सहेली को पत्र
सहेली को पत्र
प्रिय सखी ममता,
मैं यहाँ कुशल से हूं और आशा करती हूं तुम भी कुशल से होंगी।
आज डाकिया पत्रिका देकर गया, बहुत खुशी हो रही है, बधाई हो तुम्हे बिटिया के ब्याह की, उससे ज्यादा खुशी उसके नाम के आगे डॉक्टर लिखा हुआ देखकर हो रही है।तुमने जो कहां वो कर के दिखाया।
आज भी याद है मुझे वो दिन जब तुम दुबारा से गर्भवती हुई और, पता चला बिटिया है, कितना भूचाल मचा था तुम्हारे घर में, सभी एक स्वर में इस गर्भ को नष्ट करने की बात कर रहे थे, उस मे एक स्वर तुम्हारे पतिदेव का भी था। पर तुम निर्भयी डटी रही, अपने भविष्य की परवाह करे बगैर।
फिर वही हुआ जिसका डर था।
छह महीने की गर्भवती महिला को, धक्के देकर निकाल दिया गया, जरा भी लाज नहीं आई थी उन्हें, कितना कुछ सहा था तुमने, तुम्हारी बड़ी बेटी को उन्होंने अपने पास ही रख लिया, क्योकि वह उनकी चाही गयी सन्तान थी। तुम्हारे भाई भाभी भी परित्यक्ता को रखने के लिये तैयार नहीं थे। तब तुम मेरे पास आयी थी।
तुम्हारी हालत देखकर मैं भी घबरा गयी थी। मेरे घर में तुम्हे सहारा मिला था। मैं आज बता रही हु, मेरे पति बिल्कुल भी प्रसन्न नहीं थे तुम्हारे आगमन पर, बहुत बहस हुई थी हमारी, उनकी नजर में तुम एक विद्रोहिणी थी, जो परुष समाज से इतर अपने वसूलो पर चल रही थी।और उन्हें डर था तुम मुझे बिगाड़ दोगी। तुम पन्द्रह दिन रही मेरे घर मे, उतने दिन अबोला ही रहा हम पति पत्नी के बीच, इस बीच एक दो बार मेरे मन में भी ख्याल आया की, तुम अपने ससुराल वालों की बात क्यो नहीं मान लेती, क्यो इतनी तकलीफे सह रही हो। पर तुम्हारा दृढ़ निश्चय देखकर कुछ नहीं कहा। उस समय मैंने एक भी बार तुम्हारी आंखों में नमी नहीं देखी, तुम स्वाभिमानी थी और मैं जानती थी तुम ज्यादा समय मेरे घर नहीं रहोगी।
और यही हुआ, पन्द्रहवें दिन ही तुम्हे नौकरी मिल गयी, और तुम चली गयी, दो तीन साल तो तुमसे मिलती रही, फिर तुम्हारा स्थान्तरण हो गया, उसके बाद मैं तुम्हारे सम्पर्क में नहीं रह पायी, गाहे बगाहे तुम्हारी खबर जरूर मिल जाती थी। और आज यह पत्रिका से समाचार मिला।
आज मुझे तुमपर बहुत अभिमान हो रहा है, तुम्हारी मेहनत व लगन से वह बच्ची डॉक्टर बन गयी और उसकी शादी हो रही है।
में ब्याह में अवश्य आऊँगी,
तुम्हारी सखी,
नंदिनी।