शराब की फरमाईश
शराब की फरमाईश
‘ट्रींग ट्रींग...’ ऑपरेटर रिसिवर उठाती है और "हलो” कहती है।
दूसरी तरफसे - "मैं मोहन गांधी बोल रहा हुँ।”
ऑपरेटर - “हां, जी, आप किससे बात करना चाहते है।"
दूसरी तरफ से - "मिसेस कंचनसे।”
ऑपरेटर - "कृपया प्रतिक्षा करे।” कहकर, ऑपरेटरने रिसीवर नीचे रखा और इंटरकॉमसे बजर देकर मिसेज कंचनको संदेश दिया।
मिसेस कंचन - "किसका?”
ऑपरेटर - "मोहन गांधीका।”
मिसेस कंचन - "उससे कहना, मैं यहां नहीं हुँ, मेरी ट्रांसफर हो गई है।”
ऑपरेटर - "पर मैं झूठ कैसे बोलुँ? आप तो सामने बैठी है।"
मिसेस कंचन - (गुस्सेसे ) "मैंने कहा न, आपसे, जैसा कहा गया है, वैसे कह दिजिए।”
ऑपरेटर - "अच्छा, पर आप बताईये तो आप क्युँ उससे बात नहीं करना चाहती?"
मिसेस कंचन - "मैं तो क्या उससे कोई भी औरत बात करना नहीं चाहेगी। शराबी कहींका, न घर संभालते बनता है न परिवार। उसकी इतनी हिम्मत कि वो मुझसे शराबकी फरमाईश करें? क्या समझ रखा उसने मुझे? ये तो अच्छा हुआ हम वहांसे शिफ्ट हो गए वरना... न जाने क्या होता?”
ऑपरेटर - "पर वो आपसे क्युँ शराबकी फरमाईश करने लगा?”
मिसेस कंचन - "एक दिन बातोंही बातोमें उसकी बीवीके सामने बात मेरे मुँह से निकल गई मैं अमृत डिस्टलरीमें हुँ। शायद उसीसे पता चला होगा।”
ऑपरेटर - "तो ये आपके पडोसी है मॅम?”
मिसेस कंचन - "बदकिस्मती से!”
ऑपरेटर - "ठीक है, मैं कह दुँगी।"
ऑपरेटरने इंटरकॉम का रिसिवर नीचे रखकर, मेन रिसिवर उठा वही कहा जो मिसेस कंचनने कहा और सोचमें पड गई कि, उस गांधीमें और इस आधुनिक गांधीमें कितना फर्क है। एक वो थे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिन्होने पहले शराबकी बुराईयोंको जानकर देशसे शराबको समाप्त करनेके लिए भगीरथ प्रयास किए, नशेकी आदत छुडाकर, गुलामीसे मुकाबला करनेके लिए सबको होशमें ले आए। अंग्रेजोंसे लड-भीडकर उनको भारतसे बाहर खदेड दिया। और ये, एक औरतसे खुलेआम शराबकी फरमाईश करता है। छी!
