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शहर की कहानी से इश्क तक

शहर की कहानी से इश्क तक

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क्या शहर है ये ! मुझे बहुत पसन्द है। निखिल ने चांदनी चौक के बस स्टैंड पर बैठे सड़क की ओर देखते हुए कहा। क्या खूबसूरती है इस शहर में..? जब इस सवाल ने निखिल के कानों को छुआ तब उसे पता चला की शहर के लिए अपनी इस दिवानगी का एहसास वो खुद के साथ-साथ किसी और को भी करवा चुका है। हेल्लो...मैं आप से पूछ रही हूँ क्या खास है इस शहर में ऐसा?...जी क्या नहीं है, निखिल ने धीमी आवाज़ में कहा "ये शहर है ना, पूरी किताब है" जिसमे कई कहानियां सांसे लेती है। अच्छा! निखिल के जवाब पर एक संदेह भरा उत्तर फिर आया। वो देखो .. एक कहानी जा रही है जो अपने माथे पर खींची न जाने कितने सवालों और जवाबों की रेखाओं को लिये हुए अपने घर की ओर बढ़ रही है। पता है, उसकी ये सारी रेखाएं उस वक़्त सिमट कर उसके चेहरे पर आ कर खिलखिलायेगी। जब एक नन्ही कहानी उसके हाथों को छूती हुई उसके गालों को चूम लेगी। उस तरफ देखो ' कैसे वो दो कहानियां एक दूसरे में अपनी पूरी दुनिया समाई हुई है। उन्हें पता है, जिन हथेलियों को पकड़कर वो एक दूसरे को साधे हुए है। शायद उन हथेलियों की भविष्य की रेखायें उन्हें एक दूसरे की आने वाली जिंदगी में दस्तक देने की इजाज़त न दे। लेकिन फिर भी ये दोनों कहानियां अपने आने वाले कल को सुनहरी यादों से भर देना चाहती है।

ये कहानी जो भूख से तिलमिलाती हुई, चंद पैसों के लिये अपनी जिंदगी को महज दो रुपय के पेपर के पीछे छुपा कर जी रही है। इनके बारे में तुम्हारा क्या कहना है? इस सवाल को सुनकर निखिल ने एक लम्बी सांस ली और कुछ पल सोचते हुए बोला " ये कहानी हमें ख्वाबों और हक़ीक़त की दुनिया के बीच के अंतर को बताती है। हमें छोटी छोटी ख़ुशियों में खुश रहना और जिंदगी को किसी भी हाल में जीने का हौसला देती है।

तुम इतनी सारी कहानियों के बारे में करीब से और इतने अच्छे से कैसे जानते हो! देखिये...निखिल ने किसी टीचर की तरह समझाते हुए कहा "कुछ लोग होते है और कुछ ऐसी जगह होती है, जिन्हे पहली बार देख कर लगता है कि आप इनके बारे में जाने क्यों बहुत अच्छे से जानते है। ये वो एहसास है, जिन्हें शब्दों में पिरोना मुश्किल है। एक लम्बी सांस छोड़ते हुए निखिल ने अपनी बात ख़त्म की।

तुम्हें पता है एक कहानी की आज इस शहर की किताब में नई शुरुआत हुई है। वो भला किसकी कहानी है? निखिल की पूरी बात खत्म भी नहीं हुई थी कि बीच मे ही इस सवाल ने उसे रोक दिया।

निखिल और रिया की। रिया! है, ये तो मेरा नाम है, तुम्हें मेरा नाम कैसे पता चला ?? रिया ने दोनों भौहें चढ़ाते हुए पूछा? "कहा था न कुछ लोग होते है जिनके बारे में पहले से पता होता है" निखिल ने हंसते हुए कहा। मज़ाक कर रहा हूँ। तुम्हारी कॉलेज आईडी से पता चला।

इसी बीच दोंनो की मुलाक़ात पर अल्पविराम लगाती हुई सिटी बस आकर रुकी।  

उस समय बस की ओर न देखते हुए दोनो ने एक दूसरे की आंखों में देखते हुए न जाने क्या बात कही की, पैदल ही अपनी कहानी की शुरुआत करने चल दिये।


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