नन्ही नज़रों से राजनीति
नन्ही नज़रों से राजनीति


मां …जल्दी करो मैं लेट हो जाऊंगी।
हां ठीक है, ठीक है ...कौन-सा तू ताजमहल देखने जा रही है। आखिर देखने तो तू वही गन्दगी जा रही है...राजनीति और राजनेताओं ‘मनुजियम’ का ?
मां ‘मनुजियम’ नहीं, म्यूजियम.. -सिल्की ने सोफे पर गिरते हुए दोनों हाथों से अपनी हंसी को दबाते हुए कहा। और ये देश का पहला ऐसा म्यूजियम है जहां स्टूडेंट्स को राजनेताओं द्वारा राजनीति के दांव पेंच के बारे में बताएंगे।
अपनी त्यौरियां चढ़ाते हुए मां ने गुस्से से कहा- ज्यादा हंसने की जरूरत नहीं है, जब देखेगी न राजनैतिक पैंतरों को तो होश उड़ जाएंगे।
मां! आप हमेशा राजनीति को कोसती क्यों रहती हैं? और मुझे डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक यहाँ तक की आईपीएस तक बनने का बोलती हो पर कभी ये नहीं कहती की तुम रजनीति में जाना नेता बनना, ऐसा क्यों नहीं कहती हो?
सोचना भी मत.. ये देश बदलने का नेता-वेता बनने का भूत अपने सर से जितनी जल्दी हो सके उतार दो। -सिल्की की मां ने गुस्से में कहा।
लेकिन मां, आप से सिर्फ नेता बनने का ही तो बोल रही हूँ। इंटरकास्ट मैरिज करने की इजाज़त थोड़ी मांग रही...
ऐ लड़की दोनों में से कुछ भी किया न तो टांगे तोड़ दूंगी।
सिल्की को लगा जैसे उसने यह बोल कर अपनी मां की तीसरी आंख खोल दी। अब उसे अपनी मां के प्रकोप से कोई नहीं बचा सकता। तभी बाहर से स्कूल बस की आवाज़ आई जिसे सुनकर सिल्की ने राहत की सांस ली।
"अरे सिल्की, जल्दी करना कहां रह गई थी"।
पूछ मत आज तो सत्ताधरी पार्टी ने मुझे चारों खाने चित कर दिया था।
पार्टी ,सत्ता ... क्या बोल रही है तू.. दिमाग घूम गया है क्या तेरा ..रिमी ने सिल्की की बातों पर सर खुजाते हुए कहा।
अरे पगली अपनी माँ की बात कर रही हूं ...चल छोड़, तू नहीं समझेगी। अच्छा ये बता अपना पीएम कहीं दिखाई नहीं दे रहा
क्या पीएम भी आने वाले हैं ...रिमी ने अपनी सीट से उछलते हुए कहा।
हे भगवान, मैं प्रिंसिपल की बात कर रही हूं..
तो प्रिंसिपल बोल न पीएम क्यों बोल रही है.. -रिमी ने चिढ़ते हुए कहा।
क्योंकि दोनों हमेशा दौरे पर जो रहते हैं.. -कहते हुए सिल्की ने ज़ोर का ठहाका लगाया।
वो देखो बच्चों म्यूजियम, हम लोग पहुंच गए।
(सभी बच्चे एक एक कर बस से उतरने लगे)
बच्चों.. तुम सब राजनीति के बारे में जानने के लिए इस म्यूजियम में आये हो...? अंदर जाने से पहले मैं यह तो जान लूं कि तुम देश को कितना जानते हो और देश में क्या चल रहा है इसकी तुम्हें कितनी खबर है? अच्छा तो बताओ हमारे देश के 14 वें राष्ट्रपति कौन है..? प्रिंसिपल का सवाल अभी ख़त्म ही हुआ था कि उन्हें तपाक से जवाब भी मिल गया।
सर... देश के नए राष्ट्रपति दलित हैं।
किसने दिया ये जवाब कौन है सामने आओ -प्रिंसिपल ने तमतमाते हुए कहा।
सभी बच्चो ने बंटी की ओर इशारा करते हुए कहा सर इसने दिया जवाब।
कहां है बंटी? अच्छा लेफ्ट में खड़े हो! तभी मैं सोचूं कि ऐसा जवाब कोई बच्चा कैसे दे सकता है ...चलो चुपचाप राईट साइड में खड़े हो जाओ और सभी बच्चे सुन लें, जो भी सवाल पूछेगा राइट साइड में आ कर ही पूछेगा, नहीं तो कल को सब मिलकर म्यूजियम पर ही RTI लगा दोगे।
अब चलो....सब लाईन बना कर एक के पीछे एक बढ़ते चलो। (सभी बच्चे म्यूजियम के अंदर चले गए)
...सर....सर...वो देखिये, शीशे के उस तरफ रखी वो चीज अपने आप घूमती जा रही है..क्या है वो बताइए न सर?
अरे! शान्त-शान्त बंटी बताता हूं।
प्रिंसिपल ने बंटी के सवाल का जवाब देते हुए कहा- ये है 'दौरा' ..जब नेता देश में या देश के बाहर जाते हैं तो उसे दौरा कहते हैं।
सर दौरा करना हमारे देश के पीएम का काम है न.. सारे विदेशी दौरे तो वो ही करते हैं।
तू नहीं सुधरेगा रे बंटी.. -प्रिंसिपल ने आग बबूला होते हुए कहा।
चलो अब दौरा ही करोगे की आगे भी बढ़ोगे
(सब बच्चे आगे बढ़ गए)
ये क्या है जो इतनी खूबसूरत है और सब का मन लुभा रही है, देखना रिमी ऐसा लगता है इसे देखने से ही सारी समस्या का हल हो जाता है.. आखिर ये है क्या? -सिल्की ने खुद ही से सवाल किया।
"ये वो खूबसूरत बला है जिसका सहारा लेकर नेता देश की बड़ी से बड़ी समस्या से छुटकारा पा जाते हैं" ...बच्चों ये है "निंदा".. -प्रिंसिपल ने शीशे के उस तरफ रखी हुई उस खूबसूरत चीज को निहारते हुए कहा।
इससे खूबसूरत राजनीति में कुछ भी नहीं है।
सर...आप झूठ बोलते हैं, अगर इससे खूबसूरत कुछ भी नहीं तो फिर ये क्या है? ये तो इससे भी खूबसूरत है। -बंटी ने तेज़ आवाज़ में कहा।
'अरे मैं झूठ नहीं बोल रहा बेटा ये तो "कड़ी निंदा है" बस दोनों का इस्तेमाल राजनेता घटना की परिस्थितियों के हिसाब से करते हैं'।
सिल्की कहाँ है ...सिल्की....सिल्की- प्रिंसिपल सिल्की को आवाज़ लगाते हुए म्यूजियम में उसे ढूंढ रहे थे।
यहाँ क्या कर रही हो.. -प्रिंसिपल ने सिल्की को डांटते हुए कहा।
सर आप भी देखिये न वह डरा सहमा-सा कैसे अपना रंग बार-बार बदल रहा है.. क्या है वो सर? -सिल्की ने एक टक उस चीज की ओर देखते हुए कहा।
अच्छा इसे देखकर तुम रुक गई थी। यह तो "धर्म" है बेटा। नेता इसके रंग का इस्तेमाल वोट बटोरने के लिये करते हैं, जब जो रंग ज्यादा चमकता है नेता उस ही के सपोर्ट में खड़े हो जाते हैं। अब यहां से आगे चलो ज्यादा समय नहीं बचा.. बाकी म्यूजियम भी तो घूमना है। -इतना कहते हुए प्रिंसिपल और सिल्की आगे बढ़ गए।
घो... ष ...न वी....ऐ देखो! इतनी बड़ी हो गई फिर भी इसे पढ़ना नहीं आता। -सभी बच्चे रिमी के द्वारा शीशे पर लिखे कुछ शब्द न पढ़ पाने को लेकर मज़ाक उड़ा रहे थे।
क्या हुआ....? ये म्यूजियम को सब्जी मंडी क्यों बना रखा है-प्रिंसिपल दूर से ही चिल्लाते हुए बोले।
"चुनावी घोषणा"..ये नहीं पढ़ पा रही थी तुम।
सर पढ़ तो मैने लिया था पर ये मुझे याद ही नहीं हो रहा था।- रिमी ने उदासी भरे स्वर में कहा।
'अरे! जब बड़े -बड़े राजनेता इसे भूल जाते हैं, तो तुम किस खेत की मूली हो' ..ये सिर्फ वोट मांगने के समय मार्केट में आती है। उसके बाद बासी सब्जियों की तरह फाइलों में पड़ी-पड़ी सड़ती रहती हैं।
अब सभी बच्चे ध्यान से सुन लें .. म्यूजियम बन्द होने में अब सिर्फ आधा घंटा बाकी है...इसलिये जल्दी से जल्दी पूरा म्यूजियम घूम लो। -ये कहते हुए प्रिंसिपल आगे बढ़ गए।
सर....सर... सर चलिये अब नहीं देखना और म्यूजियम जल्दी चलिये यहां से।
तुम सब घबराये हुए क्यों हो आखिर हुआ क्या कोई बतायेगा?
सर वहां .....हां सिल्की, घबराओ नहीं बताओ क्या है वहां..
सर उधर कोई फटे-पुराने कपड़ो में रोता, चिल्लाता फांसी के फंदे पर झूल गया।
अच्छा वो! बच्चों डरो मत.. आओ इसे करीब से देखो। ये "मुआवजा" है, जिसे हर बार अपने हक की लड़ाई के लिये न चाहते हुए भी फांसी पर झूलना पड़ता है।
( चलो अब निकलने का समय हो गया- प्रिंसिपल ने एक दबी आवाज में कहा)