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Kanchan Pandey

Drama

3  

Kanchan Pandey

Drama

सौ प्रतिशत–प्यार

सौ प्रतिशत–प्यार

5 mins
602

                


कुसुम आजकल बात बात पर चिढ जाती है क्योंकि वह छोटी बड़ी बातों के लिए सुमित का साथ चाहती है यह जायज है कि छोटे –छोटे काम उसको खुद भी कर लेना चाहिए और पति के दायित्व में साथ देना चाहिए लेकिन यह भी सही है कि उसकी अभी की स्थिती ऐसी है कि वह काम करने में सक्षम नही है और यह छोटे छोटे काम ,काम नही वरन यह तो एक दूसरे के प्रति प्रेम की भावना है जो बिना प्रकट किए हीं एक दूसरे की जरूरतों का आभास हो जाता है लेकिन इस भावना को शायद सुमित समझ नही पा रहा है और जिसे करने से कष्ट नही अंतरात्मा से ख़ुशी तथा शांति मिलती है और सबसे ख़ुशी की बात यह है कि इस वक्त कुसुम के अंदर एक और जीव पल रहा है और इस समय तो सुमित का उत्तरदायित्व है कि कुसुम की छोटी बड़ी बातों का ख्याल रखे और पूरा करे और कुसुम को भी उन्हीं बातों के लिए जिद करती है , जो उचित हो और दूसरी तरफ सुमित को भी अपने काम के साथ अपनी माँ की भी जिम्मेदारी है जिसे पूरा करना उसका कर्तव्य है |आज वह जो भी है अपनी माँ की वजह से है पिता के गुजर जाने के बाद उन्हीं ने तो पग –पग पर साथ दिया है |आफिस से आते हीं सुमित माँ के पास चला गया |सुमित - कैसी हो माँ |माँ –मैं तो ठीक हीं हूँ लेकिन कुसुम को समझाता क्यों नही है, दिन भर बिस्तर पर सोई रहती है ऐसे में ठीक नही होगा |सुमित –माँ समझाता तो हूँ लेकिन क्या करे बेचारी आठवां महिना चल रहा है और मैं भी उसे समय नही दे सकता हूँ |माँ – तुझे रोका कौन है सुमित –ऐसी बात नही है |माँ -आठवां चल रहा है तो क्या मैने बच्चा पैदा नही किए हैं दुनिया में वही माँ बनने जा रही है |कुसुम जो चाय लेकर आ रही थी उसके पैर मानो वहीं जम गए लेकिन तुरंत अपने आप को सम्भालते हुए अंदर गई |सुशीला [माँ ] –आओं बहू चाय क्यों बनाने लगी मै तो आ हीं थी | कुसुम एक नजर सुमित को देखी और कमरे से निकल गई | सुशीला को समझते देर नही लगी बोली जा बेटा जा नही तो महाभारत छिड़ते देर नही लगेगी |निकलते -निकलते कुसुम के कानों ने यह भी सुन लिया |सुमित नही माँ ऐसा कुछ नही है |रात में माँ और सुमित ने खाना खा लिया |सुमित –तुम भी खा लो |कुसुम का मन तो नही कर रहा था लेकिन माँ कुसुम का हृदय भूखे रहना नही चाहती थी |सुमित ने खाती हुई कुसुम को एक गिलास पानी दिया और अपने कमरे में चला गया |कुसुम का हृदय रो पड़ा |कमरे में कुसुम पहुंची तब तक सुमित सो चुका था |कुसुम यह देख रोने लगी और कुर्सी पर बैठ गई ,करीब एक घंटे बाद सुमित की आँख खुली सुमित यह क्या कुसुम तुम्हें आराम करना चाहिए यूँ पैर नीचे करके बैठना ठीक नही ,कुसुम बुत बनी बैठी रही |सुमित पास आकर क्या हुआ तुम्हें |कुसुम –मुझे क्या होगा ?सुमित -ओ मै समझ गया आफिस से आते हीं तुमसे नही मिला इसलिए क्या करूं कुसुम ,पिता जी के गुजर जाने के बाद माँ के लिए मैं हीं तो सब कुछ हूँ |कुसुम- और मेरा |सुमित –तुम्हारा भी, अभी मै किसके साथ हूँ |कुसुम-ऐसे ? मैं यह नही कहती कि आप हमेशा मेरे साथ रहिए मेरे साथ खाइए लेकिन यह नही कि कम से कम कुसुम खा रही है तो थोड़ा बैठ जाऊं भूत जैसा ......सुमित –लो पानी पी लो |कुसुम- नही पीना मुझे और शिकायत करना है तो जाओ माँ के साथ बैठकर ......सुमित –चिल्लाते हुए ,कुसुम बस सही तो कहती है माँ , तुम बीमार नही हो थोड़ा बहुत चल लिया करो |सुशीला [माँ ]-क्या हुआ क्या हुआ, हे! भगवान इतनी रात को क्या कोहराम मचाई हो कुसुम दिन भर थककर आता है क्या कहेंगे पड़ोसी |

सुबह सुबह सुमित उठकर चाय बना लाया माँ को भी दिया और कुसुम को भी वह कुसुम को खुश रखना चाह रहा था लेकिन वह अभी तक मुँह बनाई हुई बैठी रही जिसका फल यह निकला कि आफिस जाने में देर हो गई और सुमित के घर से निकलते हीं सुशीला कुसुम पर बरसने लगी यह क्या नखरे हैं, मै तो परेशान हो गई हूँ बोल दो कुसुम अगर मैं अच्छी नही लगती तो हरिद्वार चली जाती हूँ |तब तक बगल कि सुनैना बहन आ गई क्या हुआ सुशीला बहन बड़ी परेशान लग रही हो |सुशीला –नही नही कुछ नही कुछ देर बाद सुनैना बहन चली गई, कुसुम ने सुशीला से खाने के लिए कहा तो सुशीला ने खाने से इंकार कर दिया |सुशीला –नही खाना मुझे मेरा बेटा आज बिना कुछ खाए गया और मै खाऊं, तू खा ले अब भूखी रही तो अच्छा नही होगा कुसुम बहते हुए आंसू के साथ खा भी रही थी और सोच रही थी कि मेरा कसूर क्या है भगवान मैं क्या करूं ऐसी स्थिती में थोड़ा पति का साथ और प्यार चाहती हूँ |शाम में सुमित आफिस से आते हीं अपने कमरे में जाकर गुमसुम सा बैठ गया और अंदर से चिटकनी लगा ली सुशीला और कुसुम परेशान हो गई |सुशीला –जरुर कुछ आफिस में हुआ है अगर मेरे बेटे को कुछ हुआ ना कुसुम पहले मै अपने पति को खो चुकी हूँ और ...कुसुम –चुप हो जाइए माँ जी भगवान के लिए ऐसा मत बोलिए |शाम के करीब सात बज गए थे खट से चिटकनी खुली सामने सुमित मुस्कुराते हुए निकला क्या आज हमलोग चाय नही पिएंगे | कुसुम जल्दी से दो प्याली चाय के साथ गर्म गर्म पकौड़े भी ले आई |सुमित –और तुम्हारी चाय कुसुम लेकर आओ |सबने मिलकर चाय पी |अब तो भोजन ,चाय ,बातें सभी साथ- साथ होने लगा अकेले में नही | सुमित समझ चुका था किसी को सौ प्रतिशत खुश नही किया जा सकता लेकिन सभी को एकसाथ मिलाकर रखने और खुश करने से सौ प्रतिशत जरुर हो जाता है | 


 


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