Bhawna Kukreti

Drama

5.0  

Bhawna Kukreti

Drama

शायद-3

शायद-3

6 mins
527


शाम 4 बजे तन्वी के केबिन में खटर-पटर सुनकर मयंक ने उसके केबिन में झांका। देखा तन्वी कैनवस पर बहुत तेजी से रंग इधर-उधर रखे जा रही थी। शायद कोई नया थॉट हो मगर जब उसने भूरे-सलेटी रंग से सब रंगों को धुल दिया वो सीधा प्रियम सर के केबिन में पहुंच गया। कुछ ही मिनट में प्रियम और मयंक, तन्वी के केबिन में थे। प्रियम ने देखा तन्वी हाथ में कूची लिये बालकनी में दोनो हाथ से रेलिंग को पकड़े नीचे देख रही है। एक नजर उन्होने उस कैनवस पर दौडाई और मयंक को तुरंत अपने केबिन से नीला बॉक्स ले आने को कहा और सीधा तन्वी की ओर बढ़ गए। तन्वी बालकनी के दूसरी ओर काफी झुक गई थी उसके पैर फ्लोर से उखड़ गये थे। वो नीचे गिर ही जाती अगर प्रियम उसे पीछे से खींच नही लेते। तन्वी बड़ी देर तक प्रियम सर के काँधे पर सर रख कर सुन्न सी खड़ी रही। प्रियम सर ने भी उसे हौले से थामें रखा। उसका सर और पीठ सहलाते वो बोल रहे थे "काम डाऊन, काम डाऊन, टेक डीप ब्रेथ बच्चा" मयंक नीला बॉक्स लेकर चला आया था। प्रियम ने इशारे से उसे खोलने को कहा। उसमें कुछ दवाईयां थीं। मयंक उन्हे एक एक कर दिखा रहा था। एक कैप्सूल स्ट्रिप पर उसे रोका। प्रियम शाह की शर्ट काँधे से पूरी भीग चुकी थी।


तन्वी को दवा दे कर प्रियम और मयंक उसे उसके घर ले आये। घर खुला पड़ा था। घर का हाल देख कर प्रियम और मयंक चौंक गये। फर्श पर रंग बेतरतीब कुचले बिखरे थे। ब्रश भी इधर उधर पड़े थे। एक अधूरा स्केच नीचे फटा हुआ पड़ा था। तन्वी के प्रोजेक्ट रोल सब, कुल मिला कर हाल बयां हो रहा था की क्या हुआ होगा।

तन्वी आधी बेहोशी में थी। दवा का असर हो रहा था। प्रियम ने मयंक को सब समेटने को कहा और तन्वी को उसके रुम में बेड पर लिटा दिया। उसका तकिया सही करते हुए उन्होने साईड टेबल पर कुछ फैमिली फोटोज़ देखीं ,एक ग्रुप फोटो भी थी जिसमें रुचिर मुसकराते हुए दिख रहा था। तन्वी को ठीक से बिस्तर पर लिटा कर प्रियम ने ग्रुप फोटो वाला फ्रेम उठाया और गौर से देखा। ये शायद किसी गैदरिंग की फोटो थी। रुचिर लड़के लड़कियों के कान्धे पर हाथ रख कर मुस्कराते हुए देख रहा था और उस से कुछ दूरी पर तन्वी भी थी, सबसे अलग दिखती हुई, किसी मेज का सहारा लिये खड़ी हुई।प्रियम ने तन्वी को देखा और सर हिलाते हुए फ्रेम को बगल के क्लोज़ेट को थोड़ा खोल अंदर रख दिया।


तन्वी कुछ दिनो के लिये अपने माँ के घर चली गई। प्रियम शाह ने उसकी मां और भाई को तन्वी के अस्वस्थ होने को लेकर सूचना दे दी थी।


इधर काफी प्रोजेक्ट में प्रियम ने तन्वी और मयंक को कोलैब किया था। कलाईँट की ओर से काफी प्रेशर था। मयंक और प्रियम दोनो ऑफ़िस आवर के बाद भी रुक रहे थे। एक दो बड़े कलाईँट ने ऑर्डर्स कैंसल भी कर दिये थे। ये एक बड़ा झटका था। मयंक बहुत परेशान हो गया था।


"अरे तुम? तुम क्यूँ चली आई?" प्रियम शाह ने तन्वी को सुबह-सुबह ऑफ़िस में देखा तो नाराज़ से हुए। मयंक ने तन्वी को फोन कर सब बता दिया था।" तुम्हें कम से कम 3 महीने प्रॉपर रेस्ट के लिये बोला है डॉक्टर ने, जाओ घर जाओ, आराम करो।" "सर अब घर काटने को आता है।" तन्वी ने सर झुकाए हुए कहा। "मैं बिज़ी रहूँगी तो जल्दी सब..." कह कर वो चुप हो गई। प्रियम ने कुछ पल सोचा और फिर उसको कहा "ओके, मेहता ऐण्ड संस को कॉल लगाओ बोलो 10 दिन में अपना पैकेज ले जाये। और इसके बाद हम सब छुट्टियां एन्जॉय कार्नर एक रेसोर्ट पर चल रहे हैं। कोई ना नुकुर नहीं ओके?" " जी सर मज़ा आ जायेगा।" मयंक भी वहीं आ गया था वो चहक कर बोला।


तन्वी अपने रुम में बैग पैक कर रही थी।



*शेष अगली किश्त में


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