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डाॅ.मधु कश्यप

Drama

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डाॅ.मधु कश्यप

Drama

शिक्षा के सही मायने

शिक्षा के सही मायने

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कॉलेज के बिंदास दिन। क्लास शुरू होने वाली थी। टीचर नहीं आए थे तो हम सभी मस्ती में लगे हुए थे। कोई बात कर रहा था तो कोई अंताक्षरी खेलने में मग्न था। चूँकि मैं क्लास की पढ़ाकू लड़की थी (जैसा सब मानते थे) तो बोर्ड साफ कर मैं दिनांक, दिन और विषय लिख रही थी। तभी सर आ गए और हम सभी अपने अपने जगह पर बैठ गए।

ऋषि सर संस्कृत के जाने माने विद्वान थे और उनसे पढ़ना हमारे लिए सौभाग्य की बात थी। उन्होंने मुझे बोर्ड पर लिखते हुए देख लिया था। मैंने भी जैसे ही उन्हें आते हुए देखा अपनी जगह पर बैठ गई थी। अंदर आते ही सर ने मुझे अपने पास बुलाया। मैं बहुत डर गई। कहीं डाँट न पड़ जाए। उन्होंने कहा,


“क्या आप पटना वीमेंस कॉलेज से पढ़ी हुई हैं?”


“जी, सर” मेरे तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि इन्होंने कैसे जान लिया? आज तक सर से कभी बात भी नहीं हुई, हमारे कॉलेज में ये कभी पढ़ाने भी नहीं आए थे फिर कैसे जाना इन्होंने। मुझसे रहा न गया और मैंने पूछ ही लिया, “सर आपने कैसे जाना?”


उन्होंने कहा, “शिक्षा हमारे डिग्री से नहीं बल्कि हमारे व्यक्तित्व से परिलक्षित होनी चाहिए। मैंने आपको देखा तभी जान गया कि आप में जो अनुशासन और एकाग्रता है वह वहीं से मिल सकता है। यही सबसे बड़ी डिग्री है तुम्हारी”


इतने बड़े विद्वान से खुद के लिए ऐसी प्रशंसावाचक बातें सुन मेरा दिल खुश हो गया। मुझे अपनी शिक्षा पर गर्व महसूस हो रहा था। सर ने आगे बढ़ते हुए कहा, “मैं आप लोगों को एक किस्सा सुनाना चाहता हूँ। एक लड़का मेरे पास आया और कहने लगा, पता है सर मैंने अपनी पढ़ाई फ्रांस से पूरी की है। मैं जहाँ जाता हूँ सबको बताता हूँ। सभी जलते हैं मुझसे। मैंने उसे टोकते हुए कहा, “अगर तुम्हें ये बताना पड़े कि तुमने अपनी शिक्षा कहाँ से की है या कितनी डिग्रीयाँ हैं तुम्हारे पास, तो तुम्हारी शिक्षा अधूरी है। मुझे तुम्हारे व्यक्तित्व या अनुशासन से नहीं लग रहा कि तुम विदेश भी गए हो। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि लोग तुम्हें देखते ही तुम्हारी डिग्री और तुम्हारे कॉलेज को जान जाए”

मुझे लगा सर ने बातों ही बातों में कितनी बड़ी बात कह दी। केवल सर्टिफिकेटस जमा करना ही शिक्षित होने की निशानी नहीं है। हमारा व्यवहार, व्यक्तित्व, दूसरों के प्रति हमारा आदरभाव, हमारा अनुशासन ही हमारी सही शिक्षा है। तभी हम सही मायने में शिक्षित भी कहलाएगें। कहा भी गया है-


“विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्। पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥"



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