पता करे कि राधिका कहाँ है ,उसकी शादी बच्चे वगैरह। पता चला कि राधिका और शरद ने शादी कर ली थी।बहुत धूम धाम से हुई थी ,बड़े बड़े नेता व्यापारी आये थे।राधिका उसी गांव में थी।गांव क्या था अच्छा खासा बड़ा कस्बा सा था। हालांकि अब दोस्ती में वो गहराई नही रह गयी थी मगर उसे संतोष था कि राधिका और शरद साथ हैं, नही तो उसे शरद की औरतों को लेकर सोच कहीं खटकती थी।राधिका तक खबर पहुंची, उसने गाड़ी भिजवा दी।
बहुत आलीशान घर था राधिका और शरद का। लक्ष्मी और कुबेर मानो वहीं बस गए हों।हर ओर से वैभव और ऐश्वर्य की आभा छिटक रही थी। बड़े से बैठक में वो बैठी राधिका का इंतजार कर रही थी। उसके घर की दायीं उसके सामने विदेशी बिस्किट, केक, सूखे फल वगैरह रख रही थी। सुनहरे बॉन चायना के कप में एक एक कर टी पॉट से महकती काली चाय, दूध, मिश्री के क्यूब डाले जा रहे थे। मुस्करा कर दायी ने दोनो हाथिन से अभिवादन करके उसे को थमाया।और वहीं पास में खड़ी हो गयी।कुछ देर में राधिका की सास जी आयीं। क्या राजसी ठाठ झलक रहा था उनके पहनावे में ,हाव भाव भी मैच कर रहे थे।बातों से उनका रॉब साफ जाहिर हो रहा था। कुछ देर बात करने के बाद वे गयीं तो राधिका के देवर जी पधारे। वो शरद की कार्बन कॉपी लग रहा था ,एक ऐंठ सी थी।उसकी बातों से पता चला कि उसे बहुत घमंड है अपनी विरासत और संपत्ति पर। उसने उस से उसकी नौकरी और काम काज के बारे में पूछा "मैम आज कल काम कौन करता है?सब को ...चाहिए।"उसने उंगलियों से रुपये गिनने का इशारा किया।वंशिका सोच रही थी कि सब आ रहे मगर राधिका कहाँ है। उसने उसके देवर से पूछा"राधिका जी कहीं बाहर गयीं है क्या?" वंशिका की आवाज में एक अफसरी अंदाज था। देवर उठा और वहां मौजूद दायी से कहा " जाइये पूर्णिमा जी को बताइये।",पूर्णिमा? वंशिका ने सोचा 'क्या हो रहा है ये सब? अब पूर्णिमा कौन है भई इतना तो महामहिम से मिलने में भी औपचारिकताएं नही होती।'
कुछ देर बाद राधिका की सास जी राधिका के साथ वापस आयीं। " वंशिका" धीमी आवाज में राधिका ने वंशिका को पुकारा।वंशिका ने देखा ,सोने के गहने और सिल्क की महंगी सारी में राधिका किसी दुल्हन की तरह उसके सामने थी। "राधिका " वंशिका का मन बहुत खुश हो उठा।उसने उठ कर उसे कस कर गले लगा लिया। मगर राधिका का मिलना उसे उतना प्रेमपूर्ण नही लगा। "और कैसी हो वंशिका।?"
,"ठीक हूँ ,बहुत खुशी हुई तुमको और तुम्हारे परिवार को देख कर राधिका ","वंशिका बेटा, ये राधिका नहीं अब ये हमारे शरद की पूर्णिमा हैं।" सास जी ने उसके सर पर हाथ फिराते हुए कहा। फिर सास जी ने उसकी ओर देखते हुए कहा
"तो नौकरी करती हैं?",
"जी"
"कितना मिलता होगा ? 40-50?"
वंशिका मुस्करायी, राधिका चुप चाप सास जी के बगल में खड़ी थी।
"सुना छापे पर आई थी ?"
"जी"
"बहुत जिगर वाले होंगे तुम्हारे पति?"
उनकी इस बात पर वंशिका और राधिका ने एक दूसरे को देखा।
"शरद तो पूर्णिमा को गैर मर्द के साथ दिन के उजाले में भी खड़ा न देख पाए...पर कोई बात नही ,नए जमाने में ये मजबूरी है कुछ लोगों की।"
उसके बाद उसकी सास जी ने उसे सूखे एक्सोटिक फल पेश किये।
"शरद जाता रहता है बाहर तो पूर्णिमा के लिए हमेशा कुछ ना कुछ खाने पीने का लाता रहता है।सब ऐसे ही बर्बाद होता है ,पर समझता ही नही
वंशिका अपने घर लौट आयी। उसको शांत देख कर नवनीत ने बिस्तर पर लेटते पूछा "कैसा रहा आज का दिन तुम्हारा "," राधिका मिली थी।" नवनीत उठ कर बैठ गया और खुश हो कर बोला "वाह तब तो खूब मिल बैठी होगी तुम दो दीवानो की " मगर वंशिका का गला रुंध गया। नवनीत ने उसके करीब खिसक आया और हाथों में उसके चेहरे को लेकर बोला "क्या हुआ मैडम "
वंशिका के गाल पर एक आँसू लुढ़क गया।उसे पोछ कर नवनीत उठा और उसे पानी का गिलास थमाया। फिर उसके सामने कुर्सी खींच कर बैठ गया।
"बताओ",
"रहने दो आय एम ओके,सुबह तुम्हे जल्दी दिल्ली जाना है न? , फाइल्स सब रख ली? पेन ड्राइव मिल गयी थी न ? यहीं दराज़में रख कर गयी थी।"
नवनीत उसे बस देखता रहा। वंशिका ने गहरी सांस ली बोली।
"सब कुछ है उसके पास धन ऐश्वर्य हर सुख सुविधा"
"तो तुम दुखी क्यों हो ?"
"नवनीत ...
कह कर उसने अपने पति का हाथ थामा।नवनीत कुर्सी से उठ कर उसके पास बैठ गया। नवनीत के कंधे पर सर टिकाते हुए बोली।
" है.. सब कुछ है...मगर।"
" मगर ...क्या मगर, क्या वो खुश नही है ? शरद से शादी हुई न उसकी ? क्या वो उसे अब प्यार नही करता ?"
" नहीं, शरद अब भी उस से प्यार करता है मगर जैसे पुराने जमाने की फिल्मों में दिखाते थे न जागीरदारों का ... सब बस्स...वैसा ही है ",
"??
वंशिका ने बताया शरद का परिवार रहता तो कस्बे में हैं मगर बेहद धनवान है और धन-दिखावे के पीछे सब बुरी तरह पागल हैं। औरतों को लेकर बेहद दकिया नूसी विचारों के है। राधिका और शरद के बारे के वंशिका ने कहा "शरद और राधिका ....कभी कभी ही ... साथ होते हैं , शरद अक्सर देर रात ही आता है और सुबह 4 बजे तक कमरे से बाहर निकल जाता है।दिन में पति,पत्नी के कमरे में जाए या रहे ये अच्छा नही माना जाता वहां। हफ़्ते- हफ्ते एक दूसरे की शक्ल देखने को तरस जाते है। दोनो की एक प्यारी सी ढाई साल की संतान है मगर उसको दुलारने का समय भी बंधा है मां के होते सारा दिन आया के हाथों में रहता है, अभी से उसका अलग कमरा है। सारा दिन बिना किसी काम के सास जी के साथ सजी दुल्हन सी साये की तरह रहना होता है, जब सास जी या परिवार का कोई सदस्य कहे उसे तैयार रहना होता है साथ चलने के लिए,चाहे जिस हाल में हो।मगर 7 सालों में मायके एक ही बार गयी है वो भी पग फेरे की रस्म पर , मायके वाले आते हैं तो बैठक से ही लौट जाते हैं , मां से तक खुल कर बात नही कर पाती। छोटा हो या बड़ा ,अगर मर्द है और कुछ बदतमीजी से बात भी करते हैं तो उनको कुछ कहने का अधिकार नही उसे।मोबाइल के जमाने मे घर मे साझा पी एन टी है, बाकी मोबाइल सिर्फ मर्दों के लिए अवेलेबल है ...उफ्फ "वंशिका के चेहरे पर राधिका की घुटन के निशान उभरने लगे।वंशिका ने अपने गले में लिपटे दुपट्टे को ढीला किया।
"हम्म"
"जानते हो...?" वंशिका सीधे हो कर बैठ गयी।
"राधिका ऐसी नही थी जैसी अब हो गयी है। वो खो गयी है। पूरे समय खड़ी रही ,उसकी सास और देवर जी जरा देर को नही छोड़ रहे थे।मैने जब बार-बार कहा घर बार तो दिखाओ तब जा कर उसकी सास जी ने कहा कि हां हां क्यों नही जरा अपनी सहेली को दिखाओ अपना घर।"
,"हम्म ...फिर",
" छोड़ो...तुम अब सो जाओ ,कल रात भी मेरी रेड की वजह से जागे थे ,तबियत खराब हो जाएगी।",
"नही, तुम पूरी बात बताओ नही तो मेरे पीछे तुम राधिका को सोच सोच कर .... नही भाई इकलौती बीवी है हमारी।" कह कर उसने वंशिका के माथे पर प्यार दिया ,वंशिका मुस्करा दी।
राधिका. नहीं पूर्णिमा ने अपना घर दिखाने के बाद जब वो लौट रही थी तो वंशिका के गले लग कर उसको कहा कि वो दुखी न हो उसके लिए ,उसे अफसोस नही है अपनी पसंद पर मगर पता नही था कि जिंदगी पिंजरे की चिड़िया जैसी हो जाएगी।