कवि हरि शंकर गोयल

Inspirational

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कवि हरि शंकर गोयल

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सेवा भावी डॉक्टर सूरज प्रकाश

सेवा भावी डॉक्टर सूरज प्रकाश

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अविभाजित भारत जब अंग्रेजों का गुलाम था । सन 1919 में जलियांवाला बाग नरसंहार से देश और पंजाब राज्य उबरा नहीं था । तब एक दैदीप्यमान सितारे ने भारत भूमि पर जन्म लिया । 27 जून , 1920 को पंजाब राज्य के गुरदासपुर जिले के छमल गांव में रामशरण आर्य और श्रीमती मेला देवी के घर एक पुत्र रत्न ने जन्म लिया । वह बालक सूरज की तरह रोशनी में नहाया हुआ था इसलिए उसका नाम भी सूरज ही रखा गया। 

पिता रामशरण आर्यसमाजी थे और इंश्योरेंस कंपनी में काम करते थे । सूरज उनका सबसे बड़ा पुत्र था । उनके पश्चात उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां और जन्मे । 


बालक सूरज , सूरज की तरह मेधावी , प्रतिभाशाली , बुद्धिमान और तेजस्वी था इसलिए उनके ज्ञान की चर्चा पूरे घर को आलोकित करने लगी । सूरज के शिक्षकगण बताते रहते थे उनकी मेधा के बारे में । बालक सूरज हर कक्षा में प्रथम आता था । 


मैट्रिक बोर्ड को किसी की बुद्धिमानी का आधार माना जाता है । पंजाब राज्य के मैट्रिक बोर्ड में सूरज ने पूरे बोर्ड में प्रथम स्थान हासिल किया था । अब घरवालों को विश्वास हो गया था कि सूरज कोई साधारण बालक नहीं है , ईश्वरीय वरदान है जो किसी खास मकसद से भगवान ने इस धरती पर भेजा है । 


उनकी प्रतिभा को ध्यान में रखकर उन्हें विज्ञान संकाय में जीव विज्ञान विषय दिलवाया गया । इंटरमीडिएट में उन्होंने पूरे दिल्ली बोर्ड में फिर से प्रथम स्थान हासिल किया । इस अभूतपूर्व सफलता पर दिल्ली सरकार ने उनका प्रवेश सन 1938 में लाहौर के "किंग एडवर्ड मेमोरियल मेडीकल कॉलेज" में MBBS के लिए करवा दिया। उन्हें वजीफा भी दिल्ली सरकार द्वारा दिया गया। 


साथियों , यह वह समय था जब देश में महात्मा गांधी के नेतृत्व में आजादी के लिए आंदोलन चल रहा था । हर युवा की आंखों में देश को आजाद देखने का सपना पलने लगा था । 1943 में उनकी MBBS की पढ़ाई पूरी हुई । इसमें भी उन्होंने फिर से प्रथम स्थान प्राप्त किया था । उनकी इस विशेष योग्यता को ध्यान में रखकर सरकार ने उन्हें सर गंगाराम हॉस्पिटल , लाहौर में "हाउस सर्जन" के पद पर नियुक्ति प्रदान कर दी । बाद में डॉक्टर सूरज प्रकाश "सर बालकराम मेडीकल कॉलेज" में प्रोफेसर बन गए । 


इधर देश में स्वाधीनता संग्राम के साथ साथ "पाकिस्तान" बनाए जाने को लेकर मोहम्मद अली जिन्ना ने एक आंदोलन चला रखा था । जब कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार ने इस मांग पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया तब मोहम्मद अली जिन्ना ने "सांप्रदायिक कार्ड" खेलते हुए 15 अगस्त 1946 को "सीधी कार्यवाही" की चेतावनी दे दी । "सीधी कार्यवाही" का मतलब मुस्लिम बहुल क्षेत्र (पूर्वी बंगाल अब बांग्लादेश और पंजाब प्रांत अब पाकिस्तान) में हिंदुओं का कत्लेआम करना था ।


इस घोषणा के अनुसार 16 अगस्त 1946 को "नोआखाली" में हजारों की संख्या में हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया था । कलकत्ता में ही 6000 से अधिक लोग मारे गए थे और 20000 से अधिक घायल हुए थे । करीब एक लाख से अधिक लोग वहां से पलायन करके दूसरी जगह चले गए थे । यही हाल लाहौर और सिंध में भी था । 


डॉक्टर सूरज प्रकाश उस समय लाहौर में थे । वहां पर भी मार-काट चल रही थी । पेशे से चिकित्सक होने के कारण उन्होंने घायलों का मुफ्त में इलाज किया । कुछ परिचित लोगों को साथ में लेकर विस्थापित परिवारों की मदद पैसे, कपड़े, अनाज वगैरह से की । यहीं से डॉक्टर सूरज प्रकाश का सामाजिक जीवन में प्रवेश हुआ । 


इसके पश्चात 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया और पूर्वी तथा पश्चिमी पाकिस्तान नामक एक देश और नक्शे पर आ गया । धर्म के आधार पर जनता का पलायन हुआ । पाकिस्तान में हिंदुओं पर बहुत अत्याचार किए गए। डॉक्टर साहब ने ऐसे पीड़ित लोगों की सहायता चिकित्सकीय सुविधा के साथ साथ आर्थिक रूप से भी की । लोगों को पुनर्वासित करने में जनता को भी जागरुक करके अपनी सेवा भावना का परिचय दिया । 

उनके इस कार्य से लाहौर के कट्टरपंथी लोग गुस्सा हो गए । इस कारण उन्हें लाहौर छोड़कर जम्मू आना पड़ा । यहां पर भी उन्होंने पीड़ित विस्थापित परिवारों की मदद की । 


वर्ष 1948 में वे दिल्ली आ गये । यहां पर उन्होंने अपने सहपाठी डॉक्टर रोशनलाल बहल के साथ थाना सदर रोड पर एक क्लीनिक खोला जिसमें गरीब लोगों का निःशुल्क उपचार करते रहे । बाद में उन्होंने नई दिल्ली के पहाड़गंज एरिया में अपना क्लीनिक खोला लिया और अपने "सेवा के मिशन" में लग गए । 


वर्ष 1950 में उनका विवाह जम्मू कश्मीर के महालेखाकार रामलाल गुप्ता की सुपुत्री अयोध्या कुमारी से हो गया । अयोध्या कुमारी डबल एम ए थीं । उन्होंने संगीत और नृत्य में स्नातकोत्तर उपाधि ले रखी थीं । वे अत्यंत विदुषी महिला थीं । 

वर्ष 1950 से 1962 तक डॉक्टर सूरज प्रकाश अपने परिवार का पालन करते रहे । अपने पेशे का कार्य करते रहे और यथायोग्य गरीब लोगों की मदद करके समाज सेवा भी करते रहे । 


वर्ष 1962 में भारत को, भारत की पंचशील वाली विदेश नीति को और नेहरू जी को उस समय बहुत धक्का लगा जब चीन ने अचानक भारत पर आक्रमण कर दिया। पूरा भारत और तत्कालीन सरकार इस अचानक हमले से हक्का बक्का रह गई । युद्ध की कोई तैयारी नहीं थी । 


अचानक हुए इस आक्रमण का जवाब देने के लिए बिना ही तैयारी के सेना को हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों पर भेज दिया गया। सैनिकों के पास गर्म कपड़े तक नहीं थे । बहुत सारे सैनिक तो सर्दी में ठिठुरकर ही मर गए थे । 


ऐसे समय में डॉक्टर सूरज प्रकाश ने दिल्ली में एक "सिटीजन्स फोरम" का गठन किया । इस फोरम में अपेक्षाकृत अमीर और प्रबुद्ध लोगों को लिया गया। जनता से धन , गर्म कपड़े और दूसरा सामान लेकर सेना को भिजवाने का कार्य डॉक्टर साहब ने किया । 


वर्ष 1963 का अपना एक अलग ही महत्व है । स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 में हुआ था । तो उनके जन्म के सौ वर्षों पर कुछ ऐसा किया जाए कि स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का और उनकी बताई हुई बातों के अनुसार भारत का पुनर्निर्माण किया जाए । इस दृष्टिकोण से डॉक्टर सूरज प्रकाश ने लाला हंसराज , केदारनाथ साहनी और बसंत राव ओक के साथ "भारत विकास परिषद" की स्थापना दिल्ली में की । यह संस्था सेवा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुई । लाला हंसराज इसके प्रथम अध्यक्ष और डॉक्टर सूरज प्रकाश इसके प्रथम महामंत्री बने ।


डॉक्टर साहब की सोच यह थी कि जिस प्रकार स्वामी विवेकानंद चाहते थे कि युवा शक्ति पर विशेष ध्यान दिया जाए । उनके स्वास्थ्य , उनकी शिक्षा और उनमें देशभक्ति की भावना पैदा करने का काम किया जाना चाहिए । इसी उद्देश्य को सामने रखकर इस संस्था का गठन किया गया । 


धीरे धीरे इस संस्था की इकाइयां दूसरे शहरों , राज्यों में भी डॉक्टर सूरज प्रकाश के अनथक प्रयासों से खोली गई । चूंकि इसका मुख्य उद्देश्य युवा वर्ग था इसलिए इस संस्था में "सामूहिक गायन प्रतियोगिता" आयोजित करने का निर्णय लिया गया। इस प्रतियोगिता के नियम तत्कालीन प्रख्यात संगीतकार अनिल विश्वास जी ने तैयार किए थे । यह प्रतियोगिता संस्कृत में होती थी । वर्ष 1967 से यह प्रतियोगिता आरंभ की गई थी । इस प्रथम प्रतियोगिता में पुरुस्कार वितरण तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर जाकिर हुसैन ने किया था । 


इस संस्था से विभिन्न वर्ग के प्रबुद्ध व्यक्ति जुड़े जिनमें सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, राजनेता , नौकरशाह , चिकित्सक , उद्योगपति , व्यापारी आदि थे । डॉक्टर साहब की सोच थी कि उच्च आय वर्ग के लोगों को यह अहसास करवाया जाये कि गरीब , असहाय , पिछड़े तबके के लिए यथायोग्य मदद करनी चाहिए जिससे यह तबका भी देश के विकास में अपना योगदान दे सके । बहुत बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़ते चले गए और नए नए प्रकल्प खुलते चले गए । 


सबसे पहले तो डॉक्टर साहब ने गरीब लोगों के लिए पैथोलोजिकल जांच हेतु एक लैबोरेटरी खोली जिसमें बहुत कम दरों पर विभिन्न प्रकार की जांचे की जाने लगी । बाद में विकलांग लोगों के लिए कृत्रिम अंग वितरण करने का कार्य हाथ में लिया गया और ऐसे केंद्र खोले गए। और तो और कई चिकित्सालय भी खोले गए जिन्हें भारत विकास परिषद बखूबी संचालित कर रही है । इन चिकित्सालयों में अपेक्षाकृत कम दरों पर इलाज किया जाता है । गरीब लोगों का निःशुल्क उपचार भी किया जाता है । 


इस प्रकार डॉक्टर साहब ने "सेवा, सहयोग, संस्कार" का जो बीजारोपण किया था वह अब एक विशाल वृक्ष बन चुका है । पूरे देश में भारत विकास परिषद की हजारों इकाइयां हैं और लाखों लोग सदस्य बने हुए हैं । ब्लड बैंक , ब्ल्ड डोनेशन कैंप लगाने के अतिरिक्त अन्य बहुत सारे कार्य भी यह संस्था करती है । 


इस संस्था के पांच तत्व हैं । संपर्क , सहयोग, संस्कार , सेवा और समर्पण । लोगों से संपर्क करो और उन्हें इस संस्था से जोड़ो। उन सबसे सहयोग के रूप में धन , समय और वस्तुएं लो । उन सब लोगों में देश के विकास में योगदान करने , देश का पुनर्निर्माण करने और देशभक्ति की भावना वाले संस्कार डालने का कार्य किया जाये जिससे गरीब, पिछड़े, असहाय, विस्थापित लोगों की मदद की जा सके । इस प्रकार ये सब लोग देश सेवा में समर्पित हो जाएं । ऐसा सुंदर सपना लेकर चलने वाले डॉक्टर सूरज प्रकाश ने अपने अथक प्रयासों से पूरे देश में इस संस्था की इकाइयां खड़ी कर दीं । 


वे साल में दो बार समस्त देश का भ्रमण कर सब इकाइयों को संभालते थे । छोटे से लेकर बड़े कार्यकर्ता तक सबसे बड़े प्रेम से मिलते थे । 


वर्ष 1991 में डॉक्टर सूरज प्रकाश का देहावसान हो गया मगर वे आज भी भारत विकास परिषद में जिंदा हैं । आज उनके जन्म दिवस पर सभी लोगों को बधाइयां । यदि संभव हो सके तो एकबार अपने क्षेत्र में गठित भारत विकास परिषद की इकाई में जाकर इस संस्था के कार्यों का जरूर अवलोकन करें । और यदि इस संस्था के कार्य अच्छे लगें तो स्वयं भी इस संस्था से जुड़कर अपना सहयोग भी करें । 


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