Ravi Verma

Children Stories Drama Tragedy

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Ravi Verma

Children Stories Drama Tragedy

खरगोश और कछुए की रेस

खरगोश और कछुए की रेस

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खरगोश अक्सर दौड़ते वक़्त स्पोटिफाई पर मोटिवेशनल गाने सुनता था। विकेन्ड की सुबह भी खरगोश गाने सुनते हुए अपनी मस्ती में दौड़ रहा था। अचानक खरगोश ने देखा कि उसके आगे एक कछुआ अपनी धीमी रफ़्तार से दौड़ने की कोशिश कर रहा है। अपने आगे दौड़ रहे कछुए की वज़ह से खरगोश को बहुत धीमे दौड़ना पड़ रहा था। खरगोश ने धीमे दौड़ते हुए कई बार सोचा कि वह साईड से निकल जाए लेकिन साथ ही उसे कछुए से टकरा जाने का भी डर था। आख़िर कुछ देर बाद खरगोश का धैर्य जवाब दे गया। और वह थोड़ी गति तेज करते हुए कछुए के पास आकर उसके कान में बोला।
—" ये जगह दौड़ने के लिए है, चलने के लिए नहीं।“

कछुए के कान ने जैसे ही खरगोश के कह गए लब्जों को छुआ, वह तपाक से बोल पड़ा।
-"दौड़ा तो आगे निकल जाऊँगा।"

खरगोश और कछुए के बीच इस गहमागहमी को दूर बैठे बंदर ने अपने आईफोन में क़ैद कर लिया। और तुरन्त सोशल मीडिया पर #Kachuachallengeskhargosh के हेशटैग के साथ वायरल कर दिया।

बंदर पेशे से अपने यूट्यूब चैनल में पत्रकार था। इसलिए उसका ये पोस्ट तुरन्त वायरल हो गया। खरगोश और कछुए के चैलेंज के चर्चे प्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी होने लगे।

बंदर के वयारल वीडियो का असर ये हुआ की विपक्ष ने इस घटना के बारे में मानसून सत्र में हंगामा करना शुरु कर दिया। विपक्ष के तीखे सवालों का जवाब देते हुए खेल मंत्री लोमड़े ने कछुए को दौड़ की तैयारी के लिए एक कोच व किट देने की घोषणा कर दी। खेल मंत्री के साथ ही सड़क एवम परिवहन मंत्री अजगर ने भी कहा कि।
-"यदि कछुआ ये रेस जीतता है तो प्रदेश के सभी गाँव में “कछुआ चाल योजना” के अंतर्गत सड़के बनवाई जाएगी।"

खेल मंत्री की मदद के बाद से ही कछुए को ये पूरा यकिन था कि वो ये रेस जीत जाएगा। अब वह सारा समय रेस की तैयारी में लगाने लगा। लेकिन खेल मंत्री की घोषणा का खरगोश पर बिल्कुल विपरित प्रभाव पड़ा। घोषणा के बाद से ही खरगोश ने मैदान में आना काफ़ी कम कर दिया था। खरगोश अब अपना पूरा दिन दोस्तों के साथ बिताता था। वह सुबह इधर-उधर बैठकर चाया पीता और शाम को दोस्तों के साथ लॉन्ग ड्राइव पर निकल जाता था। किसी ने भी खरगोश को इतना लापरवाह नहीं देखा था।

कछुआ खेल मंत्री की घोषणा के बाद से ही दुगनी मेहनत से रेस की तैयारी करने में व्यस्त था। एक दिन कछुए के रुम मेट कौवे ने उसे बताया कि उसको दो महिने का किराया देना है। इसके बाद उसने कहा कि रुम के बाहर मंत्री की तरफ़ से उसके लिए भेजा गया कोच भी खड़ा है। रुम के किराए वाली बात भूलकर कछुआ तुरन्त भेजे गए कोच को देखने के लिए रुम के बाहर आ गया। रुम के बाहर अपने हाथ में दो सूटकेस और पीठ पर पीठु बेग टांगे 58 साल की उम्र में 70 का दिखने वाला घोंघा खड़ा था।

कछुए को देखते ही घूँगे ने अपनी जेब से किट और बाकि सामान की लिस्ट उसे पकड़ा दी। और धीरे-धीरे सरकते हुए रुम के अंदर दाखिल हो गया। कछुआ भी घूँघे के पीछे-पीछे अपने रुम में आ गया। बिना किसी के पूछे और टाईम गवाए घूँघे ने तुरन्त बता दिया कि वह अब से रेस ख़त्म होने तक कछुए के साथ रहेगा। और उसके सारे खर्चे उसे ही उठाने होंगे। साथ ही घूँघे ने कछुए को तसल्ली देते हुए ये भी कहा कि खेल मंत्री सारे बिल के खर्चों का रिम्बर्समेंट कर देंगे।

खरगोश और कछुए की रेस की घोषणा की ख़बर को ब्रेक करने वाले बंदर को चमन भास्कर ने अपनी डिजिटल टीम में स्पोर्टस् कॉन्टेंट राइटर के तौर पर तीन महिने की इंटर्नशिप पर रख लिया था। बंदर के लिए ये बहुत ही सुनहरा मौका था क्योंकि यूनिवर्सिटी की पूरी क्लास में एक मात्र वही था जिसे पढ़ते हुए  नौकरी मिली थी।

घोंघे के रुम में रहने के कारण मकान मालिक लकड़बग्गे ने किराया बढ़ा दिया था। जिसके चलते कछुए और उसके रुममेट कौवे की दोस्ती में खट्टास पैदा हो गई थी। क्योंकि ना चाहते हुए भी कौवे को बड़े हुए रुम के किराए में अपने हिस्से को बढ़ाना पड़ा था। हलांकि कौवे ने सीधे तौर पर कछुए से कभी कोच घोंघे को लेकर कुछ नहीं कहा, लेकिन हमेशा कछुए से बात करते समय वह उखड़ा-उखड़ा रहता था।

कछुआ फिर भी सबकुछ भूलकर अपनी होने वाली रेस पर ध्यान लगाना चाहता था। जिसके लिए वह जोर-शोर से तैयारी भी कर रहा था। कोच घोंघे के आने के बाद से उसकी ये तैयारी की रफ़्तार कुछ धीमी हो गई थी। कोच के ना होने से पहले कछुआ तैयारी करने के लिए लालपरेड मैदान तक दौड़कर जाता था। क्योंकि कोच घोंघा डायबिटिज का मरीज़ था। इसलिए उसे सरकारी बस पकड़कर मैदान तक जाना पड़ता था। जिसके कारण उसके खर्चे में दो लोगों के बस के टिकिट का ख़र्चा और बड़ गया था।

एक दिन मैदान में दौड़ते हुए कोच घोंघा बीच मैदान में चक्कर खाकर गिर पड़े हैं। कोच को गिरते देख कछुआ तुरन्त उनके पास गया। कोच घोंघे की सांसे बहुत धीमे-धीमे चल रही थी। उनकी हालत बहुत ही गंभीर हो चुकी थी। कछुए ने आनन-फानन में कोच को रेड क्रॉस में भर्ती कराया। जहाँ कोच का इलाज़ लगभग तीन दिनों तक चला। कछुए के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अस्पताल का बिल भर पाता। फिर भी उसने इधर-उधर दोस्तों, रिशतेदारों से उधार पैसे लेकर ईलाज का ख़र्चा उठाया। कौन जानता था कि सरकार की ये मदद कछुए के लिए अभिशाप साबित होगी।

दो दिन में रेस शुरु होनी थी और कछुए के पास रेस के लिए किट तक नहीं थी। कछुए ने अपने अस्पताल के बिल के साथ तमाम बिलों को इक्कठ्ठा किया और सीधा खेल मंत्री लोमड़े के दफ्तर की तरफ़ चल दिया। लेकिन कछुए को वहाँ जाकर निराशा ही हाथ लगी। मंत्री जी के पीए गिद्द ने बताया।


-"लोमड़ जी पंद्रह दिन पहले फाइनेंस मिनिस्टर गधे के द्वारा पेश किए गए बजट पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने में व्यस्त हैं।"

कछुए ने पीए गिद्द की कॉन्फ्रेंस वाली बात को काटते हुए सीधे सवाल पूछा, -"बजट पर प्रेस कॉन्फ्रेंस खेल मंत्री क्यों कर रहे हैं?"

कछुए के जवाब में गिद्द ने उसे गिद्द भरी नज़रों से देखा। कछुए को गिद्द भरी नज़रों से देखने पर कोच घोंघा कछुए को तुरन्त दफ्तर से बाहर खींच कर ले गए। क्योंकि कोच घोंघा बखूबी जानता था कि पीए गिद्द ने जिस किसी खिलाड़ी को गिद्द भरी नज़रों से देखा  उसका करियर ख़त्म हो गया। एक बार उसने मादों खिलाड़ियों की टीम को गिद्द भरी नज़रों से देखा था तो खिलाड़ियों की गिनती में कुछ दिन बाद कमी हो गई थी।

अपने बिल का रिम्बर्समेंट ना पाकर कछुआ दुखी था। वह अपना मायूस चेहरा लिए मन में कुछ बड़बड़ाये रुम की तरफ़ जा रहा था। तभी उसे याद आया कि उसकी मदद उसका वीडियो वायरल करने वाला वो अपने यू-ट्यूब चैनल का पत्रकार बंदर कर सकता है। वह बंदर को खोजते हुए उसके दफ्तर तक पहुँच गया।

बंदर कछुए से लंच टाईम के दौरान दफ्तर के बाहर पान की दुकान पर उधारी की सिगरेट पीते हुए मिला। कछुए ने बंदर को सारा मामला बताया। साथ में बंदर से विनती करते हुए कहा—"आप तो स्पोर्ट्स के कॉन्टेंट राईटर है। अगर आप मेरी ख़बर छापेंगे तो मंत्री पर ज़रूर दबाव बनेगा।"
-"आप समझ नहीं रहे हैं, ये मामला अब स्पोर्ट्स बीट का रहा नहीं। ये पॉलिटिक्स बीट की खब़र बन गई है।“
और आप क्रिकेट भी तो नहीं खेलते !"

बंदर ने सिगरेट के धुँए को बेफिक्रि में उड़ाते हुए ऐसे कहा कि जैसे उसे अब इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं है।

बंदर की बात सुनकर बगल में बैठे कोच घोंघा आलू का पराठा खाते-खाते रुक गए और तुरन्त बोल पड़े।

क्यों?

"अरे, क्रिकेट खेलते तो तुरन्त ख़बर लिखकर वेबसाइट पर ट्राफिक जनरेट कर देता। और यूँ चुटकियों में आपकी ख़बर वायरल हो जाती। क्या है ना-धावक, दौड़, जैसे की-वर्ड पर ट्राफिक जनरेट नहीं होता।"

बंदर की बात सुनकर कछुआ और घोंघा मायूस हो गए। दोनों को मायूस देख बंदर ने लास्ट गोल्डन कश लिया। और सिगरेट को बेरहमी से पैरों के नीचे दबाते हुए धीरे से बोला।

—"जैसा मैंने आपको पहले भी बताया, ये मामला पॉलिटिक्स बीट का है। आप किसी पॉलिटिक्स बीट देखने वाले रिपोर्टर से मिलो। और हाँ, इस बार प्रिंट मिडिया के रिपोर्टर से मिलना।"

कहते हुए बंदर छुपते-छुपाते अपने दफ्तर में इस तरह दाखिल हुआ जैसे बाहर ही न निकला हो। बंदर की सलाह पा कर कछुआ और घोंघा प्रिंट जर्नलिज्म के रिपोर्टर से मिलने पहुँचे। जहाँ उन्हें बहुत खोजने पर भी कोई पॉलिटिक्स बीट का रिपोर्टर नहीं मिला। वे लोग जिस भी पॉलिटिक्ल बीट के रिपोर्टर से पूछते-

क्या वो पॉलिटिक्स बीट का रिपोर्टर है ?

रिपोर्टर तुरन्त मना कर देता और ख़ुद को सिर्फ़ एक विशेष राजनीतिक पार्टी की ख़बर देने वाला रिपोर्टर बता देते। कछुआ लगभग शहर के प्रिंट माध्यम में काम करने वाले सभी पॉलिटिक्स बीट के रिपोर्टर से मिल चुका था। उसे कहीं भी पॉलिटिक्स बीट वाला रिपोर्टर नहीं मिला। कुछ को तो दौड़ने जैसे स्पोर्टस के बारे में उसी दिन पता चला।

कछुआ दिनभर की इस भागा-दौड़ी से तंग आकर थक चुका था और उसे भूख भी बहुत लग रही थी। लेकिन कछुए की जेब में पैसे के नाम पर रिम्बर्समेंट के बिल रखे हुए थे। कछुए का मन हुआ कि वह बिल को बोर्ड ऑफिस चौराहा पर खड़ा हो कर ज़ोर से चिल्लाते हुए फाड़ दें। तभी उसे हबीबगंज की तरफ़ जाती हुए सड़क पर अपनी और खरगोश की रेस वाला पोस्टर दिख गया। कछुए ने अपनी बची हुई हिम्मत को जोड़ा और घोंघे के साथ अपने रुम कि तरफ़ चल दिया।

रुम पहुँचकर कछुए ने सोचा बचे हुए ग्लोकोज को पीकर भूख मिटाई जाए और फिर चुपचाप सोकर आराम किया जाए। कछुआ रुम पहुँचकर जैसे ही ये ग्लूकोज के पैकेट को उठाकर गिलास में पलटता है। पैकेट में से कुछ नहीं निकलता है। जब कछुए ने खाली ग्लूकोज़ के बारे में अपने रुम मेट कौवे से पूछा तो उसने बताया।

ग्लोकोज़ उसने पी लिया है। उसने अपने बचपन में ग्लोकोज़ को टेस्ट किया था। और ग्लोकोज़ का पैकेट को देखकर वह दोबारा अपना बचपन की यादें ताज़ा करना चाहता था। लेकिन उसे इसका टेस्ट बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उसने कुछ पीकर बाक़ी बचा हुआ सिंक में बहा दिया। पूरी बात बताकर कौवा हँसने लगा।

कौवे की बात सुनते ही कछुए को लगा जैसे उसके कंधे पर किसी ने पाँच मंजिला इमारत का बोझ डाल दिया हो। उसके रीढ़ की हड्डी इतनी झुक गई मानों कछुआ कोई धनुष हो। वह अपनी सारी हिम्मत खोता हुआ बिस्तर पर गिर गया। उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। उसके कानों में लगातार कोई सीटी बजने की आवाज़ एक लय में बज रही थी। कछुए ने अपनी तकिया के नीचे से इयरफोन निकाले और गाना सुनते हुए सोने की कोशिश करने लगा।

जो कछुआ मोटिवेशनल गाने सुनकर सोता जागता था। वह आज तमाम दुख को समेटे हुए बिस्तर पर बेढंगे ढंग से पड़ा हुआ। "जिन्हें नाज़ है हिंद पर वह कहाँ हैं?" सुन रहा था।

अगली सुबह 6 बजे लालपरेड मैदान पर खरगोश रेस की तैयारी करने के लिए अपने प्राइवेट कोच चीता के साथ नज़र आया। रेस में सिर्फ़ दो दिन बाकि रह गए थे। इसलिए खरगोश ने प्राइवेट कोच को ट्रेनिंग के लिए हायर किया। कोच चीते को देखकर कोई भी उसकी उम्र का अंदाजा लगाने में धोखा खा सकता था। कोच चीता 65 की उम्र में भी 35 का दिखता था। चीते ने प्रदेश का नाम नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर रोशन किया था। इसलिए खरगोश ने मोटी रक़म देकर उसे ख़ुद को ट्रेंड करने के लिए हायर किया था।

रचना नगर में सुबह को ख़त्म हुए पूरा एक घण्टा हो चुका था। लेकिन अभी तक कछुए ने अपना बिस्तर नहीं छोड़ा था। घोंघा कछुए को उठाते समय कई बार बोल चुका था।
-अब तो उठ जाओ दोपहर की एक बज चुके हैं।

कछुआ तो जैसे उठने का नाम ही नहीं ले रहा था। वह हर बार बिस्तर पर ईधर-उधर करवट बदलकर फिर से सो जाता था। कछुए ने आखिरी बार कछुए को उठाते हुए कहा।
-रेस को एक दिन बाक़ी है क्या तुमको तैयारी नई करनी।

रेस का नाम सुनते ही कछुआ सकपका के बैठ गया। लेकिन रेस का नाम सुनते ही उसके दिमाग़ में लालपरेड मैदान नहीं बल्कि मंत्रालय जाने का ख़्याल आया। कछुए ने तुरन्त अपने जेब में रखे बिलों को टटोला और उन्हें गिनने लगा। सारे बिल बराबर अपनी जगह पर थे। कछुआ बिस्तर से उठा और हाथ मुंह धोकर तुरन्त तैयार हो गया।

घोंघे के पूछने पर कछुए ने बताया कि वह मंत्री जी से मिलने जा रहा है। ताकि वह जल्द से जल्द अपने बिलों को रिम्बर्समेंट करवा सकें। मंत्रालय पहुँचने पर कछुए को पता चला की मंत्री पार्टी की तरफ़ से चुनाव प्रचार करने बिहार गए हैं। लेकिन उसे चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। मंत्री जी आते ही उसके बिल का रिम्बर्समेंट करने के लिए केंद्र से फंड की मांग करेंगे। कछुआ हताश होकर फिर से अपने रुम पर चला आया।

रुम पर पहुँचते ही घोंघे ने उसे बताया कि उसका रुम मेट कौवा रुम छोड़कर जा चुका है। आज उसके फाइनल सेम का रिजल्ट आ चुका था। कछुए के लिए अपने रुम मेट को विदा न कर पाने के दुख से बड़ा दुख कमरे के किराए का था।
-"चिंता मत करो कल की रेस में तुम जैसे ही जीतोगे तुम्हारे दुखों का अंत हो जोएगा।"

घोंघे ने एक कुर्सी पर बैठे हुए कहा।

कछुए का मन हुआ की वह घोंघे का सर पकड़कर दीवार में दे मारे और तब तक मारता रहे जब तक उसका मन नहीं भर जाता। लेकिन कछुआ ऐसा नहीं कर सकता था। क्योंकि कछुए के माता-पिता ने उसे सिखाया था कि बड़ों को पलटकर कभी जवाब नहीं देना चाहिए। बिस्तर पर पड़े-पड़े मिडियम स्पीड में पंखे को घूमता देख कब कछुए को नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला।

चारों तरफ़ रेस देखने के लिए इक्कठा हुए जानवरों कि भीड़ खड़ी थी। भीड़ में मौजूद कुछ चाहते थे कि कछुआ ये रेस जीते और दुनिया में एक मिसाल क़ायम कर दें। कुछ लोग खरगोश को रेस से पहले ही विजेता मान चुके थे।

खरगोश अपनी पॉजिशन पर पूरे आत्मविश्वास के साथ खड़ा था और वह रेफरी की कॉल का इंतज़ार कर रहा था। रेफरी ने जैसे ही तीन की गिनती के साथ हवा में फायर किया। खरगोश भी उसी गोली की रफ़्तार से कछुए की आँखों के सामने से गायब हो गया।

कछुआ अपनी स्पीड में आगे बड़ रहा था। रेस देखने आए कुछ जानवर कछुए का मनोबल बड़ा रहे थे। कछुआ भी रेस में काफ़ी तेजी से आगे बढ़ रहा था। कुछ दूर दौड़ने के बाद कछुए को दौड़ने में बहुत कठिनाई होने लगी। कछुए को लग रहा था जैसे कई टनों का वज़न उसके शरीर पर लदा हुआ है। कुछुए ने जब सारे शरीर टटोला तो उसे सबसे भारी वज़न का एहसास अपनी जांघो के पास हुआ। उसने देखा कि उसकी दोनों जाघों के पास पॉकेट में बहुत सारे बिल है, जिन्हें उसे रिम्बर्समेंट करवाना है। कछुए का सारा ध्यान रेस ट्रेक पर ना होकर मंत्रालय की तरफ़ था। कछुआ जब भी दौड़ने की कोशिश करता उसके कागज़ का वज़न और बढ़ता जाता।

कछुए को अचानक ऐसा लगा वह कई सालों से इस रेस में दौड़ रहा है। और उम्र के साथ उसके रिम्बर्समेट बिल भी बढ़ते जा रहे हैं। कछुआ दौड़ते-दौड़ते लगभग 70 साल हो चुके थे। रेस देखने वालों में अब नई पीढ़ी शामिल हो चुकी थी।

कछुए से अब उन बिल का वज़न नहीं सहा जा रहा था। कछुआ जैसे-तैसे एण्ड पॉइन्ट पर पहुँचा तो वहाँ खरगोश पहले से ही मौजूद था। कछुआ खरगोश को देखकर चौंक गया।
तुम यहाँ कैसे हो सकते हो?  जीतना तो मुझे है। सब जानते है।

कछुए की बात सुनकर खरगोश मुस्कुराया...
-"अरे... नहीं आप ग़लत समझ रहे हैं। मैं वह नहीं जिससे आपकी रेस लगी थी। वह तो मेरे दादी जी थे। दादजी ने कहा था, कछुआ आए तो उसे बता देना वह रेस हार गया।"

रेस हारने के साथ ही कछुए को ये भी पता चला कि जानवरों का समाज खरगोश की आने वाली सभी पीढ़ी को विजेता घोषित कर चुका है। कछुए को ये जानकर ज़रा भी हैरानी नहीं हुई कि वह रेस हार गया या खरगोश की आने वाली पीढ़ी को विजेता घोषित कर दिया गया है। कछुए को तो बस अपने पैरों में हो रहे दर्द की चिंता थी। उसके पॉकेट में रखे हुए कागज़ का वज़न अब संभालना बहुत मुशकिल हो रहा था।

कछुआ रेस के मैदान से निकलकर सीधा मंत्रालय की तरफ़ गया। मंत्रालय में उसे पता चला कि सरकार बदल चुकी है। और बदली हुई सरकार जल्द से जल्द उसके बिल का रिम्बर्समेंट करेगी। कछुआ ये बात सुनकर बहुत ही खुश हुआ। कछुआ बिल के रिम्बर्समेंट से इतना खुश था जितना वह जीतने पर भी नहीं होता।

कछुआ बस अब सोते-जागते अपने बिल के रिम्बर्समेंट होने का इंतज़ार कर रहा था। एक दिन कछुआ चाय पी रहा था। जहाँ अख़बार पड़ते हुए उसे पता चला कि उसके और खरगोश के बीच दौड़ी गई रेस में बहुत बड़ा घोटाला हुआ है। सत्ता में बैठी सरकार ने रेस के ऊपर तोतो (पॉपट) की एक एसआईटी गठित कि है। जो रेस में हुए करोड़ो के घोटाले की जाँच कर रही है। एसआईटी ने अभी तक अपनी जांच में मुख्य आरोपी के रूप में पूर्व खेल मंत्री लोमड़ और उसके पीए गिदद् को बताया। इसका खोलासा कछुए के द्वारा लगाए गए रिम्बर्समेंट बिल से हुआ। एसआईटी पूछताछ के लिए कछुए को गिरफ्तार कर सकती है।

अखबार में लिखे एक-एक शब्द को पड़ते हुए कछुआ ज़मीन में धसा जा रहा था। कछुए को लग रहा था जैसे आस-पास बैठे लोग सिर्फ़ उसकी गर्दन देख पा रहे हैं। उसका बाक़ी शरीर ज़मीन में धसा है।

लगभग एक साल तक एसआईटी टीम पॉपट ने घोटाले की जाँच कि। इस दौरान कछुए को कई बार गिरफ्तार किया गया। जाँच के दौरान ही ख़बर आई कि विपक्ष में कभी कदावर नेता रहे लोमड़ ने अपनी पार्टी से इस्तीफा देकर सत्ताधारी पर्टी में शामिल हो गए हैं। पार्टी में शामिल होते ही एसआईटी ने अपनी जांच में लोमड़ को सभी आरोप से बरी कर दिया है।

एक दिन गिरफ्तारी से तंग आकर पूछताछ के दौरान कछुए ने अपना जुर्म कबूल कर लिया। जिसके लिए उसे दस साल की सजा हुई। जंगल में हुए इतने बड़े घोटाले की ख़बर सुन सारे टैक्सपेयर बैल सड़कों पर उतर आए और सरकार की खिलाफ नारे बाजी करने लगे। बैलों ने सड़कों पर उतरकर ये मांग रखी कि देश में किसी भी प्रकार कि रेस न करवाई जाए। क्योंकि इस तरह के आयोजन से ही घोटाले होते हैं। बैलों ने सरकार से कहा कि वह उनके टैक्स के पैसों का इस्तेमाल विकास के कार्यों में करें।

सरकार ने बैलों को ये आश्वासन दिया कि वो भविष्य में फिर किसी भी तरह कि रेस का आयोजन नहीं करेगी।इसके साथ ही सरकार ने ये भी फ़ैसला लिया। रेस में हुए घोटले से इसे जीतने वाले खरगोश की छवि खराब हुई है। और सरकार ने ये फ़ैसला लिया है कि वह खरगोश के सम्मान में उसकी एक विशाल मूर्ति बनवाएगी। सब एडिटर बंदर ने अपने अख़बार में सरकार के इस फैसले को ऐतिहासिक बताया।


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