सैनिक की पत्नी या वीरवधू
सैनिक की पत्नी या वीरवधू
महिलाओं में आने वाले त्यौहार को लेकर बड़ा उत्साह था तो सब ने सोचा कि एक ही पंडाल में कार्यक्रम और गरबा नाइट और करवाचौथ का प्रोग्राम भी निपट जायेगा। सभी लड़कियाँ जिनकी नई शादी थी मायके आयीं थीं और कुछ नव वधुएँ जो ससुराल में थीं तो रँग जमाना तय था।
पर अब एक यक्ष प्रश्न ये था कि पाण्डेय आँटी को कौन बुलाने जायेगा ? जी हाँ.... वही पाण्डेय आँटी जिनका बेटा मेजर दीपक आर्मी में था और कश्मीर में पोस्टेड था और आतंकी हमले में कुछ महीने पहले ही शहीद हो गया था। अपने पीछे छोड़ गया बूढ़े माँ बाप और पत्नी निकिता और तीन वर्ष के बेटे विहान को। निकिता को भी वो धीरे धीरे दुःख से बाहर लाने की कोशिश कर रहीं थीं। वह पूरे जी जान से दीपक के सपने को सफल करने में जुटी थी जो उन दोनों ने एक साथ देखा था कि देश की सेवा दोनो पति पत्नी सेना में जा कर करें। इसलिए वह प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारियों में पूरे जी जान से लगी थी। श्रीमती पाण्डेय जी ने भी बेटे की शहादत के बाद खुद को घर मे क़ैद कर लिया था।
पाण्डेय आँटी को लाने का काम सौंपा गया छवि और राधिका को जो सारे कार्यक्रम की कर्ता धर्ता थीं। आँटी तो मना कर रही थीं, पर निकिता के समझाने पर वो इस शर्त पर राजी हो गईं कि बगैर अपनी बहू के मैं नहीं चलूँगी। निकिता जानती थी कि अब वह एक विधवा है इसीलिए कुछ मोहल्ले की महिलाएं अपनी बेटियों को दूर रखती हैं क्योंकि मंदिर जाते समय पूजा के चेहरे पर घबराहट आ गयी थी उसे देखकर कुछ महीनों पहले पूजा उसकी ख़ास दोस्त हुआ करती थी। पर छवि और राधिका ने एक साहस भरा निर्णय लिया उन्होंने कार्यक्रम का उद्घाटन ही निकिता से कराने के कार्ड छपवा दिए। स्टेज पर आज निकिता को देखकर कई महिलाओं में धीमी आवाज़ में बातचीत शुरू हो गयी, कि छवि ने माइक संभालते हुए कहा।
"बहनों और भाइयों.... आज के शुभ अवसर पर मुझे मुख्य अतिथि के लिये निकिता भाभी को छोड़कर किसी का नाम याद नहीं आया। शहीद कभी मरते नहीं वो तो अमर हो जाते है इतिहास और यादों में तो सबसे पहले निकिता भाभी अम्बे माँ का पूजन करके रिबन काटेंगी और हम सबसे दो शब्द कहेंगीं।"
अब निकिता ने काफी समझाने के बाद रिबन काटकर माइक पर बोलना शुरू किया तो सब उसी को बस सुनते रह गये।
माननीय बहनों और भाइयों, माँ अम्बे से भी पहले मैं अपनी सासू माँ को प्रणाम करती हूँ और अपना सौभाग्य मानती हूँ कि मैं इनकी बहू और दीपक जी की पत्नी बनी। वैधव्य मेरा चुनाव नहीं था पर मैं खुश हूँ सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे उस सैनिक की सेवा करने का अवसर मिला जिसने देश की सेवा की और देश पर ही न्योछावर हो गया। पर मेरी पहचान एक विधवा और बेचारी से भी आगे है बस कुछ पंक्तियों को आप लोगों को समर्पित करती हूँ,
"सावन..शहीद की पत्नी का "
रास्ते में विधवा वीरवधू को देख, नववधू ठिठक गयी।
यह विधवा मेरे रस्ते में, क्यों आकर ऐसे अटक गई?
तुम यहाँ कहाँ पर भटक चली, क्यूँ कर बतलाओ ओ भोली!
यह नववधुओं की तीज सखी, यह नहीं अभागन की टोली।।
उसकी घबराहट देख वो बोली, बहन न ऐसे घबराओ।
मुझ को अपशकुनी न समझो, मत अपने मन को समझाओ।।
मैं सहयोगिनी, उस सैनिक की, जो मातृभूमि को चूम गया।
तुम सबका सावन बना रहे, वो मेरा सावन भूल गया।।
मेरे जुड़े का वो गुलाब, अब फसल खेत की कहलाता।
मेरे सुहाग की कुर्बानी से, यहाँ तिरंगा लहराता।।
तुम सबकी राखी और सुहाग, वो मंगल सूत्र से जोड़ गया।
तुम सबकी चूड़ी खनकाने को, मेरी चूड़ी तोड़ गया।।
मेरी चुनरी के लाल रँग को वो, कुछ ऐसे चुरा गया।
उसकी सारी लालिमा को, तुम्हरी चूनर में सजा गया।।
उनकी यादों को मंदिर में, आज सजाने आयी हूँ।
मेरा बेटा भी सैनिक हो, अम्बे को मनाने आयी हूँ।।
आँचल में छुपा कर घर रखा, तो वीर कहाँ से आयेंगे?
जब मुश्किल से टकराएंगे, तब अभिनन्दन बन पाएंगे।।
इन पंक्तियों के साथ अपनी वाणी को एक खुशख़बरी के साथ विराम देती हूँ कि मेरा चयन भी आर्मी में हो गया है दीपक जी की राह पर और अब मैं विहान के मम्मी और पापा दोनों रोल में फिट हूँ। अम्बे माँ मुझे शक्ति दें कि मैं अपने मम्मी जी और पापा जी का दीपक जी के जैसा ही ख्याल रख सकूँ।
धन्यवाद
तालियों की गड़गड़ाहट से पंडाल गूँज उठा सब आज मिसेज पाण्डेय को बधाई दे रहे थे जिनकी बहू भी बेटे से कम नहीं, वास्तव में तो वह बहन बेटी बेचारी नहीं धन्य है जो तन मन से उस सैनिक की सेवा करती है और उसकी शहादत के बाद परिवार की उनका तो एक ही नाम हो सकता है "वीरवधू"