सह ना जात दुःख साधौ !
सह ना जात दुःख साधौ !
"अपनी कला और साधना का जो रूप आज मैं पा सकी हूँ उसका आदर्श मैंने इसी धरती और इसी यूनिवर्सिटी के गुरुओं से पाया है। नृत्य के वे सम्राट थे लेकिन उन्होंने हमेशा अपने को एक फकीर ही समझा। उनका वह गान और नृत्य भाव मेरे सम्मुख आज भी आ खड़ा हुआ है ...सह ना जात दुःख ब्रज के , साधौ...... ! ...मेरा..सारा शरीर रोमांचित हो उठता है ..!" विश्व प्रसिद्ध नर्तकी कुमकुम का इतना बोलना था कि सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। अगली सुबह पटना के समाचार पत्रों में सचित्र प्रकाशित उनका यह वक्तव्य और उनकी नृत्य कला की तारीफ़ हर जगह चर्चा का विषय बनी हुई थी।
उस महफ़िल में शामिल शहर के जाने माने विद्वान डाक्टर के.के.दवे की उन दिनों कुमकुम अतिथि बनी हुई थीं। उनसे उनकी बरसों पुरानी जान पहचान ही नहीं अत्यंत निकटता भी थी। सन अस्सी के दशक में तो लोगों में इनकी निकटता इनके सम्बन्धों को लेकर ढेर सारी कहानियों को जन्म दिया करती थीं। वह समय ' लिव इन ' रिलेशनशिप जैसे सम्बन्धों का नहीं था लेकिन यह चलन में तो था ही। समाज ने उन दिनों इस पर अपनी मुहर नहीं लगाईं थी ....बल्कि इसे तो स्वीकार भी नहीं किया जाता था। डाक्टर दवे बाटनी में प्रोफेसर थे और उन्होंने शादी नहीं की थी। उनके व्यक्तित्व में गज़ब का सम्मोहन था और कोई भी उनके प्रति जल्दी ही आकर्षित हो जाता था। खासतौर पर महिलायें। वे मूलतः बिहारी नहीं थे लेकिन उनकी भोजपुरी इतनी फ्लूएंसी पा चुकी थी कि कोई उन्हें गैर बिहारी नहीं मानता था। उनकी सारी पढ़ाई लिखाई दिल्ली में हुई थी और वे प्रवक्ता के रूप में इस यूनिवर्सिटी में आये थे। प्राय: वे रिजर्व रहा करते थे लेकिन समारोहों में जब वे शराब के प्रभाव में आते तो दूसरों को बोलने नहीं दिया करते थे। कुमकुम उन दिनों उसी विश्वविद्यालय के संगीत और नृत्य विभाग की प्रतिभाशाली छात्रा के रूप में आई थीं जब प्रोफेसर दवे का पूरे शहर में दबदबा था। किसी फंक्शन में इन दोनों की एक बार कुछ घंटों की मुलाक़ात क्या हुई ..कि जाने क्या केमिकल प्रभाव उत्पन्न हुआ कि वे दोनों "मेड फार ईच अदर " हो चले ! कुमकुम की पर्सनालिटी में अब चमक बदने लगी थी और अपनी डिग्री पूरी करते करते उन दोनों की निकटता गहन हो चली।
लोगों का तो यहाँ तक कहना था कि दवे और कुमकुम से एक सन्तान ने भी जन्म लिया था और उसे लेकर कुमकुम अपनी नई नौकरी पर चली गई थीं। पांडिचेरी जैसी दूर जगह जाकर भी कुमकुम के इन सम्बन्धों की गर्माहट बनी रही। जब तब दोनों मिलते जुलते रहे। हाँ, दोनों की एक साम्यता बनी रही अर्थात दोनों अभी तक तथाकथित तौर पर चिर कुंआरे बने रहे।
इस बीच पटना अपनी राजनीतिक उठापटक का गवाह बनता रहा। बिहार विधान सभा में परम्पराएं बनती बिगड़ती रहीं। बिहार को विभाजन का भी दिन देखना पड़ा । अब उसके आधे हिस्से का नाम झारखंड पड़ गया था। किसी भी एक पार्टी की दादागिरी अब जनता सहने को तैयार नहीं थी। लेकिन इन सब के बावजूद कुमकुम ने पांडिचेरी जाकर अपनी नौकरी के साथ साथ अपना नृत्य और संगीत का अभ्यास जारी रखा और आज वह पदमश्री जैसे पुरस्कार पाकर भी पटना वालों के लिए वही पुरानी वाली कुमकुम ही बनीं रहीं। पटना या उसके आसपास के किसी भी फंक्शन में वे एक बुलावे पर चली आती थीं ,उसके लिए अपनी फीस में भी कन्शेसन करने की तैयार रहती थीं क्योंकि उसी बहाने अपने पुराने संगी साथियों से उनकी मुलाक़ात भी हो जाया करती थी। उनकी लम्बाई , उनके दोहरे बदन , गोरे रंग ने उनको और भी सुन्दरता दे दी थी और इससे भी बड़ी बात यह कि जब वह नृत्य करने मंच पर उतरतीं थीं तो वे मानो साक्षात इन्द्रसभा में उनका नृत्य हो रहा होता था ! घुंघरुओं की झंकार ,कत्थक के बोल ,उनकी भाव भंगिमाएं ...सब कुछ एक मायाजाल सा रच दिया करतीं और दर्शक उस मायाजाल के शिकार होकर कई कई दिन तक मदहोश हुआ करते थे।
इस बार उनके साथ एक नौजवान भी आया हुआ था। डील - डौल ,शक्ल- सूरत में एकदम , डाक्टर दवे और कुमकुम की प्रतिकृति। घर के नौकरों को लगा हो ना हो यही नौजवान इन दोनों की लिव इन रिलेशनशिप की देन है। लेकिन..लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी जो कुछ पूछ सके। लेकिन उन्हीं दिनों में घटित अचानक एक नाटकीय घटनाक्रम से यह रहस्य खुल गया। कुमकुम को पटना से मुम्बई जाना था और वापसी का रिजर्वेशन कराने गए पढ़े लिखे ड्राइवर ने रिजर्वेशन स्लिप पढ़कर जान लिया था कि वह नौजवान कोई और नहीं कुमकुम मैडम के साहबजादे थे। धीरे - धीरे यह बात घर की चारदीवारी से निकल कर शहर भर में फ़ैल गई।
असल में जब कुमकुम को अपने ' पेट से ' होने का पता चला और हर बार की तरह इस बार भी उसने अपने लेडी डाक्टर से इस बारे में बताया तो उसकी डाक्टर ने एबार्शन करने से साफ़ मना कर दिया था। बच्चे को जन्म देने के अलावे जब कोई और रास्ता नहीं सूझा तो कुमकुम ने डा.के.के,दवे को पांडिचेरी बुला कर वहीं कोर्ट मैरेज कर लिया था। यह बात बहुत ही सीमित तबके में लीक हो सकी थी। लड़के के पालन पोषण करने से लेकर उसके युवा होने तक की ज़िम्मेदारी अकेले कुमकुम ने बखूबी निभाई और उसने इस बाबत कोई भी गिला शिकवा डा.दवे से कभी भी नहीं की।लड़का अब बड़ा होकर पुणे के फिल्म इन्स्टीट्यूट से एक्टिंग का डिग्रीधारी होकर मुम्बई की फिल्मी दुनिया में अपनी किस्मत आजमाने जा रहा था। इस बार भी उसकी ' एस्कोर्ट ' , उसकी रहनुमा माँ ही बनी थी ..हाँ बायोलाजिकल या यूं कहिये एक्पिसीडेंटल पिता ने उसे अपना भरपूर आशीर्वाद और कैरियर की शुरुआत के लिए अच्छी रक़म अवश्य दे दिया था। नाम ,उस नौजवान का नाम तो आया ही नहीं प्रशांत ..प्रशांत कुमार था उसका नाम।
मुम्बई ...ढेर सारी युवा नज़रों के लिए स्वर्ग सरीखी नगरी। कल-कारखाने, व्यापार के हलचल और भरपूर चमक दमक की ज़िंदगी परोसने वाला शहर ,बैरिस्टर से लेकर गैंगेस्टर तक को पनाह देने वाला दुनिया का जाना माना शहर !..और हाँ, बालीवुड फिल्मों के कारखानों वाला मुम्बई।
वे दोनों मुम्बई पहुँच चुके थे। मिसेज कुमकुम के जानने वालों ने उनको एक गेस्ट हाउस में ठहराया ही नहीं था बल्कि उनके बेटे प्रशांत का एप्वाइंटमेंट भी कुछ टी.वी .और फिल्म प्रोड्यूसरों से उसी शाम फिक्स कर दिया था। मिसेज कुमकुम और प्रशांत दोनों के लिए यह बेहद सुकून की बात थी।
21 दिसंबर की वह शाम प्रशांत के जीवन का एक नया और रोमांचक अध्याय लिखने के लिए बेचैन थी।..... मुम्बई की हर शाम होती ही कुछ ऐसी है ! जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि समुंदर की लहरों में मानो नया उत्साह झलक रहा था ,लेकिन लहरें तो प्रशांत के मन में भी हिलोरें ले रही थीं ..गेस्ट हाउस के उस खूबसूरत कमरे की खिड़की खोलकर वह पूरे समुंदर को अपने अन्दर महसूस कर रहा था। उधर फोन पर मिसेज कुमकुम डा.के.के.को मुम्बई मिशन की कामयाबी का संदेश दे रही थीं। उन्हें भी , उनके कलाकार को भी एक बृहद आकाश मिलने जा रहा था।अब प्रशांत की नज़र बार- बार अपने मंहगे सेलफोन के रिंग टन को सुनने और कमरे की दीवाल घड़ी को देखने में बीत रहा था। कब घड़ी में आठ बजे और वे अपने प्रोडयूसर से मिलने के लिए होटल निकलें !
यह समय जो है ना वह बड़ा ही नाटकीय होता है। कभी- कभी तो एकदम हमक़दम .....और कभी बोल उठता है - "आप कौन ? ".........मतलब समझ गए होंगे ! लेकिन उस दिन मिसेज कुमकुम और प्रशांत के लिए इसी समय ने आज सच्चे हमक़दम होने का सुबूत दिया। इनसे मिलने आये प्रोडयूसर राहुल रवेल मिसेज कुमकुम के नाम और टैलेंट से पहले से ही परिचित थे और जब उन्होंने यह सुना कि प्रशांत उनके पुत्र हैं और ऍफ़.टी.टी.आई.के ग्रेजुएट भी तो बिना सोचे समझे उन्होंने अगले दिन अपने ऑफिस में प्रशांत को बुला कर अपनी एक टेली सीरियल के लिए एग्रीमेंट पर दस्तखत करने का निमन्त्रण दे डाला।
प्रशांत के लिए उस दिन की वह रात जाने क्यों बड़ी लगने लगी थी। मिसेज कुमकुम अब पांडिचेरी की फ्लाईट पर सवार हो चुकी थीं। गेस्ट हाउस की दीवाल घड़ी टिक - टिक की ध्वनि बिना थके, बिना रुके उत्पन्न किये जा रही थी।.....

