शान्ति से डर
शान्ति से डर
रेगिस्तान के सुनसान मुहासे पर आये मेरे घर से कुछ ही दूर टीले के उस पार बरसों पुराना एक पेड़ है जो बहुत से पक्षियों और पशुओं का ठिकाना है। हर रोज अल - सुबह अनगिनत चिड़ियों और अन्य पक्षियों की कोलाहल हमें जगाती रही है।
दो दिन पहले जब से एक लकड़हारे को काँधे पर कुल्हाड़ी लिए यहां से उस ओर जाते देखा है, तब से तमाम कोलाहल एक दम शांत है। मै ऐसी शान्ति की कल्पना से डर गया हूँ।
