धर्म का जैकेट

धर्म का जैकेट

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"ऐ रामसेवक ! कहाँ जा रहे हो ? ये क्या गले में गमछा, बदन पर कुर्ता, पैरों में कोल्हापुरी चप्पल। क्यों भैया आज ये कार्यकर्ता का गेटअप काहे धारण कर रखा है ?"

नीम के पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठे हुए काका ने रामसेवक पर सवालों का सर्जिकल स्ट्राइक करता हुए कहा।

यूँ पीछे से टोके जाने पर रामसेवक को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वो अपने गुस्से का संस्कार रूपी घोल बनाकर पी गया। "कितनी बार कहा है, काका यूँ मुझे पीछे से जाते हुए मत टोका करो।" - रामसेवक ने झल्लाते हुए कहा। "बताओ बचपन में तुम्हारे सारे सवालों की उल्टियों को, मैं अपने जवाबों के पोंछे से साफ किया करता था और आज जब जवाब देने लायक हुए तो मुँह फेर के जा रहे हो।" - काका ने नर्म आवाज में कहा।

"अरे काका, ऐसी बात नहीं है।" - रामसेवक सांत्वना का बटर लगाते हुए बोला।

"तो फिर बताओ ये हुलिया काहे धारण किया है ?" - काका फिर से रामसेवक पर सवालों की बन्दूक तानते हुए बोले।

"अरे काका आज से हमने नई पार्टी ज्वॉइन कर ली है। और आज हम पहली बार प्रदर्शन करने जा रहे हैं।" - रामसेवक ने अपने चेहरे को एलईडी बल्ब की तरह चमकाते हुए कहा।

"क्या पार्टी ? कौन-सी पार्टी ? कैसी पार्टी ? कम से कम मुझसे पूछ तो लेता। क्या स्कोप है तेरी पार्टी का ? कहीं भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी और महिला सश्क्तिकरण जैसे बेकार और फिजूल के मुद्दों पर बात करने वाली पार्टी तो नहीं ज्वॉइन कर ली। ये सब छोड़, तू मुझे पहले ये बता तेरी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष कितना पढ़ा लिखा है? बता दे रहा हूँ। अगर कोई आईआईटी से पास किया हुआ हो तो तुरन्त छोड़ देना। पहले तो ये अपने से एवरेज बच्चे की आईआईटी सीट खराब करते हैं। फिर घूस देकर देश में भ्रष्टाचार की परम्परा चलाकर पास होने वाले बच्चों की नेता वाली सीट भी खा जाते हैं। देश की सारी कुर्सियों पर बैठकर कहते हैं -'इट्स नॉट माय कप ऑफ टी !' "– काका ने बुलेट ट्रेन से भी तेज ऱफ्तार से अपनी बात खत्म करते हुए कहा।

"काका चले गए न हमारी शक्ल पर, जितने दिखते हैं हम उतने है नहीं। प्रोपर रिसर्च किया है हमने। मुद्दों की बात कर रहे हैं आप। अरे ये बेरोजगारी और भुखमरी जैसे बेकार के मुद्दे जो आपने गिनाए हैं ना, इनकी तरफ तो हमारे देश की मीडिया कैमरा नहीं घुमाती। हमारी पार्टी का तो सोचना भी बहुत दूर की बात है। हमारी पार्टी के मुद्दे पता है क्या हैं। फिल्मों के नाम, धर्मिक भावना, राष्ट्रवाद, अति राष्ट्रवाद, इतिहास में बदलाव, नामकरण, रंग, मूर्तियों का निर्माण, चार पैर वाला जानवर और भविष्य का भारत।"

"और ये पढ़ाई लिखाई की क्या बात कर रहे हैं। राट्रीय अध्यक्ष हो, नेता हो, या कार्यकर्ता, जैसे ही पार्टी कर्यालय में दाखिल होता है, अपना दिमाग और अपनी डिग्री कार्यलय में ठुकी विचार धारा की खूंटी पर टांग देता है। और वैसे भी राजनीति में ये पढ़े लिखे वेल एजुकेटेड लोग थोड़ी न आएँगे। नहीं तो फेसबुक और ट्विटर पर हैशटैग की शहनाई कौन बजाएगा।"

"अच्छा अब मुझे ये बताओ तुम प्रदर्शन करने कहाँ जा रहे हो ?" -काका ने चिंता की लकीरों का सहारा लेते हुए पूछा।

"अरे ! कार्यालय से फोन आया था। कहीं धर्मिक भावनाएँ चक्कर खा कर गिर पड़ी हैं। उसे ही उठाना है और नारे लगाना है।" -रामसेवक ने खुद पर गर्व करते हुए जवाब दिया।

काका -"तैयार हो ?"

रामसेवक - "जी बिल्कुल तैयार हैं।"

"इस बार हम तुम्हारी शक्ल पर सही गए हैं मुन्ना। तुम हो बिल्कुल मूर्ख।" ज्ञान और अनुभव का अधिक भण्डार होने वाली मुस्कान हँसते हुए काका ने कहा।

"अरे धर्म के मामले में प्रदर्शन करने जा रहे हो। क्या पता कौन से धर्म की भावना अधिक आहत हो जाए। ये गमछा और कुर्ते से खुद को बचा पाओगे ? ये लो, इसे पहनकर जाओ।"

"अरे वाह ! काका बहुत ही सुन्दर जैकेट है। इसका रंग तो दीवाली के दिये और मोहर्रम के ताजिए की तरह चमक रहा है। लेकिन ये दो रंग में क्यों है ?"

रामसेवक के सवाल पूछने पर काका बिल्कुल हैरान थे। क्योंकि पहली बार किसी विचारधारा से भरे हुए दिमाग ने सवाल किया था।

"बच्चू ! ये दो रंग ही तो तेरी रक्षा करेंगे। जिस रंग की धार्मिक भावना अधिक आहत होगी। उस तरफ से जैकेट पहन लेना।

क्या ऐसा करने से मुझे सचमुच कोई नुकसान नहीं होगा ?" -रामसेवक ने आंखे बड़ी करते हुए कहा।

"अरे ! इन धर्मों के रंग को दिखाकर हरसाल बकरे की माँ से उसका बच्चा कुर्बानी में माँग लिया जाता है। जिसे दिखाकर औरतों को ऊपर से नीचे तक काले कपड़े से ढक दिया जाता है। और तो और जिस रंग को भगवान का रंग बताकर करोड़ों वोट माँग लिए जाते हैं। उन धर्मों के रंग पर शक कर रहा है।" -काका ने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा।

"अरे काका गलती हो गई।" रामसेवक बचा हुआ दिमाग काका के चरणों में अर्पित करते हुए बोला।

"ऐ काका ! एक बात सुनो। इतनी बढ़िया बात बोलते हो, राजनीति में क्यों नहीं आते ?"

"हम नहीं आ पाएँगे।" काका ने मुरझाए हुए फूल जैसा मुँह बनाते हुए कहा।

"क्यों ?"

"क्योंकि हम 'मन की बात' नहीं कह पाते।"


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