Charumati Ramdas

Horror Fantasy

4  

Charumati Ramdas

Horror Fantasy

शैतानियत - 7

शैतानियत - 7

15 mins
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ऑर्गन और बिल्ली लेखक: मिखाइल बुल्गाकव 

अनुवाद: आ। चारुमति रामदास 

 अगले दिन सुबह दस बजे करत्कोव ने जल्दी-जल्दी चाय उबाली, बेमन से

चौथाई गिलास गटकी और, यह महसूस करते हुए कि दिन मुश्किल और दौड़-धूप भरा होने वाला है, वह अपने कमरे से निकला और कोहरे में गीला सीमेंट का आँगन पार किया। विंग के दरवाज़े पर लिखा था: “बिल्डिंग मैनेजर”। करत्कोव का हाथ बटन की और बढ़ा ही था, कि उसकी आंखों ने पढ़ा:“मृत्यु के कारण सर्टिफिकेट्स नहीं दिए जायेंगे।” “आह, खुदा,” करत्कोव चिडचिड़ाहट से बोला, “ये क्या है – हर कदम पर नाकामयाबी।” और आगे बोला, “खैर, तब डॉक्युमेन्ट्स का काम बाद में, और अभी ‘मासा’ में जाऊंगा। पता लगाना होगा, कि बात क्या है। हो सकता है कि चिकूशिन वापस लौट आया हो।पैदल ही, क्योंकि पैसे तो सारे चोरी चले गए थे, करत्कोव ‘मासा’ तक पहुँचा, और लॉबी पार करने के बाद सीधे ऑफिस की ओर बढ़ा। ऑफिस की देहलीज़ पर वह ठिठक गया और उसका मुँह खुल गया। क्रिस्टल हॉल में एक भी जाना-पहचाना चेहरा नहीं था, न द्रोज्द, न ही आन्ना इव्ग्राफव्ना, मतलब – कोई भी नहीं।

मेजों के पीछे, तार पर बैठे कौओं की तो नहीं, मगर अलेक्सेइ मिखाइलविच के तीन बाजों की याद दिला रहे तीन बिल्कुल एक जैसे गोरे नौजवान, सफाचट दाढी और भूरे बालों वाले, हलके भूरे चौखाने वाले सूट में, और एक जवान औरत बैठी थी – स्वप्नदर्शी आँखों वाली, कानों में हीरे की बालियाँ पहने।

नौजवानों ने करत्कोव की ओर कोई ध्यान नहीं दिया और वह अपने लेजर्स में कलम घसीटते रहे, मगर औरत ने करत्कोव को देखकर आंखें नचाईं। जब इसके जवाब में परेशानी से मुस्कुराया, तो उसने धृष्ठता से मुस्कुराकर मुँह फेर लिया। “अजीब है”, करत्कोव ने सोचा और देहलीज़ पर ठोकर खाकर वह ऑफिस से निकल गया। अपने कमरे के दरवाज़े पर वह हिचकिचाया, पुराने बोर्ड “क्लर्क” को देखकर एक आह भरी, दरवाज़ा खोला और अन्दर गया। करत्कोव की आंखों में फ़ौरन रोशनी धुंधली हो गई, और पैरों के नीचे फर्श हल्क़े-हल्के हिलने लगा।

करत्कोव की मेज़ के पीछे, कुहनियाँ फैलाए खुद कल्सोनेर बैठा था। उलझे हुए चमकदार बाल उसके सीने को ढांक रहे थे। करत्कोव की सांस रुक गई, जब उसने हरे कपडे के ऊपर चमचमाते गंजे सिर को देखा।

खामोशी को पहले कल्सोनेर ने तोड़ा।

“आपको क्या चाहिए, कॉम्रेड?” उसने स्वाभाविक स्वर में अदब से पूछा।

करत्कोव ने थरथराते हुए अपने होंठ चाटे, छोटे से सीने में खूब सारी हवा भरी और मुश्किल से सुनाई देने वाली आवाज़ में कहा, “ ख़म् ।।। मैं, कॉम्रेड, यहां का क्लर्क हूं।।।मतलब।।।ऊँ,,,हाँ, अगर आपको ‘ऑर्डर” की याद है तो।।।”

अचरज ने कल्सोनेर के चहरे के ऊपरी भाग को नाटकीय ढंग से बदल दिया। उसकी उजली भौंहें ऊपर चढ़ गईं, और माथा एकोर्डियन में बदल गया।

“माफी चाहता हूँ,” उसने शराफ़त से जवाब दिया, “यहाँ का क्लर्क – मैं हूँ।”

पल भर को करत्कोव मानो गूंगा हो गया, जब यह स्थिति गुज़र गई, तो उसने ये शब्द कहे:

“ऐसा कैसे? कल तो, मतलब।।।आह, हाँ, हाँ। माफ़ कीजिये, प्लीज़। मैं ज़रा गड़बड़ा गया हूँ।। प्लीज़।”

वह पीछे हटकर कमरे से निकल गया और कॉरीडोर में अपने आप से भर्राई आवाज में बोला, “करत्कोव, संभल जा, आज कौन सी तारीख है?”

और उसने खुद ही अपने आप को जवाब दिया, “ मंगलवार, मतलब शुक्रवार। एक हज़ार नौ सौ।”

वह मुड़ा, और फ़ौरन उसी समय उसके सामने हाथी दांत के मानवी गोल पर कॉरीडोर के दो लैम्प चमक उठे, और कल्सोनेर के सफाचट चहरे ने पूरी दुनिया को ढांक दिया।

“ठीक है!” तसला खडखड़ाया, और करत्कोव कांपने लगा, “मैं आपका इंतज़ार कर रहा हूँ। बढ़िया। आपसे मिलकर खुशी हुई।”

ऐसा कहते हुए वह करत्कोव के पास आया और उसका हाथ इस तरह दबाया, कि वह एक पैर पर खडा हो गया, मानो छत पर कोई सारस खडा हो।

“मैंने स्टाफ की नियुक्ति कर दी है,” – कल्सोनेर ने जल्दी-जल्दी, रुक-रुककर और जोर देकर कहा, “ वहाँ तीन लोग हैं,” उसने ऑफिस के दरवाज़े की ओर इशारा करते हुए कहा, “ और, बेशक, मानेच्का है। आप – मेरे सहायक रहेंगे। कल्सोनेर – क्लर्क। पहले वालों को सबको मैंने भगा दिया। और उस ईडियट पंतेलिमोन को भी। मेरे पास सबूत है कि वह ‘अल्पिस्काया रोज़ा’ में बेयरा था। मैं अभी डिपार्टमेंट जा रहा हूँ, और आप कल्सोनेर के साथ सबके बारे में रिपोर्ट लिखिए और ख़ास तौर से उसके, क्या कहते हैं।।।करत्कोव के बारे में।

वैसे, आपकी शकल कुछ-कुछ उस कमीने से मिलती है। सिर्फ उसकी एक आंख फूटी है।”

“मैं। नहीं,” करत्कोव ने कहा, जबड़ा लटकाए और झूलते हुए कहा, “मैं कमीना नहीं हूँ। मेरे सारे डॉक्यूमेंट्स चोरी हो गए है। सब के सब।”

“सब?” कल्सोनेर चिल्लाया, “बकवास। ये भी अच्छा है।” 

उसने हांफते हुए करत्कोव की बांह को कस कर पकड़ लिया और, कॉरीडोर से भागते हुए उसे घसीटकर अपने प्यारे कमरे में ले जाकर चमड़े की फूली हुई कुर्सी पर फेंक दिया, और खुद मेज़ के पीछे बैठ गया। करत्कोव, अभी भी पैरों के नीचे फर्श के कम्पनों को महसूस करते हुए सिकुड़ गया और, आंखें बंद करके बुदबुदाया: “बीस तारीख को था सोमवार, मतलब, मंगलवार हुआ इक्कीस को। नहीं, मैं भी क्या? सन् इक्कीस। जावक नं। १५, हस्ताक्षर – वर्फलामेय करत्कोव।

इसका मतलब मैं। मंगलवार, बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार, शनिवार, इतवार, सोमवार।   

सोमवार – ‘प’ (रूसी में – पनेदेल्निक) से, और शुक्रवार (प्यात्नित्सा) ‘प’ से, और इतवार।।।(वस्क्रेसेन्ये) ।।।वस्क्रेस।।।’एस’ से, जैसे बुधवार (स्रिदा)।।।

कल्सोनेर ने चरमराते हुए कागज़ पर लिखा, उस पर सील मारी, और करत्कोव की ओर बढ़ा दिया। इसी पल टेलीफोन तैश से बज उठा। कल्सोनेर ने रिसीवर लपका और उसमें गरजा:

“अहा! अच्छा। अच्छा। अभी आता हूँ।”

वह हैंगर की और झुका, उससे टोपी खींची, उससे गंजी खोपड़ी को ढांककर, बिदा लेते हुए दरवाज़े से गायब हो गया:

“कल्सोनेर के कमरे में मेरा इंतज़ार कीजिये।”

करत्कोव की आंखों के सामने हर चीज़ पूरी तरह धुंधली हो गई जब उसने सील लगे कागज़ पर लिखी इबारत पढी: ।

“इस पत्र को प्रस्तुत करने वाला वाकई में मेरा सहायक कॉम्रेड वसीली पाव्लविच कलाब्कोव है, जो बिल्कुल सच है।


कल्सोनेर।”  “ओ-ओ-ओ!” अपनी टोपी और कागज़ फर्श पर गिराते हुए करत्कोव कराहा, “ये सब क्या हो रहा है?”

इसी समय दरवाज़ा कर्कश आवाज़ में गा उठा, और कल्सोनेर अपनी दाढी में वापस लौटा।

“क्या कल्सोनेर भाग गया?” उसने पतली आवाज़ में प्यार से करत्कोव से पूछा।

“आ-आ-आ-आ।।।” इस पीड़ा को बर्दाश्त न कर सकने के कारण करत्कोव चिंघाड़ा और, अपने आप पर काबू न रख पाने के कारण वह दांत दिखाते हुए कल्सोनेर पर उछला। कल्सोनेर के चहरे पर इस कदर भय दिखाई दिया कि वह फ़ौरन पीला हो गया। पीठ से दीवार पर गिरते हुए उसने धड़ाम से दरवाज़ा खोल दिया, संभल न सकने के कारण कॉरीडोर में गिर गया, उकड़ूँ बैठ गया, मगर फौरन सीधा होकर चीखते हुए भागने लगा:

“दरबान! दरबान! मदद करो!”

“रुक जाइए। रुक जाइए। मैं आपसे विनती करता हूँ, कॉम्रेड।।।” होश में आकर करत्कोव चिल्लाया और उसके पीछे भागा।

ऑफिस में कुछ गडगड़ाया, और बाज़ उछल पड़े, जैसे किसी ने आदेश दिया हो। महिला की सपनीली आंखें टाइपराइटर से ऊपर उठीं। 

“गोलियां चलाएंगे। गोलियां चलाएंगे!” उसकी उन्मादभरी चीख गूँजी।

कल्सोनेर पहले लॉबी में ऑर्गन वाले चबूतरे पर उछला, एक पल को हिचकिचाया, किधर भागे, फिर तीर की तरह झपटा, पलक झपकते ही ऑर्गन के पीछे छुप गया।

करत्कोव उसके पीछे लपका, फिसल गया और, शायद, रेलिंग से टकराकर अपना सिर ही फोड़ बैठता, अगर पीली बाजू से बाहर निकलता हुआ एक विशाल, मुडा हुआ हैंडल न होता। उसने करत्कोव के ओवरकोट के पल्ले को पकड़ लिया, सड़ा हुआ ट्वीड हल्की सी चर्र की आवाज़ से फिसल गया, और करत्कोव हौले से ठण्डे फर्श पर बैठ गया। ऑर्गन के पीछे बगल वाला दरवाज़ा कल्सोनेर के पीछे धडाम से बंद हो गया।

“खुदा।।।” करत्कोव ने शुरुआत की और ख़त्म नहीं किया।

धूल भरे ताँबे के पाइपों वाले विशालकाय बक्से से अजीब-सी आवाज़ सुनाई दी, जैसे गिलास फट गया हो, उसके बाद धूल भरी कंठस्थ गुर्राहट, विचित्र क्रोमेटिक चीख और घंटियों की मार। उसके बाद खनखनाती हुई मेजर कॉर्ड, स्फूर्तिदायक झनझनाहट और पूरा तीन मंजिलों वाला बक्सा बजने लगा, भीतर निश्चल पडी हुई आवाजों को बिखेरते हुए:


शोर मचाती, गरजती आग मॉस्को की।।।   

दरवाज़े के काले चौकोर में अचानक पंतेलिमोन का बदरंग चेहरा प्रकट हुआ।

बस, एक ही पल बीता और उसमें भी परिवर्तन हो गया। उसकी आंखें जीत की खुशी से चमकने लगीं, वह लंबा खिंच गया, उसने दाएं हाथ से बाएं हाथ को मारा, जैसे किसी अदृश्य नैपकिन को फेंक दिया हो, अपनी जगह से उठा और एक तरफ से, तिरछे-तिरछे, जैसे नियंत्रित हो, दोनों हाथों को इस तरह से गोल किये, मानो उनमें प्यालों वाली ट्रे हो, सीढ़ी पर लुढ़कने लगा।

धु-आं फ़ैलने लगा नदी पे।  

‘ये मैंने क्या कर दिया?” करत्कोव डर गया।

मशीन, आरंभिक निश्चल लहरों को वापस लौटा कर, हज़ार सिरों वाले, शेर की गरज और घंटियों की आवाज़ से ‘मासा’ के वीरान हॉल्स को भरती हुई सुचारू रूप से चलने लगी।

और क्रेमलिन के द्वारों की दीवारों पर।।।।

चीखों और गरज और घंटियों को चीरते हुए कार का सिग्नल घुस आया, और फ़ौरन प्रमुख द्वार से कल्सोनेर लौट आया, - कल्सोनेर सफाचट दाढी वाला, प्रतिशोधी और खतरनाक। मनहूस नीली चमक में वह आराम से सीढ़ी चढ़ने लगा। करत्कोव के बाल हिलने लगे, और वह उछल कर, बगल के दरवाजे से, ऑर्गन के पीछे वाली गोल सीढ़ी से मलबा बिखरे आंगन, और फिर सड़क पर भागा। वह सड़क पर इस तरह भाग रहा था, मानो उसका पीछा किया जा रहा हो, सुनते हुए कि कैसे उसके पीछे ‘अल्पिस्काया रोज़ा’ की इबारत दबी-दबी आवाज़ में गरज रही है:

खडा था वह भूरे कोट में।।।

नुक्कड़ पर कोचवान, चाबुक घुमाते हुए, वहशियत से मरियल घोड़े को अपनी जगह से हिला रहा था।

“खुदा! खुदा!” करत्कोव जोर-जोर से कराह रहा था, “फिर से वही! ये क्या हो रहा है?”

कल्सोनेर दाढी वाला गाडी के पास फुटपाथ से प्रकट हुआ, उछल कर उसमें बैठ गया और कोचवान की पीठ पर घूंसे मारते हुए, पतली आवाज़ में कहने लगा:

“भगा! भगा, बदमाश!”

घोड़ा अपनी जगह से हिला, पैर पटकने लगा, फिर चाबुक की बेरहम मार खाते हुए चल पडा, रास्ते को गाडी की खडखड़ाहट से भर दिया। बेतहाशा बहते आंसुओं के बीच करत्कोव ने देखा कि कैसे कोचवान के सिर से चमड़े की हैट उड गई, और उसके नीचे से मुड़े-तुडे बैंक नोट्स चारों ओर बिखर गए। लडके सीटियाँ बजाते हुए उनके पीछे भागे। कोचवान ने, मुड़कर, बदहवासी से लगाम खीची, मगर कल्सोनेर चिल्लाते हुए उसकी पीठ पर घूंसे मारने लगा:

“चल! चल! पैसे मैं दे दूँगा।”

कोचवान बदहवासी से चिल्लाया:

“ऐ, पहलवान, क्या मरना है?” और घोड़े को पूरी रफ़्तार से भगाने लगा, और नुक्कड के पीछे सब अदृश्य हो गया।

हिचकियाँ लेते हुए करत्कोव ने भूरे आसमान की तरफ देखा, जो सिर के ऊपर तेज़ी से भाग रहा था, लडखडाया और पीड़ा से चिल्लाया:

“ बहुत हो गया। मैं ऐसे नहीं छोडूंगा! मैं उसे सारी बात साफ-साफ़ बताऊँगा।”

वह उछला और ट्राम की कमान से चिपक गया। कमान ने उसे पाँच मिनट तक झिंझोड़ा और नौ मंजिल वाली हरी इमारत के सामने फेंक दिया। भाग कर लॉबी में पहुँचने पर करत्कोव ने लकड़ी की फेंसिंग में बने एक चौकोर छेद में सिर घुसाया और भारी-भरकम नीली चायदानी से पूछा:

“क्लेम्स ऑफिस कहाँ है, कॉम्रेड?”

 “8-वीं मंजिल, 9-वां कॉरीडोर, क्वार्टर - 41, कमरा - 302” चायदानी ने महिला की आवाज में जवाब दिया।

“8-वीं , 9-वां, 41-वां, तीन सौ।।।तीन सौ,,,कितना है।।।302,” चौड़ी सीढ़ी पर भागते हुए करत्कोव बुदबुदाया। “ 8-वीं, 9-वीं, 6-वीं, स्टॉप, 40 ।।। नहीं, 42।।।नहीं, 302 ,” वह बुदबुदाया, - आह, खुदा, भूल गया।।।हाँ 40-वां, चालीसवां।।।

आठवीं मंजिल पर वह तीन दरवाज़े पार कर गया, चौथे पर काला अंक “40” देखा और दो रंगों वाले, स्तंभों वाले विशाल हॉल में घुसा। उसके कोनों में कागज़ के गोल बंडल पड़े थे और लिखे हुए कागजों के टुकडे पूरे फर्श पर बिखरे हुए थे। दूर टाईपराइटर वाली मेज़ हिल रही थी, और एक सुनहरी औरत, गाल को मुट्ठी पर टिकाए, हौले-हौले कोई गाना गुनगुनाते हुए मेज़ के पीछे बैठी थी।

परेशानी से इधर-उधर देखकर, करत्कोव ने देखा कि कैसे स्तंभों के पीछे स्टेज से भारी कदम रखते हुए सफ़ेद कोट पहने एक भारी-भरकम आदमी की आकृति उतरी। सफ़ेद, लटकती हुई मूंछे उसके संगमरमरी चहरे पर दिखाई दे रही थीं। वह आदमी, असाधारण रूप से नम्र, निर्जीव, जिप्सम जैसी मुस्कान लिए करत्कोव के पास आया, धीरे से उससे हाथ मिलाया, एडियाँ खटकाते हुए बोला:

“यान सबेस्की।”

“ये नहीं हो सकता।।।” हैरान करत्कोव ने जवाब दिया।

आदमी प्यार से मुस्कुराया।

“ज़रा सोचिये, बहुत लोगों को अचरज होता है।” गलत-सलत स्वराघात के साथ उसने बोलना शुरू किया, “मगर आप ऐसा न सोचिये, कॉमरेड, की मेरा उस डाकू से कुछ लेना देना है। ओ, नहीं सिर्फ एक कटु संयोग है, और कुछ नहीं। मैंने अपने नए नाम – सत्स्वोस्की की पुष्टि करने के लिए दरख्वास्त दे दी है – ये काफी ख़ूबसूरत है और उतना खतरनाक भी नहीं है। वैसे, अगर आपको अच्छा नहीं लग रहा है,” आदमी ने अपमानित अंदाज़ में मुँह टेढा किया, “तो मैं पीछे नहीं पडूंगा। हमें हमेशा लोग मिल जायेंगे। हमें ढूंढते हैं।”

“माफ़ कीजिये, आप क्या,” करत्कोव पीड़ा से चिल्लाया, यह महसूस करते हुए कि यहाँ भी कुछ अजीब-सा होने वाला है, जैसा हर जगह हो रहा है। उसने कनखियों से इधर-उधर देखा, डरते हुए कि अचानक कहीं से सफाचट चेहरा और गंजा-अंडे का छिलका प्रकट हो जाएगा, और फिर सपाट लहजे में कहा, “मैं बहुत खुश हूँ, हाँ, बेहद।।।”

संगमरमरी आदमी के चहरे पर ज़रा सी शोख मुस्कराहट दिखाई दी; उसने हौले से करत्कोव का हाथ पकड़कर ये कहते हुए उसे मेज़ की ओर खींचा:

“ मैं भी बहुत खुश हूँ। मगर परेशानी की बात ये है, कल्पना कीजिये: आपको बिठाने के लिए मेरे पास कोई जगह ही नहीं है। हमारे इतने महत्त्व के बावजूद हमें ‘बाड़े’ में रखा जाता है (आदमी ने कागज़ के बंडलों की ओर हाथ घुमाया)। साज़िश।।।म-मगर, हम आगे बढ़ेंगे, फ़िक्र न करें।।।

हुम्।।।आप किस नई चीज़ से हमें खुश करने वाले हैं? – उसने प्यार से करत्कोव से पूछा, जिसका चेहरा विवर्ण हो गया था। “आह, हां, कुसूरवार हूँ हज़ार बार, आपका परिचय करवाने की इजाज़त दीजिये,” उसने बड़ी नजाकत से टाईपराइटर की दिशा में अपना गोरा हाथ हिलाया, - “हैनरीएता पतापव्ना पेर्सिम्फान्स”।

महिला ने फौरन ठन्डे हाथ से करत्कोव से हाथ मिलाया और सुस्ती से उसकी ओर देखा।

“तो,” बड़ी मिठास से मेज़बान ने आगे कहा, “आप हमें किस चीज़ से खुश करने वाले हैं? स्केच? लेख?” सफ़ेद आंखों को गोल-गोल घुमाते हुए उसने आगे कहा,” आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि हमें उनकी कितनी ज़रुरत है।”

“खुदाई माँ।।।ये सब क्या है?” करत्कोव ने अस्पष्टता से सोचा, फिर उसने थरथराकर सांस लेते हुए कहा:

“मेरे साथ।।।अं।।।खौफनाक बात हो गई है। वो।।।मैं समझ नहीं पा रहा हूँ। आप, खुदा के लिए, ये न समझिये कि ये मतिभ्रम है।।।।ख्ह्म।।।हा।।।खा।।।(करत्कोव ने कृत्रिम ढंग से हंसने की कोशिश की, मगर उससे ये हो न पाया।) वह जीता-जागता है। आपको यकीन दिलाता हूँ।।।मगर मैं कुछ भी समझा नहीं पा रहा हूँ, कभी दाढी के साथ, और एक मिनट बाद बगैर दाढी के। मैं बिल्कुल नहीं समझ पा रहा हूँ।।।और आवाज़ भी बदल देता है।।।इसके अलावा मेरे सारे डॉक्यूमेंट्स चोरी हो गए हैं, एक भी नहीं बचा, और बिल्डिंग मैनेजर, बदकिस्मती से, मर गया। ये कल्सोनेर।।।

“मुझे मालूम ही था,” मेज़बान चीखा, “ये वे ही हैं?”

“आह। मेरे खुदा, आह, बेशक,” औरत बोल पडी, “आह, ये खौफनाक कल्सोनेर।”

“आप जानते हैं,” मेज़बान ने परेशानी से उसकी बात काटी, “मैं उसकी वजह से फर्श पर बैठा हूँ। ये, मुलाहिजा फरमाइए। वो, आखिर, जर्नलिज्म में क्या समझता है?।।।।” मेज़बान ने करत्कोव को बटन से पकड़ लिया। “मेहेरबानी करके, बताइये, क्या समझता है?”

दो दिन वह यहाँ था और मुझे बुरी तरह से तंग करता रहा। तो, सोचिये, खुशकिस्मती। मैं फ्योदर वसील्येविच के पास गया, और उसने आखिरकार उसे हटा दिया। मैंने सीधे-सीधे कहा: या तो मैं, या वो। उसे किसी ‘मासा’ या शैतान जाने कहाँ भेजा दिया। वहाँ वो अपनी माचिसों की बदबू छोड़ता रहे! मगर फर्नीचर, फर्नीचर उसने इस नासपीटे ब्यूरो में भेज दिया। पूरा। और, फरमाइए? मैं, मुलाहिजा फरमाइए, किस पर लिखूंगा? आप किस पर लिखेंगे? क्योंकि मुझे ज़रा भी शक नहीं है कि, प्यारे, आप हमारे होंगे (मेज़बान ने करत्कोव को गले लगा लिया)। इतना ख़ूबसूरत, शानदार फर्नीचर, लुई काटर का, इस बदमाश ने, गैरजिम्मेदाराना तरीके से इस बेवकूफ ब्यूरो में धकेल दिया, जिसे कल, हर हाल में कल शैतान की खाला के पास भेजने ही वाले हैं।” 

“कौनसा ब्यूरो?” खोखली आवाज़ में करत्कोव ने पूछा।

“आह, हाँ, ये क्लेम्स या क्या कहते हैं,” मेज़बान ने चिडचिड़ाहट से कहा।

“क्या?” करत्कोव चीखा। “क्या? कहाँ है वो?”

“वहाँ,” मेज़बान ने विस्मय से जवाब दिया और फर्श की और इशारा किया।

करत्कोव ने अंतिम बार वहशी आंखों से सफ़ेद कोट पर नज़र डाली और एक मिनट बाद वह कॉरीडोर में नजर आया। कुछ देर सोचकर, वह नीचे जाने वाली सीढ़ी ढूँढते हुए बाईं ओर लपका। कॉरीडोर के शरारती मोड़ों से होते हुए वह पाँच मिनट तक भागता रहा और पाँच मिनट बाद उसी जगह पर पहुँचा, जहाँ से भागा था। दरवाज़ा नं। 40।

“आह, शैतान!” करत्कोव कराहा, उसने पैर पटके और दाईं ओर भागा और पाँच मिनट बाद फिर से वहीं पहुँच गया। नं।40। धडाम से दरवाज़ा खोलकर करत्कोव हॉल में भागा और उसने यकीन कर लिया की वह खाली हो चुका है। सिर्फ टाईपराइटर अपने सफ़ेद दांत दिखाते हुए मेज़ पर मुस्कुरा रहा था। करत्कोव स्तंभों वाले हॉल की और लपका और वहीं उसने मेज़बान को देखा। वह पोडियम पर खडा था, बगैर किसी मुस्कराहट के, अपमानित चेहरा लिए।

“माफ़ कीजिये, कि मैंने आपसे बिदा नहीं ली।।।” करत्कोव ने शुरुआत की ही थी, कि एकदम चुप हो गया।

मेज़बान बगैर कान और नाक के खडा था, और उसका बायाँ हाथ टूट गया था। पीछे हटते हुए और ठंडा पड़ते हुए, करत्कोव फिर से कॉरीडोर में भागा। अचानक सामने ही एक अदृश्य, खुफ़िया दरवाज़ा खुल गया, और उसमें से कांवड़ पर खाली बाल्टियां लटकाए झुर्रियों वाली कत्थई रंग की औरत निकली, “तू मत भाग, प्यारे, वैसे भी, ढूंढ नहीं पायेगा। आखिर कोई तुक है – दस मंजिलें।”

“ऊ-ऊ।।।बे-बेवकूफ,” दांत भींच कर करत्कोव गुर्राया, और दरवाज़े में भागा।

वह उसके पीछे धडाम से बंद हो गया, और करत्कोव ने खुद को एक कुंद, अंधियारी जगह में पाया, जहाँ से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। दीवारों को धक्का देते हुए, और खुरचते हुए, मानो उसे किसी खदान में फेंक दिया गया हो, वह आखिरकार एक सफ़ेद धब्बे पर गिरा, और उसने उसे किसी सीढी पर छोड़ दिया। खडखड करते हुए वह नीचे की ओर भागा। उसे नीचे से आते हुए कदमों की आहट सुनाई दी। एक उदास व्याकुलता करत्कोव के दिल को दबोच रही थी और वह बार-बार रुकने लगा। एक पल और, - और चमकीली कैप दिखाई दी, भूरे कंबल और लम्बी दाढी की झलक दिखाई दी। करत्कोव लड़खड़ाया और उसने हाथों से मुंडेर पकड़ ली। एक साथ ही नज़रें मिलीं और दोनों भय और दर्द की पतली आवाजों में चीखे। करत्कोव पीछे-पीछे ऊपर की ओर हटने लगा, कल्सोनेर खतरनाक डर से नीचे जाने लगा।

“रुकिए,” करत्कोव भर्राया, “एक मिनट।।।आप सिर्फ इतना बताइये।।।”

“बचाओ!” कल्सोनेर पतली आवाज़ को अपनी पहले वाली ताँबे की नीची आवाज़ में बदलते हुए गरजा। ठोकर खाकर वह धम् से सिर के बल नीचे गिरा: यह मार उसके लिये बेकार नहीं गई। फ़ॉस्फ़ोरस जैसी आखों वाली काली बिल्ली में बदलकर वह वापस बाहर उडा, सीधे और मखमली ढंग से चौक को पार किया, गोल-गोल होकर गोला बन गया और खिडकी से कूदकर टूटे हुए कांच और मकडी के जाले में ग़ायब हो गया। करत्कोव के दिमाग़ को पल भर के लिये मानो किसी सफ़ेद चादर ने लपेट लिया, मगर वह फ़ौरन नीचे गिर गई, और असाधारण स्पष्टता का अनुभव हुआ।

“अब सब कुछ समझ में आ गया,” करत्कोव फुसफुसाया और हौले से मुस्कुराया, “आहा, समझ गया, बात क्या है। बिल्लियाँ! सब समझ में आ गया। बिल्लियाँ।”

वह ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा, जब तक कि पूरी सीढी ज़ोरदार ठहाकों से न भर गई।


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