सही निर्णय
सही निर्णय
मेरी छोटी बहन का रिश्ता तय होने में अड़चन आ रही थी। कहीं रिश्ता पसंद नहीं आता था। एक रिश्ता जँचा ,वहाँ बात चलायी ।वे लोग आकर लड़की देख गए। उन्हें लड़की पसंद आयी , हॉं कर दी। घर में हर्ष की लहर दौड़ गई ,एक चिंता दूर हुई ,भाग दौड़ ख़त्म हुई ,सब निश्चिंत हुए ,रोकना कर दी गई। बड़े भाई ने चैन की साँस ली ,और ख़ुशी के मारे उनकी आँखों से अश्रु बहने लगे। प्रयास सफल हुआ था। सब कृतकार्य महसूस कर रहे थे।
मँझले भैया शादी की तिथि निश्चित कराने के लिए लड़केवालों के घर गए। वहाँ अकेला लड़का व उसकी मॉं थे ,उसके पिता नहीं थे। लड़का ख़ुद अपनी शादी की बात करने आया। शादी की तिथि तय करने में कोई अड़चन नहीं आई।
फिर बाद शुरू हुई कि शादी किस तरह की होगी, क्या देंगे। भैया ने कहा कि हमारा अच्छा कुलीन परिवार है अपनी हैसियत के मुताबिक़ और आपकी प्रतिष्ठा के मुताबिक़ शादी होगी और लड़की के इस्तेमाल का सारा सामान व और भी जो सामान दिया जाता है ,सब देंगे। पर इससे वे लोग संतुष्ट नहीं हुए।
लड़का स्वयं काग़ज़ क़लम लेकर आ गया और सामानों की फ़ेहरिस्त बनाने लगा। क्या क्या सामान दिया जाएगा ,किस क्वालिटी का होगा ,कितने दाम का होगा ,कौन से ब्रांड का होगा और कितना ख़र्चा शादी में पड़ेगा,कितना नक़द दिया जाएगा यह सब लिखने लगा। भैया की इच्छा पर कुछ नहीं छोड़ा,न उनसे इस बारे में कुछ पूछना या उनकी राय जाननी चाही। सब उसकी एक तरफ़ा बात थी।
जो भाई अपनी बहिन की शादी कर रहा है उसके भी कुछ अरमान होंगे , स्नेह प्रेम होगा। सारे बात पैसों से और चीज़ों के ब्रांड की क़ीमत से तोली जा रही थी। लड़का सी ए था , सारा हिसाब किताब बैठाने लगा। भैया को लगा ऐसे घर में जाकर बहिन सुखी नहीं होगी जहाँ पहले से ही इतनी डिमांड है और सब चीज़ें इस तरह गिनाई जा रहीं हैं। बाद में लड़की को ही भुगतना पड़ेगा यदि कुछ कमी रह गई या लड़के की पसंद लायक चीज़ें नहीं हुई।
भैया पसोपेश में थे। वहाँ से तो सुनकर आ गए। घर में बैठकर फिर सब परिवार वालों से सलाह करी कि क्या किया जाए। बड़ी मुश्किल से तो एक रिश्ता पक्का हुआ था और अब इस तरह पैसों की बात आ खड़ी हो गई, और वह भी ख़ुद लड़के के मुँह से। लड़का तो बाकायदा काग़ज़ क़लम लेकर बैठ गया था और चीज़ों की फ़ेहरिस्त बनाने लगा था। उसका वह व्यवहार और आचरण किसी को भी परिवार में नहीं भाया। जब लड़का स्वयं चीज़ों के प्रति इतना आग्रह रख रहा है तो बाद में लड़की को क्या सुख देगा। हर समय सुसराल से ही सामान मिलने की उम्मीद करेगा।
बड़ी विकट समस्या थी। समाज में आदर मान प्रतिष्ठा थी ,सब को पता चल गया था कि लड़की का रिश्ता तय हो गया है। अब रिश्ता टूट गया जानकर क्या प्रतिक्रिया होगी। क्या इज्ज़त रहेगी ।
बहिन की उम्र बढ़ती जा रही थी। फिर दूसरा लड़का कहाँ खोजें ,कहॉं इतनी जल्दी रिश्ता मिलेगा? सभी विचार करने लगे। कोई हल समस्या का समझ में नहीं आ रहा था। लड़के की माँग पूरी की जा सकती थी ,पर इसके बाद भी क्या बहिन सुखी रहेगी?
बड़ी बहिन की शादी में यह सब भुगत चुके थे, लड़के वालों की माँग के अनुसार सब कुछ दिया गया था, कार भी दी गई थी,पर बहिन सुखी नहीं रही। अब क्या दूसरी बहिन के लिए भी वही क़िस्सा दोहराया जाएगा?
सब भाई ,भाभी ,माँ ,चाची वग़ैरह मिलकर बैठे, आपस में सलाह की और यह निश्चय किया गया कि वहॉं का रिश्ता तोड़ दिया जाए, इसी में भलाई है ,ऐसे रिश्ते से कोई फ़ायदा नहीं। भैया बोले कि हम बहिन के लिए दूसरा रिश्ता खोज लेगें,बहिन की शिक्षा पूरी करा देंगे जिससे अपने पैरों पर खड़ी हो सके, स्वावलम्बिनी हो सके। उसे भार समझ कर रूपये पैसे के दबाव से किसी के पल्ले नहीं बाँधेंगे। सबकी सहमति से निश्चय पक्का हो गया। यह एक साहसिक क़दम था जो पूरे परिवार की सलाह से लिया गया था और यह एक तरह से अच्छा ही रहा।
विचार और व्यवहार ही हमारे व्यक्तित्व के वे फूल हैं जो हमारे पूरे व्यक्तित्व को महका देते हैं। कविवर दिनकर ने कहा है-
'हो तिमिर कितना ही गहरा,
हो रोशनी पर लाख पहरा,
सूर्य को उगना पड़ेगा।
फूल को खिलना पड़ेगा।'
आगे क्या होगा यह सोचकर निराश होने की ज़रूरत नहीं है-
'साथ ही लड़ना पड़ेगा,
साथ ही चलना पड़ेगा।'
कोई ना कोई रास्ता निकल ही आता है यदि सब मिलकर क़दम उठाएँ और दृढ़ संकल्प लें।लड़की को भी स्वयं सक्षम होना होगा कि कोई उसका अपमान करने की सोच भी न सके, उसके बजाय रूपये को ज़्यादा महत्त्व देकर।
