शिक्षा का सपना

शिक्षा का सपना

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" ए शीला ! शीलो रे ! जल्दी उठ जा। मेरे काम पर जाने का टैम हो गया है। देर से जाने पर मैडम जी का मुँह फूल जाता है।"

शीला की मम्मी सविता अपने ग्यारह साल की बेटी, जो भाई बहनों में सबसे बड़ी थी, को बिस्तर से उठाने के लिए झकझोरती जा रही थी और बीच - बीच में बड़बड़ाती भी जाती थी।

"उठ जा शीलू , और कितना सोएगी ? दिन निकल आया है ! लगता है ,आज इस लड़की के कारन मेरी शामत आने वाली है।"

" अच्छा, चल, तू सोती रह, मैं तो चली।" गुस्से में सोती हुई बेटी को दो तमाचा लगाकर , पैर पटकते हुए सविता जाने लगी।

पर, दरवाजे से बाहर निकलकर वह रुकी। एकबार मुड़कर अपने कोख जाइयों को देखा तो करुणा से उसका हृदय पसीज उठा।

सुबह की मारपीट से अब उसका मन थोड़ा दुखी था। पता नहीं क्यों उसे इतनी जल्दी गुस्सा आ जाता है।

परंतु इसके अलावा वह करती भी क्या ? समय से काम पर जाना भी तो जरूरी था। वरना, जब पाँच- पाँच बच्चे पैदा कराकर शीलू के बाप ने जाकर किसी और औरत के साथ गृहस्थी बसा ली तो वह बेचारी करती भी क्या ? यह उसकी मजबूरी ही तो थी जो पेट पालने के लिए घर-घर जाकर झाड़ू-पोछा का काम लेना पड़ा था।

सविता के चले जाने के बाद सारे बच्चे फटाफट उठ गए। शीलू इसके बाद अपने भाई-बहनों का मुँह- हाथ धुलवाकर ,उनको अपने पिता द्वारा पीछे छोड़े हुए रेड़ी पर चढ़ाकर गली के बाहर वाले रहीम चाचा की चाय की दुकान पर चल दी। रहिम चाचा रोज इन बच्चों को रात की बची हुई डबल रोटियाँ खाने को दे दिया करते थे।

परंतु, आज शीलू का मन किसी भी चीज पर नहीं लग रहा था। मुँह अंधेरे मार खाना भला किसे अच्छा लगता है ?

वह गाड़ी को पैडल मारती सामने के गुजरते हुए एक स्कूल भैन को देखती रही।

उसका भी बड़ा मन करता है, स्कूल जाने को।

पिताजी जब घर पर रहते थे, तो उसे कुछ दिनों तक स्कूल जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

वह भैन के पीछे-पीछे स्कूल गेट तक पहुँच गई।

सविता की दूसरी घर वाली मैडम स्कूल में शिक्षिका थी।

अगले दिन एक घर का काम समाप्त करके जब वह उस मैडम के घर पहुँची तो उन्होंने सविता से पूछा,

" अपने बच्चों को स्कूल क्यों नहीं भेजती, सविता ? कल मैंने, तेरी बड़ी वाली लड़की को बहुत देर तक स्कूल गेट के बाहर चक्कर काटते हुए देखा था।"

" मैडम जी, उसे स्कूल भेज दूँ तो छोटे-छोटे बच्चों की देखभाल कौन करे ?

घर के कामकाज भी कौन संभालेगा ? मुझे तो पूरा दिन लग जाता है आपलोगों का काम निपटाते हुए।"

" छोटे वाले बच्चे स्कूल के मैदान में खेल लेंगे। मैं कल ही चौकीदार को बोल दूँगी। शीलू तबतक थोड़ा पढ़ लेगी।

हाय, बेचारी का कितना मन है, पढ़ने का।"

" पर, मैडम जी, स्कूल की फीस , मैं गरीब कैसे चुका पाउंगी ?"

" सरकारी स्कूलों में फीस नहीं देनी पड़ती, पगली !

कल से उसे जरूर स्कूल भेजना, समझी ?

बाकी मैं देख लूँगी।"

" जी, मैडम जी, समझ गई।"


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