Bhawna Kukreti

Drama Romance

4.8  

Bhawna Kukreti

Drama Romance

शायद-15

शायद-15

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 मुझे नींद नहीं आ रही थी। आज लौटते ही आंटी जी ने मुझसे तन्वी को कन्विंस करने को कहा था। उन्होंने बताया कि प्रियम की भाभी जी ने उनसे तन्वी का हाथ मांगा है। ये भी की प्रियम ने खुद कहा कि वे तन्वी की माँ से बात करें। इधर प्रियम उसे मयंक की तरफ मोड़ रहे थे।समझ नहीं आ रहा था कि आखिर  प्रियम सर की मंशा है क्या!?


मैंने तन्वी के बिस्तर की ओर देखा। वो औंधे मुंह, तकिये को पकड़े, खिड़की के बाहर आसमान को देखे जा रही थी।

चांदनी में उसकी आंखें चमक रही थी।मैने गौर से देखा वो डबडबायी हुईं थी। होंठों पर एक खिंचाव सा था। वो मन में सवालों में उलझी थी शायद।


"क्या सोच रही हो ?" मैं उठ कर उसके बिस्तर पर चली आयी। उसकी डबडबायी आंखें और दर्द संभाल नहीं पाई और बांध टूट गया। मेरी गोद को भिगोते हुए उसने कहा " क्या सबके साथ ऐसा होता है वरुणा? ", मेरे पास जवाब नहीं था। उसका सर सहलाने लगी तो उसने हाथ हटा दिया और उठ कर बैठ गयी।आँसुओं को पोछते हुए एक हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर आ गयी। वो बोली "जानती हो वरुणा, रुचिर अक्सर ऐसे ही सहलाया करता था,जब भी मैं उदास होती थी।" फिर वह बच्चों की तरह फफक कर रो पड़ी।


"इतना आसान नहीं मेरे लिए भुलाना।उसके साथ,उसके बगैर... हर पल उसे ही जिया है मैंने ...हर एक पल।"

वो सिसके जा रही थी।

"पर अब तो तुम सब हकीकत जानती हो न!"

"हां, मगर तुम सब लोग समझते क्यों नहीं...आसान नहीं है मेरे लिए ।"

"तो बताओ क्या चाहती हो यार? आंटी जी प्रियम सर की भाभी को ना कह दें?!"

"मतलब?!"

तन्वी को मैंने पूरी बात बताई। तन्वी मुझे एकटक देखती रही। उसका चेहरा ब्लेंक था। कोई भाव समझ मे ही नहीं आते थे।

" कुछ कहोगी ? "

"वरुणा...अब सो जाते हैं ... बहुत रात हो गयी।"

कह कर वह करवट बदल कर सो गई।लेकिन उसके धीमे धीमे सुबकने की आवाज कानों में पड़ रही थीं।


सुबह हम सब एक पुराने किले पर थे।मयंक हमेशा की तरह तन्वी के साथ चल रहा था। प्रियम सर और मैं ठीक उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। कुछ देर घूमने के बाद हम सब एक झरोखे पर रुके। प्रियम सर ने तन्वी के पास जाकर पूछा


" तन्वी...क्या बात है? आज बहुत अलग लग रही हो, जैसे साथ हो कर भी नहीं हो।" तन्वी ने कोई जवाब नहीं दिया।"मेरी कल की किसी बात से अपसेट हो?",तन्वी ने न में सर हिलाया "मैं मैंने मयंक को लेकर तुमसे... बुरा लगा तो सॉरी।","व्हाट मयंक?! " मयंक ने बड़ी बड़ी आंखे करते हुए कहा ।मैंने उसे चुप रहने का इशारा किया।वो मेरी ओर चला आया।


" अम्म, नहीं... ऐसा तो कुछ नहीं । ये जगह ही कुछ ऐसी है सर।"

" अब भी सर कहोगी??" प्रियम ने अपने सर पर हाथ फेरते हुए दीवारों की ओर देखते हुए कहा ।तन्वी ने दीवारों को छूते हुए कहा

"हैं तो आप मेरे मेंटोर ही न सर!" तन्वी की आवाज में उलझन साफ सुनाई पड़ रही थी । प्रियम सर ने झरोखे के पार दूर बहती नदी की ओर देखते हुए बेहद संजीदा हो कर कहा " तन्वी...मैंने कल भाभी से कहा था कि वे आंटी जी से कहें की मैं तुम्हे पसंद करता हूँ, चाहता हूँ की तुम और मैं साथ जिंदगी बिताएं...।" फिर तन्वी की ओर मुड़ते हुए कहा " तुम्हे अगर ये बात बुरी लगी हो तो उसके लिए सॉरी।"तन्वी दीवारों को छूए जा रही थी।
उसके छूने से दीवार से एक मोटी सी परत उतर कर गिर पड़ी।धूल का गुबार सा फैल गया। तन्वी की सांस में शायद वो धूल चली गयी थी। अनजाने ही तन्वी ,प्रियम सर के बाजू कों पकड कर खांसने लगी।प्रियम ने उसे सहलाया और पानी दिया। हालांकि मैं और मयंक भी उसके करीब ही थे!


प्रियम सर के चेहरे पर थोड़ी परेशानी और सुकून, दोनो एक के बाद एक उभरे । कुछ देर में ही तन्वी नार्मल हो गयी। "थैंक यू प्रियम सर..", तन्वी बोली उसे टोकते हुए प्रियम सर ने थोड़ी नाराजगी लाते हुए कहा "फिर ..ठीक है सर ही सही।" तन्वी ने प्रियम सर के चेहरे की ओर देखा।

दोनो कुछ पल एक दूसरे को देखते रहे । मैं और मयंक महसूस कर रहे थे कि दोनों के बीच बिन कुछ कहे बात हो रही है। हम लोगों ने अनदेखा कर दिया।मयंक बायनाकुलर से झरोखे के पार देखने लगा। मगर मेरा ध्यान प्रियम और तन्वी पर ही था।


मैने आंखों के कोने से देखा,प्रियम में तन्वी के कंधे पर हाथ रखा और उसे एश्योर किया, तन्वी ने बेहद हल्की सी बेबसी भरी मुस्कराहट देते हुए कहा " क्या आप भी नहीं समझ सकते ..मेरी सिट्यूएशन को ", प्रियम ने बहुत धीरे से तन्वी का माथा चूमा "तुम रिलैक्स रहो ..मुझे कोई दिकक्त नहीं..टेक योर टाइम।"

रूधे गले से तन्वी ने बस इतना कहा "थैंक यू........।"


उसके बाद प्रियम और तन्वी वहीं बैठ गए।दोनो झरोखे के उस पार काफी देर तक देखते हुए बाते करते रहे । बीच बीच मे तन्वी खिलखिलाते आँसू पोछ रही थी और प्रियम सर उसे देख कर मुस्करा रहे थे।

मैं और मयंक आगे बढ़ गए। मयंक कुछ पल को खोया सा था लेकिन अगले ही पल वो तन्वी के लिए बहुत खुश था। मैं, मैं बहुत रिलैक्स थी ।
मैंने मयंक से पूछा,

 "मयंक सच बताना तुम तन्वी को बहुत ...", "हहहह " मयंक पहले हँसा फिर बोला

 "हां बहुत ज्यादा..इन सब से कहीं ज्यादा।" 

" ओह..!" 

" अरे नहीं..मेरा कहने का मतलब है कि ... करता हूँ लेकिन तन्वी के लिए में सिर्फ उसका  अच्छा दोस्त हूँ   , और तन्वी ...वो प्रियम सर के साथ ज्यादा खुश रहेगी।" ,

"आर यू श्योर ?" 

 " अबसोलुटली वरुणा जी, प्रियम सर को बहुत करीब से जानता हूँ। वे किसी को अपनी लाइफ में जल्दी एक्सेप्ट नहीं करते, और ऐसे खुल कर तो कतई नहीं कहते। वे तन्वी को लेकर सीरियस हैं, उसे बेहद खुश रखेंगे।"

फिर मयंक ने झटपट भाभी जी को और मैंने आंटी जी को प्रियम और तन्वी की झरोखे पर एक साथ हंसती हुई कई तस्वीरेें भेज दी विद कैप्शन "प्रियम प्रोपोसड तन्वी!"

भाभी जी  औऱ आंटी जी ने तुरंत हमे कॉल किया।

मयंक भाभी जी से बात करते चहक रहा था, लेकिन मैं आंटी जी के नंबर पर रुचिर को सुन कर हैरान थी। "क्या तस्वीर भेजी है वरुणा !!?" रुचिर उधर से बोल रहा था।"तुम !..तुम वहां क्या कर रहे हो?" , "तन्वी कहाँ है उससे बात कराओ।"," अभी पॉसिबल नहीं" ," अच्छा ऐसा क्या? ....मां आज मैं खाना खा कर जाऊंगा" रुचिर बोल रहा था । फिर उसने बहुत गंभीर आवाज में कहा " तन्वी को बोलो उसकी मटरगश्ती हो गयी हो तो तुरंत घर लौटे। " कह कर उसने फोन काट दिया।

मयंक ने मेरी शक्ल देखी तो पूछा "क्या हुआ ? रंग क्यों उड़ गया? मैंने उसे रुचिर के तन्वी के घर होने की बात बताई। मयंक बोला "अब वो तन्वी के घर क्या कर रहा है?"," पता नही, बहुत अजीब सा सुनाई पड़ रहा था।हमे जल्दी वापस चलना चाहिए।" मैंने कहा। मेरी संजीदा आवाज को सुन वो प्रियम और तन्वी को बुलाने चला गया।

कार में तन्वी के घर की ओर बढ़ते हुए प्रियम रिलैक्स थे। मगर हम तीनों बहुत तनाव में थे।हमने प्रियम सर को कुछ नहीं बताया था लेकिन तन्वी को मैंने धीमे से रुचिर के उसके घर होने की बात बता दी थी। तन्वी ने मेरा हाथ कस के पकड़ा हुआ था । मयंक ड्राइव करते हुए इधर उधर की बात करता हुआ ,बार बार मिरर में हम दोनों को देख रहा था। तन्वी ने धीमे से मेरे कान के पास कहा "मुझे बहुत घबराहट हो रही है।" ,"मैं हूँ न!", मैने कहा।हमारी फुसफुसाहट को सुन कर "कोई परेशानी है क्या?" प्रियम सर ने पूछा। कार में सन्नाटा छा गया।

तन्वी का घर आ गया। तन्वी के घर के सामने रुचिर की कार देख कर प्रियम सर ने मेरी ओर देखा और फिर तन्वी को। वे तन्वी के पास आये और उसका हाथ पकड़ कर आगे आगे चलने लगे ।मयंक और मैंने एक दूसरे को देखा और पीछे पीछे चल पड़े।

तन्वी के घर का दरवाजा खुला हुआ था, हमे आता देख आंटी जी तुरंत दरवाजे पर चली आयी। उनके चेहरे पर परेशानी थी। प्रियम सर ने उनके कांधे पर हाथ रखा और कहा " माँ जी चिंता नही, आप तन्वी को अंदर ले जाइए ।"

"हेलो रुचिर " प्रियम सर ने सोफे की ओर बढ़ते हुए रुचिर को कहा।

रुचिर सोफे पर पैर फैला कर टी वी पर चैनल बदल रहा था।उसने गर्दन घूमा कर देखा। तन्वी को अपने कमरे में जाते देख उठ गया और उसकी ओर बढ़ते हुए बोला "हेलो मैडम..हो गया टाइमपास!! "

"एक मिनट रुचिर.." मयंक उसकी राह में आ गया। मयंक को बीच मे पड़ता देख रुचिर का गुस्सा बढ़ गया। मयंक रुचिर से कद में थोड़ा बड़ा था। वह ठिठक गया। "कमाल है तन्वी ,समझ नही आता कि कौन क्या है तुम्हारा.." रुचिर ने ऊंची आवाज में तन्वी को सुनाते हुए कहा । प्रियम सर ने टी वी ऑफ करते हुए कहा "रुचिर सिट, आराम से बात करते हैं।" , रुचिर ने तल्खी में कहा " टू हेल विद यू.. तन्वी..तन्वी..बाहर आओ.."रुचिर की आवाज ऊंची हो रही थी। वह तन्वी के रूम को जाना चाह रहा था पर मयंक बार बार उसके रास्ते मे आ रहा था ,"यू स्टेय अवे फ्रॉमदिस मयंक, ये मेरे और तन्वी के बीच की बात है।" रुचिर ने मयंक को रास्ते से हटाते हुए कहा ।मयंक टस से मस नहीं हुआ। लग रहा था कि वो जानबूझ कर उलझना चाह रहा है।रुुचिर अब और भी गुस्से में आने लगा था , चीखा "तन्वी बाहर आती हो या.." , " क्या कर लेगा .. क्या कर लेगा बता?!" मयंक उसके चेहरे के बहुत नजदीक जाकर बोला ।आंटी जी ने दरवाजा बंद कर लिया था । प्रियम सर सोफे पर बैठे उसे लगातार देख रहे थे। इस बार वे तुरंत उठ खड़े हुए।

"मयंक शांत, रुचिर आप भी शांत ..." , लेकिन रुचिर ने पलटकर प्रियम सर को धक्का दे दिया और तन्वी के कमरे की ओर देखते हुए बोला "मानना पड़ेगा यार तुम्हारे कैलिबर को ..एक साथ दो दो दीवाने ..फाइनली गलत नहीं था मैं ।", " रुचिर ... एनफ।" प्रियम सर की आवाज सख्त थी ।अगले पल बड़ी जोर की आवाज हुई । रुचिर सेंटर टेबल के टुकड़ों के साथ जमीन पर था। । रुचिर के मुंह से हल्का सा खून निकल आया था। वह उसे पोछते हुए तेजी से उठा । मयंक ने उसे पकड़ लिया। "मयंक रुको.. ।" प्रियम ने कहा। मैंने आज शांत और विनम्र प्रियम सर की पर्सनालिटी का ये पार्ट भी देखा, जाने क्यों तन्वी के लिए एक सुकून सा लगा। " गॉड !! ही इज़ द वन ,परफेक्ट मैच फ़ॉर तन्वी।" मेरे मन में खुशी सी भर गई।

बहरहाल जोर की आवाज सुन कर तन्वी और आंटी जी तुरंत कमरे से बाहर आ गईं। मैंने कहा " रुचिर कोई फायदा नही तमाशा करने का। तन्वी ने सब सुना जो भी तुमने मुझसे परसों रात कहा।" , "मैं तुमसे मजाक कर रहा था वरुणा!!! "

"कब कब मजाक करते हो तुम बताओ? अभी! ..अभी क्या है? ये भी मजाक है? सब मजाक है न तुम्हारे लिये ? शुरू से ही मज़ाक था न सब? मैं, मेरी फीलिंग्स, मेरा प्यार सब ..सब तुम्हारे लिए मज़ाक ही तो है..है न..बोलो ..बोलो?" तन्वी ने रुचिर की शर्ट पकड़ कर कहा।

रुचिर उसे आवाक देखे जा रहा था। "जाओ, प्लीज अब चले जाओ।" तन्वी खुद को और सम्भाल नही पाई और वहीं घुटनो पर बैठ कर रो पड़ी। मयंक और मैं तन्वी के पास आ गए। रुचिर उसी के पास बैठ गया और बोला " मैं नशे में था यार, वरुणा से मज़ाक कर रहा था यार... तुम्हे लेकर मेरी इंसेक्युरिटीज़ हैं तुम जानती हो ... समझती क्यों नहीं।" प्रियम सर तन्वी के पास आ रहे थे लेकिन रुचिर की बात सुन कर वे वहीं रुक गए।

तन्वी ने आंसू पोछे और कहा "मैं तुम्हारे साथ ताउम्र अब ऐसे जलील होते, टूटते नही जी सकती, प्लीज़ गो।" और वह खड़े होकर मेन दरवाजे के पास चली आयी। रुचिर ने एक बारगी प्रियम सर को देखा और अपनी कार की चाबी उठा कर बोला " सॉरी फ़ॉर अग्रेशन" उसने प्रियम की ओर हाथ बढ़ाया। प्रियम ने हैंड शेक किया । उसने मयंक को देखा और मुस्कराया फिर तन्वी से बोला "गुड लक तन्वी, होप तुम ..अब ...खुश रहोगी।"

मुझे भी अब रुचिर पर गुस्सा आने लगा था। " बस करो रुचिर तुम .." , रुचिर ने तन्वी के सर पर हाथ रखा और तेजी से नीचे सीढ़ियां उतर गया।

"वरुणाsss" रुचिर ने नीचे से मुझे आवाज दी। मैं नीचे गयी ,उसने मुझे अपना"आर टी " पेन्डेन्ट वाला सिल्वर लोकेट दिया और चला गया। मैं उसे लेकर आई देखा वहां सोफे पर तन्वी का रो रो कर बुरा हाल था।प्रियम उसे संभाले हुए थे। मयंक उन दोनों के सामने अपनी कमर पर हाथ रखे बेहद संजीदा सा , चुपचाप देखे जा रहा था। उसके चेहरे पर तन्वी के लिए दर्द साफ दिख रहा था ।आंटी जी पानी का गिलास लिए आ रहीं थी।

मयंक ने मुझे देखा ,मैंने उसे दूर सेअपने हाथ मे लॉकेट दिखाया।उसने आकर देखा और देखते ही बोला "माइंड गेम बहुत खेलता है @#$&*... कोई जरूरत नही इसे तन्वी को देने की।" और उस लॉकेट को उसने अपनी जेब मे रख लिया। फिर वह अपने अंदाज में बोला

"अरे तन्वी डार्लिंग, बहुत भूख लगी है यार, कुछ इस बेचारे का भी खयाल कर लो , अभी वरुणा जी को एयरपोर्ट ड्राप भी करना है।" तन्वी ने फटाफट अपने आंसू पोछे और हड़बड़ा कर बोली।" ओह! सॉरी सॉरी, बस 15 मिनट।" प्रियम सर उसे ऐसे करता देख मुस्करा उठे। प्रियम को मुस्कराता देख तन्वी झेंप गयी। प्रियम ने उसे धीरे से कहा

" चलें ?" ,
" कहाँ ?" तन्वी ने पूछा ।
" फिलहाल तो तुम्हारे साथ किचन तक..।" प्रियम सर ने उसके गालों पर रुके आंसू को पोछते हुए कहा और मुस्करा दिए। तन्वी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आयी। फिर तन्वी और प्रियम सर किचेन में चले गए।

इधर मयंक ने सेंटर टेबल का मलबा हटाया और पैकिंग में मेरी हेल्प में लग गया । अचानक गुस्से में बोला "वरुणा जी जरा इसे देखिये..!!" मयंक ने कार्नर टेबल पर रखा एक फोल्डर दिखाया। रुचिर का फोल्डर था। जिसे वह शायद भूल गया था। मैंने खोला तो देखा बिज़नेस प्रपोजल था रुचिर और वैष्णवी इनटरप्राइसेस के बीच, " पेंटिंग्स" को लेकर !! ओह "तो इसलिए आज सुर बदला हुआ था उसका।" मैंने मयंक से कहा। मयंक ने उसे भी अपने बैकपैक में रख लिया। देखा आंटी जी डायनिंग टेबल पर मुस्कराते हुए पानी के ग्लास रख रहीं थीं और किचेन से तन्वी-प्रियम आवाजें आ रही थीं।

"तुम रहने दो।"
"मुझे करना आता है प्रियम सर"
"तुम हाथ जला लोगी, लाओ मैं करता हूँ"
"रहने दीजिए ।"
"अब दो भी..!"













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