सब कुछ छीन लिया जाएगा
सब कुछ छीन लिया जाएगा
यह कहानी एक सूफ़ी- महात्मा शिबली की है जो एक प्रान्त के गवर्नर थे। एक दिन वह अध्यात्म विद्या सीखने के लिए सूफ़ी संत जुनैद की सेवा में उपस्थित हुए और विनम्रतापूर्वक बोले- लोग कहते हैं कि ईश्वर ज्ञान का मोती तुम्हारे पास है ।या तो उसे मुझे दे दो अथवा उसे मेरे हाथ बेच दो। संत ज़ुनैद ने कहा -मैं उसे बेच नहीं सकता क्योंकि तुम्हारे पास इतना धन नहीं है कि उसका मूल्य चुका सको। और यदि मैं उसे तुम्हें मुफ्त दे दूँगा तो तुम उसका मूल्य और क़द्र नहीं समझ सकोगे क्योंकि बिना मेहनत किए प्राप्त हुई वस्तु की कोई क़द्र और कीमत नहीं होती ।
संत ज़ुनैद ने सिबली को उसी शहर में भीख माँगने की आज्ञा दी जहाँ वह एक बड़े धनी व्यापारी के रूप में मान -सम्मान और ख्याति अर्जित कर चुके थे। कितना कठिन काम है कि जहाँ मान सम्मान के साथ रहे हों वही भीख माँगनी पड़े ।परन्तु धन्य हैं सिबली कि गुरु की आज्ञा का पालन प्रसन्नतापूर्वक किया।
प्रत्येक दिन सिबली जो कुछ भी भिक्षा पाते, लाकर संत ज़ुनैद को दे देते। वह उस भिक्षा को गरीबों में बाँट देते और शिबली को दूसरे दिन प्रातः काल तक भूखा रखते ।एक साल बाद उन्हें आश्रमवासियों की सेवा का कार्य सौंपा ।कुछ समय पश्चात संत ज़ुनैद ने सिबली से पूछा -अब तुम अपने बारे में क्या सोचते हो ?सिबली ने उत्तर दिया -मैं अपने को ईश्वर द्वारा पैदा किए गए सभी प्राणियों में सबसे "तुच्छ" समझता हूँ। संत ज़ुनैद ने कहा -अब तुम्हारी श्रद्धा और विश्वास पक्के हो गए हैं ।इस प्रकार सिबली के अहं, मान -सम्मान सब कुछ छीन लेने के बाद संत ज़ुनैद ने उन्हें शिष्यत्व की दीक्षा दी।